UP Assembly Election: 'जो राम को लाए, हम उनको लाएंगे' नारे की बदौलत क्या उत्तर प्रदेश में फिर आ सकेगी बीजेपी?

सरकार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार कर रही थी

Update: 2022-02-26 05:33 GMT
विजय त्रिवेदी.
अयोध्या (Ayodhya) में सरयू शांत भाव से बह रही है, लेकिन शहर में हलचल बढ़ गई है. राम जन्मभूमि (Ram Janmabhoomi) पर मंदिर निर्माण शुरू होने के बाद यह पहला मौका है जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा या लोकसभा चुनाव हो रहे हैं. इससे पहले जब 2017 में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) हुए थे तब राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मुद्दा जोर शोर से उठाया जा रहा था,लेकिन बीजेपी की केन्द्र में सरकार बनने के बावजूद कोई फ़ैसला नहीं किया गया था. उस वक्त संसद में क़ानून पास कर मंदिर निर्माण का रास्ता खोलने के लिए बहुत से साधु संत और कार्यकर्ता जोर दे रहे थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मसले का क़ानूनी रास्ते से हल चाहते थे.
सरकार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार कर रही थी ताकि वो निर्णय सर्वमान्य हो और देश में किसी प्रकार का कोई साम्प्रदायिक माहौल नहीं बिगड़े. उस वक्त विपक्षी राजनीतिक दल बीजेपी नेताओं को चिढ़ाने के लिए बार-बार मंदिर निर्माण शुरू करने की तारीख पूछा करते थे और एक नारा बीजेपी के ख़िलाफ चलता था- 'मंदिर वहीं बनाएंगे,लेकिन तारीख़ नहीं बताएंगे' यानी बीजेपी के पास कोई ठोस जवाब नहीं था. इस नारे को लेकर अक्सर मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़े लोग और बीजेपी के नेता भी मुश्किल में पड़ जाते थे, केन्द्र सरकार पर भी दबाव बढ़ने लगा था.
योगी के आने के बाद राम मंदिर का रास्ता आसान हुआ
जब साल 2017 का विधासभा चुनाव हुआ और यूपी में बीजेपी को बम्पर बहुमत मिला और योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया तो मंदिर निर्माण को लेकर लोगों की उम्मीदें बढ़ गईं. कुछ लोग यह सवाल उठाने लगे कि क्या योगी की भूमिका जन्मभूमि आंदोलन में बीजेपी के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह जैसी होगी? कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था, यानी बीजेपी के हिसाब से मंदिर निर्माण पर आगे बढ़ने का एक ठोस कदम. लोग मानने लगे कि अब योगी आदित्यनाथ के आने से अयोध्या में मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा. योगी को लेकर यह भरोसा इसलिए भी बढ़ा था कि उऩके गुरु महंत अवैद्यनाथ और गोरखनाथ पीठ की राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका रही थी.
तब तक क़ानूनी रास्ता नहीं खुला था लेकिन योगी रास्ते पर आगे बढ़ने लगे, सबसे पहला फ़ैसला उन्होंने किया फैज़ाबाद ज़िले का नाम बदल कर अयोध्या करना. इसके साथ ही उन्होंने अयोध्या के विकास का नक्शा खींचा. अयोध्या में एयरपोर्ट शुरू करने और मेडिकल कॉलेज बनाने के साथ खई स्तर पर विकास के कार्य शुरू करने का ना केवल ऐलान किया गया बल्कि काम भी शुरू हो गए. हाल में फैज़ाबाद रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर अयोध्या कैंट कर दिया गया है. योगी आदित्यनाथ ने भले ही राम मंदिर के नाम पर कोई चुनाव नहीं लड़ा हो लेकिन महंत अवैद्यनाथ ने कई लोकसभा चुनाव इस आंदोलन के नाम पर ही जीते.
नवम्बर,2019 में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने बीजेपी का काम आसान कर दिया. लोगों ने अदालत के उस फैसले को माना और कोई हंगामा नहीं हुआ. अयोध्या का फैसला इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले पर आई अपीलों से संबंधित रहा. इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 2010 में विवादास्पद भूमि को भगवान राम, निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया था और सभी पक्षों को एक तिहाई हिस्सा दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 40 दिनों तक सभी पक्षों की दलीलें सुनी. पांच सौ साल पुराने इस मामले में अदालत ने 533 साक्ष्यों और 88 गवाहियों का अध्ययन किया और अपना फ़ैसला मुगल काल, औपनिवेशिक काल और मौजूदा संवैधानिक काल के दौरान फैली घटनाओं के कानूनी समाधान के रूप में सुनाया. इसमें विवादित भूमि राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए दी गई और अयोध्या में कहीं पर मस्जिद निर्माण के लिए सरकार को पांच एकड़ ज़मीन देने के आदेश दिए. खास बात यह रही कि यह फ़ैसला सर्वसम्मति से था.
2023 तक मंदिर निर्माण का बड़ा काम पूरा हो जाएगा
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज़ करते हुए साफ कर दिया कि वे सिर्फ़ आस्था के आधार पर किसी एक मत तक नहीं पहुंच सकते. अपनी 41 दिनों की रोज़ाना सुनवाई में अदालत ने हर पक्ष को ज़रूरत से ज़्यादा सुनवाई का मौका दिया ताकि कोई यह ना कह सके कि उसे अपनी बात या पक्ष में तर्क रखने का मौका नहीं मिला. लगातार सुनवाई करके अपने रिटायरमेंट से पहले फ़ैसला सुना कर चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने यह बात भी रखी कि उनकी नज़र में इस मसले की कितनी ज़्यादा अहमियत थी.
इस फ़ैसले की मंशा राष्ट्र के रूप में सामूहिक तौर पर आगे बढ़ने की अपील और साफ संकेत भी थे और देश ने उसी मंशा और भावना के रूप में इसे स्वीकार किया और भविष्य में आगे बढ़ना तय किया. इस फ़ैसले के कुछ महीनों बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राष्ट्रपति ने राज्यसभा में सदस्य मनोनीत किया तो उसकी राजनीतिक गलियारे में काफी आलोचना भी हुई. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद रामजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट बनाया गया और अगस्त 2020 से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का काम शुरू हो गया और ट्रस्ट के लोगों का कहना है कि दिसम्बर, 2023 तक मंदिर निर्माण का बड़ा काम पूरा हो जाएगा, यानी हो सकता है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर में कर दी जाए.
राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा के बाद 1991 में बीजेपी ने उत्तरप्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई . साल 1999 से बीजेपी अयोध्या में लगातार जीतती रही सिवाय साल 2012 के विधानसभा चुनाव के, जब समाजवादी पार्टी ने यह सीट हथिया ली. 2017 में बीजेपी ने यह सीट फिर से जीत ली और मौजूदा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता पर ही पार्टी ने इन चुनावों में भी भरोसा जताया है. लोकसभा सीट भी अरसे से बीजेपी के पास रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ना केवल अयोध्या और उत्तरप्रदेश बल्कि पूरे देश में बीजेपी के विस्तार की एक बड़ी वजह राम जन्मभूमि आंदोलन है. उसी मुद्दे पर उसने 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव भी स्पष्ट बहुमत के साथ जीता,लेकिन ये सभी चुनाव और राजनीतिक ग्राफ राम मंदिर निर्माण शुरू होने से पहले का है. साल 2022 का यह विधानसभा चुनाव अब इस बात का संकेत देगा कि क्या राम मंदिर निर्माण करने से बीजेपी को राजनीतिक या चुनावी फायदा हुआ है या फिर अब यह मसला चुनावी राजनीति का हिस्सा नहीं रह गया है. राम मंदिर का मुद्दा इस बार गर्माहट नहीं पकड रहा है और जब उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मथुरा का मसला उठाया तो बीजेपी ने साफ कर दिया कि फिलहाल यह उसके एजेंडा पर नहीं है.
राम जन्मभूमि को लेकर राजनीतिक सुगबुगाहट 1989 में बीजेपी के पालमपुर अधिवेशन से हुई
मोटे तौर पर राम जन्मभूमि को लेकर राजनीति की सुगबुगाहट 1989 में बीजेपी के पालमपुर अधिवेशन में हुई. कांग्रेस और विश्व हिंदू परिषद की नज़दीकी को सरसंघचालक बालासाहब देवरस गंभीरता से देख रहे थे, इसलिए वे परिषद को बीजेपी के साथ मज़बूती से करने की कोशिश में लगे थे . इसके लिए रास्ता निकाला गया हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में. जून 1989 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में राम जन्मभूमि आंदोलन को समर्थन देने का फ़ैसला किया गया.
पालमपुर सम्मेलन में प्रस्ताव पारित करके कहा गया, 'इस विवाद को अदालत के ज़रिए नहीं सुलझाया जा सकता. राम जन्मभूमि के लिए कांग्रेस सरकार भी वैसे ही फ़ैसला करे जैसे प्रधानमंत्री नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के सम्मान में किया था. सरकार को हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस स्थान को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए. संभव हो तो आपसी बातचीत से मसले को हल करना चाहिए या फिर कानून बनाना चाहिए. लेकिन अदालत के रास्ते इसे कतई नहीं सुलझाया जा सकता'.
22 सितम्बर 1989 को दिल्ली के बोट क्लब पर महाहिन्दू सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसकी अध्यक्षता महंत अवैद्यनाथ ने की. सम्मेलन में प्रस्ताव पारित किया गया कि राम जन्मभूमि हिंदुओं की है और हमेशा उनकी ही रहेगी. मंदिर निर्माण की शुरूआत के लिए 9 नवम्बर 1989 को शिलान्यास करने का ऐलान किया गया. इसके साथ ही आने वाले चुनावों में राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाया जाएगा और जो पार्टी इसके ख़िलाफ़ होगी, उसे सत्ता से बाहर कर दिया जाएगा. 9 नवम्बर 1989 को गर्भ गृह से 192 फीट दूर पूर्व निर्धारित स्थान पर हवन और भूमि पूजन के बाद शिलान्यास के लिए पहली शिला दक्षिण बिहार के कामेश्वर प्रसाद चौपाल ने रखी.
महंत अवैद्यनाथ की अध्यक्षता में हर हिन्दू से एक ईंट और सवा रुपया इकट्ठा करने का निर्णय लिया गया
फिर इलाहाबाद में हुई तीसरी धर्म संसद में एक और अहम फ़ैसला राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को लेकर हुआ. महंत अवैद्यनाथ की अध्यक्षता में हुई इस धर्म संसद में मंदिर निर्माण के लिए देश भर से हर हिन्दू से एक ईंट और सवा रुपया इकट्ठा करने का निर्णय किया गया. शाहबानो मसले पर मुसलमानों को खुश करने के बाद कांग्रेस हिंदुओं की तरफ देखने लगी. राजीव गांधी ने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत फैज़ाबाद से की. कहा, "यह राम की भूमि है और अगर आप राम राज्य लाना चाहते हैं तो कांग्रेस को वोट दीजिए." चुनाव में कांग्रेस के कुछ काम नहीं आया लेकिन बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ और 1984 के चुनाव में सिर्फ़ दो सीटों पर रह जाने वाली बीजेपी को इस बार 88 सीटें मिली थी. आडवाणी के आगे बढ़ने और वाजपेयी के हाशिये पर जाने का वक्त था यह. 1989 में जनता दल के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी,उसे बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों का समर्थन हासिल था.
साल 1989 में कांग्रेस सरकार के अयोध्या में विवादित स्थल पर ताला खुलवाने के बाद साधु-संतों के दबाव में गोरक्षनाथ पीठ के महंत अवैद्यनाथ फिर से राजनीति में सक्रिय हुए. 1989 का लोकसभा चुनाव महंत अवैद्यनाथ ने राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर ही लड़ कर जीता. इस चुनाव में अवैद्यनाथ के ख़िलाफ़ बीजेपी और वी. पी. सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल ने संयुक्त उम्मीदवार उतारा था. अवैद्यनाथ हिन्दू महासभा के उम्मीदवार के तौर पर राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे थे जबकि बीजेपी–जनता दल ने बोफोर्स के मुद्दे पर चुनाव लड़ा. महंत अवैद्यनाथ की जीत हुई. 1991 और 1996 में वे फिर गोरखपुर से ही सांसद चुने गए. इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने उनकी राजनीतिक और आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया है.
सरकार बनने के बाद 1990 में उप-प्रधानमंत्री देवी लाल से खींचतान के दौरान प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया, तो उसकी काट के लिए लालकृष्ण‍ आडवाणी की अगुआई में बीजेपी ने सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथयात्रा निकाली. आडवाणी की रथयात्रा बिहार में जनता दल की लालू प्रसाद यादव की सरकार ने सीतामढ़ी में रोक दी, तो बीजेपी ने केंद्र में वी.पी. सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. सरकार गिर गई.यही से शुरू हुई थी 'मंडल-कमडंल' की राजनीति.
10 मार्च को पता चलेगा इस मुद्दे का कितना असर हुआ
फिर 1990 में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में कार सेवा के ऐलान के बाद इलाहाबाद हाइकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश जारी किया. कार सेवा के दौरान हिंसा भड़क उठी और पुलिस कार्रवाई में कुछ लोग मारे गए. बहुत से लोग घायल हो गए. इसके राजनीतिक नतीजे के तौर पर यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी को अच्छी बढ़त मिली और कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी. साल 1991 के आम चुनावों में कांग्रेस की सरकार और पी.वी. नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने.
1991 के आखिर में दिसंबर में बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद ने फिर अयोध्या में कार सेवा का ऐलान किया. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सरकार ने हलफ़नामा दिया कि मस्जिद से छेड़छाड़ की इजाज़त नहीं दी जाएगी, लेकिन उसका पालन नहीं किया गया. केंद्रीय बलों को बाहरी इलाके में ही रखा गया. मस्जिद तोड़ दी गई. केंद्र की राव सरकार ने छह राज्यों में बीजेपी सरकारों को बर्खास्त कर दिया. उसके बाद हुए चुनावों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी हार गई. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी के गठजोड़ की सरकार बनी. बीजेपी के लिए तब यह बड़ा झटका था कि बाबरी मस्जिद गिरने के बावजूद यूपी में भी बीजेपी अपनी सरकार नहीं बना पाई. इन चुनावों में यूपी में एक नारा चल रहा है- 'जो राम को लाए, हम उनको लाएंगे'. यानी राम मंदिर निर्माण करने वाली पार्टी की फिर से सरकार बने, लेकिन वोटर के यह कितना गले उतरता है, यह तय करेगा कि 'योगी आएंगे ही' या तुलसीदास की रामचरित मानस की तरह 'ताजपोशी से पहले वनवास' का आदेश होगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Tags:    

Similar News

-->