ईमानदार समीर वानखेड़े होने की अहमियत और उसके जोखिम को भी समझिए
क्या होगा अगर समीर वानखेड़े निर्दोष साबित हुए और उन पर लगाए गए सभी आरोप महज व्यक्तिगत आक्षेप निकले
बिक्रम वोहरा।
क्या होगा अगर समीर वानखेड़े निर्दोष साबित हुए और उन पर लगाए गए सभी आरोप महज व्यक्तिगत आक्षेप निकले. अगर वे उतना ही भ्रष्ट होते जितना बताया जा रहा है तो क्या उनके वरिष्ठ अधिकारी नासमझ हैं कि उन्हें इतने हाई प्रोफाइल केस की जिम्मेदारी देते. और यदि वे इतने चालाक हैं कि वर्षों तक अपने वरिष्ठ अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकते रहे, तो जिन षड्यंत्रों के दावे किए जा रहे हैं, वे उनके रुतबे से मेल नहीं खाते. ये सच है कि उन्होंने आर्यन खान की जमानत अर्जी को एक बड़ा मुद्दा बनाया और इसकी वजह सुर्खियों में आने की इच्छा हो सकती है. लेकिन क्या उनकी हैसियत का व्यक्ति ऐसे अनाड़ी ढंग से अपनी साख पर बट्टा लगाएगा, जैसा कि अभी बताया जा रहा है?
उनकी पत्नी की तर्क में दम है. आपने उन पर बेतरतीब हमले किए, उन्हें इतना बदनाम करने की कोशिश की कि आने वाले समय में हर एनसीबी अफसर व्यक्तिगत हमले के डर से सही काम करने से बचेगा. उनकी पत्नी से मुझे पूरी सहानुभूति है और मैं उनके साहस की प्रशंसा करता हूं कि उन्हें जो भी दिख रहा है दुनिया के सामने रख रही हैं. यह बेहिचक चरित्र पर हमले का मामला है.
समीर वानखेड़े के अतीत को क्यों खंगाल रहे हैं नवाब मलिक
चलिए पूरी वस्तुस्थिति को ठीक से समझने की कोशिश करते हैं. महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक शुरुआत से ही वानखेड़े के खिलाफ उग्र अभियान चला रहे हैं, जो न सिर्फ बेतुका लगता है बल्कि इसमें उनका द्वेष भी साफ नजर आता है. बताया जा रहा है कि वे अपने दामाद की गिरफ्तारी का बदला ले रहे हैं. वाकई! जब उस व्यक्ति को छोड़ दिया गया है, तो बात खत्म हो जानी चाहिए.
लेकिन बजाए इसके, ऐसा लगता है जैसे इस एनसीबी अफसर के खिलाफ सबूतों का पुलिंदा बड़ी आसानी से मलिक के हाथ लगते जा रहे हैं. चाहे उनका जन्म प्रमाणपत्र हो या उनकी तस्वीरें हों, नवाब मलिक न सिर्फ वानखेड़े के अतीत को खंगालने का दावा करते हुए उन पर आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं बल्कि उनकी विश्वसनीयता को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि समानांतर रूप से गवाह भी मुकरते जा रहे हैं और स्थिति ट्रैजिक कॉमेडी जैसी बन गई है.
अब आइए उन सबूतों की समीक्षा करें
उनका मुस्लिम या हिंदू होना, हिंदू या मुसलमान से शादी करना, एक जांच अधिकारी के रूप में उनके कर्तव्य को लेकर पूरी तरह अप्रासंगिक है. हमें बताया गया है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) के वाइस-चेयरमैन अरुण हल्दर ने बीते सप्ताहांत वानखेड़े से मुलाकात की थी, और उन्हें क्लीन चिट देते हुए साफ किया कि उन्हें लगता है कि वानखेड़े अनुसूचित जाति से हैं. अब उनके खिलाफ जंग छेड़ चुके मलिक ने धमकी दी है कि वह इस मसले को लेकर राष्ट्रपति कोविंद के पास जाएंगे. ये पूरी तरह से अंधी नफरत का खेल है. अपनी सच्चाई साबित करने के लिए NCSC के चेयरमैन के समक्ष वानखेड़े की पेशी ने एक सरकारी अफसर का मजाक बना कर रख दिया है.
ठीक है कि उन्होंने अपनी मां को खुश करने के लिए निकाह किया. यदि मेरी मां ईसाई होती तो मैं भी चर्च में शादी करता, यदि वे यहूदी होतीं तो मैं सिनेगॉग में शादी रचाता और वे मुस्लिम होतीं तो उनकी इच्छा के मुताबिक रीति-रिवाजों को निभाता. वह आपकी मां हैं और उन्हें खुश रखना आपका काम है.
वानखेड़े अपनी सच्चाई साबित करने के लिए अकेले लड़ रहे हैं
अपने परिवार, धर्म, जाति, ईमानदारी और चरित्र को साबित करने को लेकर घिरे वानखेड़े पर ये भी आरोप लग रहे हैं कि आर्यन खान को छोड़ने के लिए उन्होंने 8 करोड़ रुपये मांगे. जिसके लिए एक बातचीत का भी हवाला दिया जा रहा है जिसमें भ्रष्टाचार के कोई सबूत नजर नहीं आते. जिससे साफ है कि स्थिति पूरी तरह हास्यास्पद बन चुकी है.
फिर अचानक इस मामले में एक एथिकल हैकर की एंट्री होती है, जो कि पूरी पहेली को 21वीं शताब्दी का हाईटेक माहौल देता नजर आता है. ऐसे तमाम लोग जो कंप्यूटर को हैक कर सकते हैं, उनमें से वानखेड़े एक ऐसे शख्स को चुनते हैं जो एथिकल यानि कि नैतिक मानदंडो का ख्याल रखता है. क्या हमें यह बताया जा रहा है कि जिस वक्त पेगासस हमारी और आपकी जासूसी कर रहा है, उस दौरान एनसीबी शाहरुख खान की कॉल्स और उनकी साइट पर निगाह रखने के लिए एक एथिकल हैकर की मदद ले रहा है?
प्रतिशोध से भरे मलिक के ये आरोप न सिर्फ अनर्गल नजर आते हैं बल्कि हैरानी की बात ये है कि पता नहीं कैसे ये सारी जानकारियां सिर्फ उन्हें ही हासिल हो रही हैं. इसके साथ ये भी बड़ा अजीब लगता है कि वानखेड़े को बिलकुल अकेला छोड़ दिया गया है. उन्हें अपनी सच्चाई साबित करने के लिए अकेले लड़ना पड़ रहा है. और यही हम जैसे आम लोगों के लिए सबसे दुखदायी और अपमानजनक है. क्योंकि ऐसा लगता है जैसे हमारी सोच-समझ और परख की कोई इज्जत ही नहीं रह गई है.
इन सब के पीछे का एजेंडा क्या है?
हम Zohnerism के पीड़ित हैं. 1997 में 14 वर्ष के Nathan Zohner ने एक खतरनाक रसायन की 'खोज' की थी. नाम था Dihydrogen Monoxide, जिसे पकड़ में न आने वाला किलर कहा जाता है. नेथन ने हर साल हजारों लोगों की जान लेने वाले इस रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन रसायन के खतरनाक गुणों की दुनिया को जानकारी दी. उसने बताया कि ये रसायन गैस और ठोस दोनों स्थिति में गंभीर जलन पैदा कर सकता है. एसिड रेन और कैंसर के मरीजों से निकाले गए ट्यूमर में पाया जाता है. प्राकृतिक तत्वों और धातुओं को खराब कर सकता है. शरीर में DHMO की मात्रा बढ़ने से हद से ज्यादा पसीना और पेशाब आता है. जो DHMO पर निर्भर हो जाते हैं, उन्हें इससे छुटकारा की कोशिश में मौत तक आ सकती है.
लोगों ने इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. लेकिन, नेथन पानी के बारे में बता रहे थे. सच तो ये है कि क्रूज के जमाने से ही हम झूठ की यात्रा पर निकल चुके हैं. हमें झूठ पर झूठ बताया जा रहा है. और हमें पता ही नहीं होता कि एजेंडा क्या है, लेकिन कुछ तो एजेंडा जरूर है.