यूएन मतदान बनाम 'दोस्ती'

Update: 2022-10-03 19:07 GMT
By: divyahimachal  
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार फिर भारत मतदान से अलग रहा, क्योंकि प्रस्ताव रूस के खिलाफ था। रूस ने यूक्रेन की क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता का निर्लज्ज उल्लंघन किया और उसके चार राज्यों पर कब्जा कर लिया। सुरक्षा परिषद में उसी पर प्रस्ताव लाकर रूस की भत्र्सना और उसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का उल्लंघन करने के मद्देनजर कार्रवाई करने का लक्ष्य था, लेकिन भारत एक बार फिर अपनी 'दोस्ती' से बंधा रहा। हालांकि रूस के ऐसे क्रूर और तानाशाही रवैये पर भारत ने भी 'गहरी असहजता' जताई है। वह रूस की रणनीति से हैरान और बेचैन है। इस संदर्भ में उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित 'शंघाई सहयोग संगठन' के शिखर सम्मेलन की याद ताज़ा हो जाती है। उसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच संवाद हुआ था, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है। आपसी संवाद, लोकतंत्र और कूटनीति से समस्याओं के समाधान निकल सकते हैं। उस पर राष्ट्रपति पुतिन ने 'मित्र राष्ट्र' के प्रधानमंत्री को सकारात्मक आश्वासन दिया था कि वह यथाशीघ्र युद्ध समाप्त करने की कोशिश करेंगे। समरकंद संवाद के बाद ऐसा कुछ सामने नहीं आया, तो भारत रूस की रणनीति पर हैरान और क्षुब्ध है।
युद्ध को समाप्त करने के बजाय राष्ट्रपति पुतिन ने रिजर्व सेना के 3.5 लाख सैनिकों को भी युद्ध में झोंकने का आदेश दिया। यह दीगर है कि व्यापक स्तर पर नौजवान सैनिकों ने युद्ध में उतरने से इंकार कर दिया है और वे भाग कर विदेश में शरण ले रहे हैं। उन पर मौत का खौफनाक साया मंडरा रहा है। रूस ने जॉर्जिया और क्रीमिया पर भी इसी तरह जबरन कब्जे किए थे। राष्ट्रपति पुतिन ने एक कदम बढक़र यूक्रेन के लुहांस्क, डोनेस्क, जेपोरोज्जिया, खेरसॉन राज्यों पर भी रूस का कब्जा करा दिया है। हालांकि जनमत संग्रह का ढोंग रचा गया है। अमरीका और यूरोपीय देशों ने तल्ख प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं तथा मान्यता देने से साफ इंकार किया है। इस कब्जे को संयुक्त राष्ट्र के मानकों और मूल्यों का सरेआम उल्लंघन माना जा रहा है। पश्चिमी देशों ने रूस पर पाबंदियां बढ़ाने के भी ऐलान किए हैं, लेकिन रूस इन पाबंदियों से अभी तक विचलित नहीं लगता। सुरक्षा परिषद में जिस प्रस्ताव पर मतदान कराया गया, भारत समेत चीन, ब्राजील, गबोन आदि देश भी मतदान से अलग रहे। हालांकि यूक्रेन में रूस के क्रूर और अमानवीय हमलों पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी, पुतिन के सामने, चिंता और सरोकार जताए थे, लेकिन व्यावहारिक रूप से रूस ने किसी का भी आग्रह स्वीकार नहीं किया। यकीनन भारत और रूस की दोस्ती पुरानी और जांची-परखी है।
चीन भी रूस का गहरा मित्र देश है। भारत अपने रक्षा हितों को लेकर रूस पर बहुत कुछ आश्रित है, बेशक हम आत्मनिर्भर होने और स्वदेशी रक्षा उत्पादन में सफलताएं हासिल कर रहे हैं। भारत की परमाणु ऊर्जा और रिएक्टर निर्माण में रूस हमारा सबसे बड़ा और भरोसेमंद सहयोगी देश है। रूस हमारे देश में 1000 मेगावाट के चार परमाणु संयंत्र और रिएक्टर बना रहा है, यह करार दोनों देशों के बीच हुआ था। दूसरी तरफ हम अमरीका और कुछ यूरोपीय देशों के भी 'रणनीतिक साझीदार' हैं, नतीजतन मतदान से लगातार आंख चुराने पर उन देशों की भारत के प्रति निराशा स्वाभाविक है। यूक्रेन पर रूस के हमले को सात महीने से ज्यादा वक्त बीत चला है, लेकिन रूस यूक्रेन को पराजित नहीं कर सका है, बेशक नुकसान तो अरबों डॉलर में हो चुका है। मौतें भी खूब हुई हैं और पलायन भी हुआ है। यूक्रेन वाले शरणार्थी बनने पर मजबूर हैं, लेकिन लड़ाई अब भी जारी है। इस युद्ध का प्रभाव शेष विश्व पर भी पड़ रहा है। महंगाई बढ़ रही है और हालात मंदी के उभरते जा रहे हैं। वैश्विक सप्लाई चेन बाधित है। देशों में खाद्यान्न, गैस, तेल आदि कई वस्तुओं का घोर संकट है। फिर भी रूस युद्ध को जारी रखने पर आमादा है, हालांकि उसकी अर्थव्यवस्था भी ठप्प है। वह कच्चे तेल, गैस, गेहूं और हथियार सप्लाई के सहारे टिका हुआ है। भारत के अपने हित और राजनीतिक-रणनीतिक मूल्य हैं, लिहाजा उनके प्रति कब तक आंखें बंद रखी जा सकती हैं, भारत सरकार को इस पहलू पर गंभीर मंथन करना चाहिए। उधर रूस को चाहिए कि वह तत्काल युद्ध को बंद कर दे। इसके कारण अब तक बहुत नुकसान हो चुका है।

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