राजनीतिक फायदे के लिए जनरल बिपिन रावत के कटआउट का इस्तेमाल बेहद घिनौनी हरकत
कुछ चीजें भद्दी होती हैं, तो कुछ घिनौनी होती हैं
बिक्रम वोहरा कुछ चीजें भद्दी होती हैं, तो कुछ घिनौनी होती हैं. किसी की मौत का अपने हक में इस्तेमाल किया जाना बेशक भद्दापन कहा जाएगा. इसलिए जब पीएम मोदी ने पुलवामा के शहीदों को लेकर महाराष्ट्र में चुनाव पूर्व के भाषणों में फर्स्ट टाइम वोटरों से कहा था कि वे अपने वोट को एयर स्ट्राइक में शहीद हुए जवानों को समर्पित करें तो उस बयान की जमकर आलोचना हुई. "फर्स्ट टाइम वोटर्स से मैं पूछना चाहता हूं. क्या आपके जीवन का पहला वोट उन साहसी जवानों को समर्पित किया जा सकता है जिन्होंने बालाकोट हवाई हमला किया? क्या आपका पहला वोट पुलवामा में शहीद हुए साहसी जवानों के नाम हो सकता है?"
शहीदों के समपर्ण और साहस का किसी राजनीतिक पार्टी को वोट देने से क्या लेना देना हो सकता है, जाहिर तौर पर इस मामले को भावनात्मक रंग देने की कोशिश की गई है. लेकिन वो बयान इस बेशर्मी के सामने फीका पड़ जाता है जिसमें राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के कटआउट के बीच जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) का विशाल कटआउट का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये कटआउट एक साथ देख कर भ्रम पैदा होता है कि क्या इन तीनों ने मिल कर कहीं कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है? जिस व्यक्ति की कुछ ही दिनों पहले मौत हुई हो उसका वोट की राजनीति के लिए इस्तेमाल देखकर किसी को घिन ही आ सकती है, हैरानी की बात ये कि ऐसा देहरादून में किया गया जिसमें उन्हें पूरी वर्दी में दिखाया गया है.
दिवंगत जनरल बिपिन रावत के नाम का दुरुपयोग नाकाबिल-ए-बर्दाश्त है
यही वजह है कि तीनों सेना प्रमुखों ने इस पर नाराजगी जताई. यूनिफॉर्म में मौजूद कोई भी अधिकारी या जवान इस पर पूरी तरह बैन की मांग करेगा. क्योंकि न सिर्फ ये बेअदबी है बल्कि सशस्त्र बलों की गैरराजनीतिक प्रकृति के भी खिलाफ है. इनका किसी भी रूप में इस्तेमाल गलत है और वर्दी में तो नाकाबिल-ए-बर्दाश्त है. जनरल बिपिन रावत एक सेवारत अधिकारी थे ऐसे में उनकी गरिमा और शिष्टता को बनाए रखना चाहिए न कि इसे एक राजनीतिक सर्कस बनाया जाना चाहिए. परिवार के सदस्य दिवंगत जनरल के नाम के इस तरह के दुरुपयोग से जरूर परेशान होंगे. विडंबना यह है कि कार्यक्रम देहरादून में आयोजित किया गया जहां पर भारतीय सैन्य अकादमी है, जहां सेना के भविष्य की रीढ़ बनने वाले कैडेटों का प्रशिक्षण होता है. इसके अलावा रिटायरमेंट के बाद यहां क्लीमेंट टाउन में रहने वाले बड़े सैन्य अधिकारियों को भी ये देखकर बेहद दुख की अनुभूति हुई होगी.
लेकिन निर्ममता का ये प्रदर्शन यहीं खत्म नहीं होता. अब जनरल के पोस्टर और कटआउट बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक दूसरे पर हमले का हथियार भी बन गया है जिससे निश्चित रूप से जनरल की छवि को नुकसान पहुंच रहा है. इनके अलावा उत्तराखंड युवा मंच ने बड़े-बड़े पोस्टरों के जरिए लोगों को याद दिलाने की कोशिश की कि किस तरह से जब जनरल जीवित थे, तब कांग्रेस ने उन पर व्यक्तिगत हमले किये और उनका अपमान किया.
वास्तव में ये सही समय है जब चुनाव प्रचार के दौरान सशस्त्र बलों के बलिदान, साहस या उनकी पेशेवर स्थिति पर टिप्पणी करने पर रोक लगे और ऐसा करने पर जुर्माने या किसी तरह के दंड का प्रावधान हो. अगर सशस्त्र सेना के लिए हमारा सम्मान वास्तविक है तो ये वो न्यूनतम काम है जो हमें करना चाहिए.
चुनाव प्रचार के दौरान सशस्त्र सेनाओं का किसी भी रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता
चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक चुनाव प्रचार के दौरान सशस्त्र सेनाओं का किसी भी रूप में इस्तेमाल की इजाजत नहीं है, मगर इस पर कोई ध्यान नहीं देता. 2019 में आम चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को नोटिस जारी कर आगाह किया था कि प्रचार के दौरान और विज्ञापनों में सशस्त्र बलों के किसी भी तस्वीर का इस्तेमाल नहीं किया जाए. सभी पार्टियों को इसका खास ख्याल रखने को कहा गया, जो आज एक क्रूर मजाक बनकर रह गया है.
बीजेपी ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पोस्टर ऐसे लगाए जैसे कि जांबाज पायलट और पार्टी के बीच कोई रिश्ता हो. कुछ पोस्टरों में तो प्रधानमंत्री के चेहरे के आस-पास मिराज 2000 भी उड़ रहे थे और बड़े अक्षरों में 'बदला' लिखा था. ये हमें सोचने को मजबूर कर देता है कि राजनीतिक हस्तियां किस तरह का पाखंड कर रही हैं. हिंसक त्रासदियों में अपने करीबियों को खोने वाला गांधी परिवार अगर लोगों की भावनाओं का फायदा उठाने के लिए अपन कटआउट के साथ जनरल बिपिन रावत के गृह राज्य में ही उनके कटआउट का इस्तेमाल कर सकता है तो इंसान के पास एक ही रास्ता बचता है कि वो ईश्वर से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करे कि वो उन्हें इन पाखंडियों से बचाएं.