संवाद पर विश्वास

किसानों और सरकार के बीच पहले से ही तनातनी चल रही है और

Update: 2021-01-21 02:11 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। किसानों और सरकार के बीच पहले से ही तनातनी चल रही है और अब अदालत केप्रयासों के प्रति किसानों का अविश्वास सकारात्मक संकेत नहीं है। बुधवार को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने सुनवाई के दौरान साफ कहा कि हमने समिति में विशेषज्ञों को नियुक्त किया है, क्योंकि हम विशेषज्ञ नहीं हैं। वाकई, ऐसी समितियों का गठन करना अदालत के लिए कोई नई बात नहीं है। यह अदालत के काम करने के यथोचित तरीके का हिस्सा है कि वह स्वयं शब्द-दर-शब्द सुनवाई न करते हुए विशेषज्ञों के जरिए अपनी राय बनाने की कोशिश करती है और उसके बाद ही अपना फैसला सुनाती है। प्रधान न्यायाधीश की टिप्पणी से ऐसा लगता है कि किसी समिति के सदस्य पर आपत्ति करना अदालत को अच्छा नहीं लगा है। अदालत ने यह भी साफ करने की कोशिश की है कि समिति को फैसला सुनाने का आधिकार नहीं है, तो इसमें पक्षपात कहां से आ गया? अदालत का सवाल उचित है कि जो कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ समिति में शामिल हैं, वे अपने क्षेत्र के प्रतिभाशाली लोग हैं, उनके नाम को खराब कैसे किया जा सकता है?

दरअसल, अदालत द्वारा गठित समिति ने किसानों को अपनी बात रखने के लिए बुलाया है, यह अफसोस की बात है कि किसान समिति के सामने पेश नहीं होना चाहते। किसानों को लग रहा है कि अभी जो समिति बनी है, वह कृषि कानूनों के पक्ष में ही सिफारिश करेगी। फिर भी आदर्श स्थिति यही है कि किसान आगे बढ़कर समिति को अपने तथ्यों और तर्कों से निरुत्तर करने का मौका न गंवाएं। कृषि विशेषज्ञों के साथ विस्तार से बात संभव है, जब विशेषज्ञों के सामने अकाट्य तथ्य पेश किए जाएंगे, तो संभव है, विशेषज्ञों के विचार में बदलाव आए। विचार में बदलाव नहीं भी आता है, तो विरोध का मौका किसानों ने छोड़ा नहीं है। किसान अभी भी दिल्ली की सीमाओं पर विराजमान हैं। आंदोलन पुरजोर चल रहा है और लगे हाथ सरकार से बातचीत भी दृढ़ता से जारी है। अभी तक किसानों ने कानून का पूरा सम्मान किया है, अत: उन्हें अदालत द्वारा गठित समिति को भी अंगूठा नहीं दिखाना चाहिए। ऐसा नहीं लगना चाहिए कि किसान विशेषज्ञों के साथ चर्चा से भाग रहे हैं। पक्षपाती लग रहे विशेषज्ञों का सामना करने में भी आंदोलन की एक सफलता है।
किसानों को तो यह प्रयास करना चाहिए कि समिति अपनी रिपोर्ट समय से पहले ही अदालत में पेश कर दे। ध्यान रहे, सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को किसानों की शिकायतें सुनने और आठ सप्ताह में रिपोर्ट पेश करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया है। चार में से एक सदस्य पहले ही पीछे हट गए हैं, इससे भी किसानों की आपत्ति को बल मिला है। इससे न केवल समिति के अन्य सदस्यों, बल्कि सरकार पर भी नैतिक दबाव बढ़ा है। जहां एक तरफ, किसानों को उद्वेलित करने के लिए किसी तरह के प्रतिकूल कदम सरकार की ओर से नहीं उठने चाहिए, वहीं दूसरी तरफ, किसानों को भी व्यावहारिक संवेदना के साथ सोचना चाहिए कि मनमाफिक विशेषज्ञों को समिति में देखने की इच्छा क्या न्याय के सिद्धांत के अनुरूप है? दोनों पक्षों को ध्यान रखना होगा कि समाधान निकालने से भी ज्यादा जरूरी है, देश व उसकी व्यवस्था का मान रखना। जब देश गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है, तब लोकतंत्र के दायरे में रहते हुए संयम बरतने की जरूरत और बढ़ गई है।


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