USCIRF रिपोर्ट : भारत को अफगानिस्तान और सीरिया के साथ खड़ा करने वाले अमेरिका को फिर चाहिए जयशंकर का हथौड़ा

अभी 2 हफ्ते भी नहीं हुए हैं जब भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने मानवाधिकार मामलों (Human Rights Matters) को ही लेकर अमेरिका को आईना दिखाते हुए कहा था

Update: 2022-04-26 12:56 GMT

संयम श्रीवास्तव

अभी 2 हफ्ते भी नहीं हुए हैं जब भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने मानवाधिकार मामलों (Human Rights Matters) को ही लेकर अमेरिका को आईना दिखाते हुए कहा था कि जिसके अपने घर शीशे के होते हैं दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारा करते. पर अमेरिका कहां बाज आने वाला है. इसलिए ही यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को कम्युनिस्ट चीन, घोर इस्लामी पाकिस्तान, निरंकुश उत्तर कोरिया, कट्टरपंथी सऊदी अरब और आतंकवाद से प्रभावित सीरिया और अफगानिस्तान के साथ खड़ा किया है.
इससे भी अधिक हास्यास्पद यह है कि अमेरिका की यह बॉडी भारत को इराक, क्यूबा, ​​निकारागुआ, मलेशिया आदि से भी खराब स्थिति में पाती है. पर इस तरह की रिपोर्ट बनाकर अमेरिका खुद अपनी जगहंसाई करा रहा है. दुनिया में खुद को सबसे महान कहलाने वाला यह राष्ट्र इसलिए ही दुनिया के देशों के बीच लगातार अपनी विश्वसनीयता खो रहा है. हालांकि, USCIRF की इस रिपोर्ट को संदिग्ध बनाने के लिए बहुत से तथ्य हैं पर जो बात इसे सबसे अधिक अविश्वसनीय बनाती है वो है USCIRF की पाकिस्तान के साथ गहरी गठजोड़. पाकिस्तान और चीन के लिए झुकाव को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 2014 में यूएससीआईआरएफ ने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के बिना भारत का नक्शा दिखाया था.
1- क्या है मामला
अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अमेरिकी आयोग ने अपनी 2022 वार्षिक रिपोर्ट में एक बार फिर भारत के खिलाफ अनर्गल प्रलाप किया गया है. रिपोर्ट अनुशंसा करता है कि अमेरिकी विदेश विभाग 10 देशों को सीपीसी (विशेष चिंता वाले देश) के रूप में फिर से नामित करे. इन देशों के नाम इस प्रकार हैं. बर्मा, चीन, इरिट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान. पांच देशों को नाम अतिरिक्त सीपीसी के रूप में शामिल करे. जिसमें अफगानिस्तान, भारत, नाइजीरिया, सीरिया और वियतनाम का नाम शामिल है. यह आयोग
तीन देशों अल्जीरिया, क्यूबा और निकारागुआ; को स्पेशल वॉच लिस्ट पर बनाए रखने के लिए भी संस्तुति किया है. सवाल यह है कि क्या भारत की स्थित अफगानिस्तान और सीरिया जैसी हो गई है. क्या इस आयोग को पाकिस्तान नहीं दिख रहा है. दरअसल पिछले 6 महीनों से यह देखा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत लगातार अपनी खुदगर्जी का सबूत दे रहा है. भारत ने अभी हाल ही में रूस यूक्रेन युद्ध के अवसर पर भी किसी के दबाव में आने से इनकार कर दिया. जाहिर है कि ऐसी स्थिति के बाद पश्चिम की आंखों के लिए भारत एक कांटा बना हुआ है.
2-भारत में घटने की बजाय बढ़ी है अल्पसंख्यकों की आबादी
अल्पसंख्यकों के साथ भारत में अन्याय की बात करने वाले आयोग को यह देखना चाहिए कि भारत में आजादी के समय मुस्लिम आबादी लगभग 10 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर करीब 14.2 प्रतिशत हो गई है. पाकिस्तान जैसे देश में हिंदू आबादी 1947 में 12.9 प्रतिशत से घटकर आज 1.9 प्रतिशत पहुंच गई है. देखने वाली बात यह है कि यूएससीआईआरएफ ने भारत को पाकिस्तान के साथ रखा है. पाकिस्तान वह देश है जहां अल्पसंख्यकों की आबादी लगातार कम ही नहीं हो रही है, बल्कि वे लगातार हमले, धर्मांतरण या ईशनिंदा के आरोपों से डरे रहते हैं.
2-दलितों का पूरा सपोर्ट मिल रहा केंद्र पर राज कर रही पार्टी को
USCIRF रिपोर्ट में कहा गया है, 2021 में, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति काफी खराब हो गई. वर्ष के दौरान, भारत सरकार ने अपनी नीतियों के प्रचार और प्रवर्तन को बढ़ाया – जिसमें हिंदू-राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ावा देना शामिल है – जिसने मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया.
दलितों का ही उदाहरण लेते हैं. उत्तर प्रदेश में इस साल के बहुचर्चित विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एससी की 84 आरक्षित सीटों में से 63 पर जीत हासिल की. सीएसडीएस के चुनाव के बाद के अध्ययन के अनुसार, भाजपा का जाटव आधार 2012 में 5 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 21 प्रतिशत हो गया. इसका गैर-जाटव आधार 2012 में 11 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 41 प्रतिशत हो गया. एक पार्टी दलितों के साथ भेदभाव करने वाले तथाकथित भेदभाव वाले लोगों को इस तरह का समर्थन नहीं मिलेगा.
3-स्टेन स्वामी के बारे में भी अतिरेक झूठ
यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट के अनुसार 'यूएपीए' और राजद्रोह कानून को सरकार के खिलाफ बोलने वाले किसी भी व्यक्ति को चुप कराने के प्रयास में डराने और भय का माहौल बनाने के लिए लागू किया गया है. 84 वर्षीय जेसुइट पुजारी और आदिवासियों, दलितों और अन्य हाशिए के समुदायों के लंबे समय से मानवाधिकार रक्षक फादर स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में यूएपीए के संदिग्ध आरोपों में गिरफ्तार किया गया था और कभी कोशिश नहीं की गई थी. जुलाई 2021 में उनके स्वास्थ्य के बारे में बार-बार चिंता जताने के बावजूद उनकी हिरासत में मौत हो गई. दरअसल अमेरिका सहित दुनिया के कई विकसित देशों में यूएपीए जैसे कानून मौजदू हैं, पर उनकी चर्चा नहीं होती है.
भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी के 10,000 पन्नों के आरोप पत्र के अनुसार, 2017 भीमा-कोरेगांव हिंसा के पीछे केंद्रीय आंकड़ों में से एक था. एनआईए द्वारा अदालत को सौंपे गए पत्रों और दस्तावेजों से पता चलता है कि स्टेन स्वामी ने भाकपा-माओवादी इकाइयों की स्थापना और अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए एक साथी के माध्यम से 8 लाख रुपये प्राप्त किए. अमेरिका के जेलों में बिताया जाने वाला लंबा समय और वहां कैदियों से होने वाला क्रूरतम व्यवहार से दुनिया वाकिफ है.
4- पैसे लेकर एजेंडा चलाने वालों के चेहरों को भी जानिए
यूएससीआईआरएफ के वर्तमान आयुक्त नादिन मेंज़ा ने पहले अमेरिकी राजनेता रिक सेंटोरम के लिए काम किया था, जो एक पुराने पाकिस्तान समर्थक थे. सेंटोरम चाहते थे कि संयुक्त राज्य अमेरिका "पाकिस्तान को विदेशी सहायता जारी रखे और परमाणु-सशस्त्र देश के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे". .
फर्स्ट पोस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में USCIRF में शामिल होने के तुरंत बाद, मेन्ज़ा शेख उबैद और उनके भारत विरोधी संगठन, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) के संपर्क में आया. उबैद USA-ICNA (इस्लामिक सर्कल ऑफ नॉर्थ अमेरिका) में सक्रिय जमात फ्रंट से जुड़ा था, जिसके पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों के साथ गहरे संबंध हैं.
मेन्ज़ा 2012 में सैंटोरम द्वारा स्थापित एक संगठन 'पैट्रियट वॉयस' की अध्यक्ष भी हैं. वहां उन्होंने टेरी एलन के साथ काम किया, जो फिदेलिस गवर्नमेंट रिलेशंस (FGR) नामक एक लॉबी फर्म के संस्थापक हैं, जिसे भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद द्वारा काम पर रखा गया था. सूत्रों का कहना है, आईएएमसी ने 2013-14 में एफजीआर 40,000 डॉलर का भुगतान किया.
यह याद रखने की जरूरत है कि IAMC पर त्रिपुरा पुलिस द्वारा नवंबर 2021 में त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान फर्जी खबरों की एक श्रृंखला फैलाने के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप लगाया गया है. दिलचस्प बात यह है कि 2022 की वार्षिक रिपोर्ट में त्रिपुरा का उल्लेख है. विश्वसनीय सबूतों के बावजूद हिंसा फर्जी खबर थी.
वहीं रिपोर्ट एक दूसरी खबर "अक्टूबर में, भीड़ ने मस्जिदों पर हमला किया और बांग्लादेश की सीमा से लगे त्रिपुरा में मुस्लिम निवासियों की संपत्तियों को आग लगा दी." को बिना सबूतों के सही मान लिया. फर्स्ट पोस्ट की उसी रिपोर्ट में बताया गया है कि एफजीआर को बर्मा टास्क फोर्स (बीटीएफ) द्वारा भी नियुक्त किया गया था, जो शेख उबैद द्वारा स्थापित एक अन्य भारत विरोधी मोर्चा था, जिसने यूएस कांग्रेस के साथ भारत के खिलाफ पैरवी करने के लिए 2018 और 2020 के बीच एफजीआर को 267,000 डॉलर दिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी एक हुए
इस कड़ी को आगे प्रधानमंत्री मोदी के लिए नफरत से भी बढ़ाया गया है. उदाहरण के लिए, बीटीएफ ने ISI एजेंट गुलाम नबी फई की मेजबानी की, जिसे कश्मीरी अलगाववादियों की ओर से पैरवी करने के लिए जाना जाता है. फई तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता अंगना चटर्जी के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने भी मेन्ज़ा के साथ हार्डवायर्ड ग्लोबल नामक कंपनी में काम किया है. चटर्जी ने अपने संगठन, कोएलिशन अगेंस्ट जेनोसाइड के माध्यम से बीटीएफ के साथ मिलकर एक बड़ी भूमिका निभाई थी, जिसे उत्तरी अमेरिका के इस्लामिक सर्कल (ICNA) के लिए एक और मोर्चा माना जाता था, 2005 में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा पर प्रतिबंध लगाने में.

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