भारत पर भरोसा

युद्ध रोकने के लिए तमाम देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकाय की अपीलें भी बेकार साबित हो रही हैं। बड़े मुल्कों के कूटनीतिक प्रयास भी कारगर होते नहीं दिख रहे। इसका एक बड़ा कारण जंग के मसले पर ज्यादातर देशों का खेमों में बंट जाना रहा है। फिर यह भी कि रूस महाशक्ति है और यूक्रेन की तुलना में उसकी सैन्य शक्ति कई गुना ज्यादा है।

Update: 2022-09-26 04:39 GMT

Written by जनसत्ता; युद्ध रोकने के लिए तमाम देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकाय की अपीलें भी बेकार साबित हो रही हैं। बड़े मुल्कों के कूटनीतिक प्रयास भी कारगर होते नहीं दिख रहे। इसका एक बड़ा कारण जंग के मसले पर ज्यादातर देशों का खेमों में बंट जाना रहा है। फिर यह भी कि रूस महाशक्ति है और यूक्रेन की तुलना में उसकी सैन्य शक्ति कई गुना ज्यादा है।

वह परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र भी है। ऐसे में वह जब तक चाहेगा, युद्ध के मैदान में डटा रहेगा। मगर यूक्रेन जिस ताकत के साथ रूस का मुकाबला कर रहा है, उससे उसके मनोबल का साफ पता चलता है। हालांकि यूक्रेन को अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों से सैन्य और आर्थिक मदद भी मिल रही है और इसीलिए वह लड़ भी पा रहा है। ऐसे में यह कैसे मान लिया जाए कि यह युद्ध जल्दी खत्म हो जाएगा। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से कई देशों के सामने खाद्य और आर्थिक संकट तो खड़े हो ही गए हैं, ऊर्जा संकट ने भी दुनिया को हिला दिया है। इसलिए अब सबको लग रहा है कि जंग जल्द खत्म होनी चाहिए।

ऐसा नहीं कि इस जंग को खत्म कराने को लेकर कोई प्रयास नहीं हुए। शुरू में तुर्किए जैसे देश मध्यस्थता के लिए आगे आए थे। वार्ताओं के दौर भी चले। पर नतीजा कुछ नहीं निकला। संयुक्त राष्ट्र में इस बारे में प्रस्ताव पेश होते रहे। पर खेमेबाजी की वजह से समाधान की दिशा में बढ़ पाना किसी के लिए आसान नहीं रहा। भारत जैसे गिने-चुने देश ही हैं जो रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर शुरू से तटस्थ रहे और शांति प्रयासों पर जोर देते रहे।

यही वजह है कि युद्ध रोकने के प्रयासों के लिए दुनिया के कई देश भारत की ओर देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि भारत किसी खेमे में नहीं है और इसीलिए वह शांति के लिए जो प्रयास करेगा, उनमें ईमानदारी कहीं ज्यादा होगी। इसका ताजा प्रमाण यह है कि अब मैक्सिको ने भी संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पेश कर कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए एक कमेटी बनाई जाए जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वेटिकन के पोप फ्रांसिस और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस को रखा जाए। हालांकि इससे पहले अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस भी भारत की भूमिका को अहम मानते हुए अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत का कद और भूमिका बढ़ी है। चाहे अमेरिका या रूस हो या फिर चीन, सब यह मान चुके हैं कि अब भारत हर लिहाज से उनके लिए महत्त्वपूर्ण देश बन गया है। भले चीन के साथ भारत के गहरे विवाद हों, लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते अपरिहार्य हैं। रूस और भारत के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। अमेरिका के साथ संबंध मजबूत हुए हैं, भले ही उनमें दोनों देशों के स्वार्थ ही क्यों न हों। वरना अमेरिका क्वाड में भारत को शामिल क्यों करता! ऐसे में भारत की छवि एक मजबूत देश के रूप में स्थापित हुई है।

भारत रूस का कितना ही करीबी क्यों न हो, लेकिन हाल में समरकंद में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से बातचीत में प्रधानमंत्री ने यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई कि आज का दौर युद्ध का नहीं है। जाहिर है, भारत भी तत्काल युद्ध की समाप्ति चाहता है। फिर यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमिर जेलेंस्की भी भारत को सम्मान और विश्वास के साथ देखते हैं। ऐसे में अगर भारत को युद्ध खत्म कराने के प्रयासों का जिम्मा मिलता है, तो यह बड़ी बात है।


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