बेलगाम महंगाई: थोक कीमतों पर आधारित महंगाई दर का रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच जाना सरकार के लिए खतरे की घंटी

थोक कीमतों पर आधारित महंगाई दर का रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच जाना सरकार के लिए खतरे की घंटी बनना चाहिए-

Update: 2021-06-15 04:49 GMT

भूपेंद्र सिंह | थोक कीमतों पर आधारित महंगाई दर का रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच जाना सरकार के लिए खतरे की घंटी बनना चाहिए- इसलिए और भी कि थोक के साथ खुदरा महंगाई दर भी सिर उठाए हुए है। सरकार को महंगाई पर लगाम लगाने के लिए तत्काल प्रभाव से कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए, अन्यथा आवश्यक वस्तुओं के बढ़ते दाम उसके लिए आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक रूप से भी चुनौती बन सकते हैं। सरकार के नीति-नियंता इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि महंगाई के बेलगाम होने से एक ओर जहां विरोधी दल सड़कों पर उतरने की चेतावनी दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने में मुश्किलें भी खड़ी होती दिख रही हैं। महंगाई बढ़ने का कारण है पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में वृद्धि और आवश्यक वस्तुओं की मांग एवं आपूर्ति में अंतर, जो लाकडाउन के चलते बढ़ा है, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आम आदमी पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़े मूल्यों के साथ खाद्य तेल के बढ़ते दामों से भी परेशान है। नि:संदेह इसके आसार हैं कि लाकडाउन में रियायत और राहत से मांग एवं आर्पूित में अंतर कम होगा, लेकिन सरकार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए भी कुछ करना होगा। देश के अनेक हिस्सों में पेट्रोल की कीमतें सौ रुपये के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गई हैं। कुछ स्थानों पर तो डीजल की कीमतें भी सौ रुपये के आसपास पहुंच गई हैं।

एक अनुमान के अनुसार पिछले साल के मुकाबले वर्तमान में पेट्रोल और डीजल के दाम 35 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुके हैं। इस मामले में यह तर्क एक सीमा तक ही काम करने वाला है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में वृद्धि के कारण पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ रहे हैं, क्योंकि उनके दाम तब भी कम नहीं होते, जब कच्चे तेल के मूल्य कम होते हैं। यह समझना होगा कि यदि पेट्रोलियम उत्पादों के दामों में वृद्धि के साथ आवश्यक वस्तुओं की मांग एवं आपूर्ति का अंतर बरकरार रहेगा तो फिर महंगाई दर को नियंत्रित कर पाना मुश्किल होगा। चूंकि महंगाई बेलगाम होने से आम आदमी की मुश्किलें बढ़ने के साथ रिजर्व बैंक भी चिंतित है, इसलिए सरकार को अपनी सक्रियता दिखानी ही होगी। यदि रिजर्व बैंक को महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए ब्याज दरें बढ़ानी पड़ीं तो मांग और निवेश, दोनों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। यह स्थिति महामारी से ग्रस्त अर्थव्यवस्था की मुश्किलें और बढ़ा सकती है। चूंकि पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी की बड़ी वजह उस पर लगने वाले केंद्रीय और राज्य टैक्स हैं, इसलिए केंद्र और राज्यों, दोनों को मिलकर समाधान निकालना होगा।


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