संयुक्त किसान मोर्चा के भाजपा को 'दंडित' करने की अपील से यूपी की राजनीति में हलचल
वायदों के अमल में नहीं लाए जाने से परेशान किसान संघर्ष मोर्चा के 55 संगठनों ने विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को दंडित करने की अपील कर ही दी
Faisal Anurag
वायदों के अमल में नहीं लाए जाने से परेशान किसान संघर्ष मोर्चा के 55 संगठनों ने विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को दंडित करने की अपील कर ही दी. किसाना संघर्ष मोर्चा के इस अपील का मतदाताओं पर कितना असर पड़ेगा यह तो चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इतना तो स्पष्ट ही है कि किसानों और केंद्र सरकार के बीच का रिश्ता तल्ख हो गया है. किसानों ने महात्मा गांधी के शहादत दिवस को ही विश्वासघात दिवस मनाया.
इस कार्यक्राम को किसानों का समर्थन बताता है कि मोर्चा की पकड़ किसानों में है. किसान नेताओं की शिकायत है कि केंद्र सरकार ने लिखित वादा करने के बावजूद न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कमिटी का निर्माण नहीं किया और न ही किसान नेताओं पर दायर किए गए मामले वापस लिए गए. केंद्र ने वायदा किया था कि तमाम मामले वापस ले लिए जाएंगे और कमिटी जल्द से जल्द एमएसपी विवाद को सुलझाने का सुझाव दे देगी.एमएसपी को किसान जहां भारतीय कृषि संस्कृति की रीढ़ बता रहे हैं वहीं केद्र सरकार के बजाय में कृषि क्षेत्र को निजी निवेश के लिए खोलने के प्रावधान किए गए हैं. यानी एमएसपी का सवाल कॉरपोरेट बनाम किसान के संघर्ष में बदलता जा रहा है.
किसानों के संगठन के नेता योगेंद्र यादव के अनुसार संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने उत्तर प्रदेश के किसानों से अपील की है कि उनकी मांगों को पूरा नहीं कर उनसे छल करने के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को 'दंडित' करें. पंजाब में तो पहले से ही जहां कुछ किसान नेताओं ने मिल कर संयुक्त समाज मोर्चा पार्टी का गठन किया है और उसके कुछ बड़े नेता चुनाव लड़ रहे हैं. योगेंद्र यादव ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि 'संयुक्त किसान मोर्चा ने उत्तर प्रदेश के किसानों से अपील की है कि किसानों से छल करने के लिए आगामी चुनावों में भाजपा को दंडित करें. सरकार ने उनकी मांगें पूरी नहीं की हैं.
एमएसपी के लिए अभी तक न तो समिति गठित की गयी है और न ही किसानों के खिलाफ मामले वापस लिए गए हैं.' उत्तर प्रदेश में तो लखिमपुर खिरी जनसंहार एक चुनावी मुद्दा बन चुका है. भाजपा के ही संसाद वरूण गांधी ने इसे ले कर एक अखबार को दिए गए साक्षात्कार में सवाल उठाया है कि आखिर किसानों का जनसंहार करने वालों के खिलाफ सरकार नरम क्यों दिखती है. इसके साथ ही इस हत्याकांड के लिए किसान जिसे सूत्रधार मानते हैं उस केंद्रीय मंत्री को बचाया जा रहा है. जहिर है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को हटाने की मांग भी किसान संघर्ष मोर्चा करता रहा है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मतदान के कुछ ही दिन पहले किसान संगठनों की इस अपील का क्या असर होगा इसे लेकर राजनैतिक प्रेक्षक अनुमान लगाने लगे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश सांप्रदायिक विभाजन के अब तक तमाम उपक्रम विफल रहे हैं. जाति और धर्म में बंटने के बजाय बतौर किसान जो एक एकता बनी है वह राजनैतिक तौर पर भाजपा की बेचैनी का कारण बना हुआ है. गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरह मुजफ्फनगर दंगों का कार्ड खेला, उससे जाहिर है कि भाजपा को अपने मकसद की कामयाबी में संदेह है. यूपी के चुनाव में एक ओर जहां मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जाति दर्प की बात कर रहे हैं, वहीं सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए तमंचावादी,अब्बजान,जिन्ना और अंत में पाकिस्तान के जुमले का इस्तेमाल कर रहे हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों का गढ़ ही 2017 में भाजपा की कामयाबी का बड़ा सूत्रधार साबित हुआ था.
किसान आंदोलन के दौरान "राकेश टिकैत के आसूं" ने 22 जिला वाले पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति को पूरी तरह प्रभावित किया. बंगाल के चुनाव के समय भी किसान नेताओं ने कहा था कि वे किसी एक पार्टी के पक्ष में प्रचार नहीं कर रहे हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को हराने की अपील कर रहे हैं. किसान संघर्ष मोर्चा में यूपी चुनाव के संदर्भ में एक बार फिर कहा है कि वे किसी खास पार्टी के पक्ष में वोट देने की अपील नहीं कर सकते. यह संगठन की नीति के खिलाफ है. लेकिन किसानों के साथ किए गए विश्वासघात को देखते हुए भाजपा को हराने की अपील कर रहे हैं.
हिंदी पट्टी की चुनावी राजनीति में आमतौर पर धर्म और संप्रदाय ही आधार रहे हैं. 1977 में हुआ चुनाव अपवाद था, जब देश तानाशाही के खिलाफ वोट कर रहा था और जाति और संप्रदाय के सवाल पीछे चले गए थे. 1989 के बाद से मंडल कमंडल की राजनीति यूपी का भविष्य तय करती रही है. 2014,2017 और 2019 के चुनावों में यूपी में कमंडल के साथ राष्ट्रवाद और जाति सोशल इंजीनियंरिेग का मिश्रण तैयार हुआ और भाजपा की कामयाबी इसी आधार पर हुयी. लेकिन इस समय जिस तरह बेरोजगारी और किसानों की श्रमिकों के सवाल की सक्रियता दिख रही है उसका क्या असर चुनाव में पड़ेगा, इसे लेकर एकमत नहीं हुआ जा सकता है.