उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन हो गया है और त्रिवेन्द्र सिंह रावत की जगह 'तीरथ सिंह रावत' मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठ गये हैं। राज्य में पिछले 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला था और 70 सदस्यीय विधानसभा में इसके 57 सदस्य जीत कर आये थे। प्रश्न पैदा हो सकता है कि इतने विशाल बहुमत की पार्टी को अपनी सरकार का मुख्यमन्त्री बीच में ही क्यों बदलना पड़ा जबकि अभी अगले चुनावों में एक वर्ष का समय शेष है? इसका उत्तर भी कठिन नहीं है। लोकतान्त्रिक प्रणाली में पार्टी का आन्तरिक लोकतन्त्र भी बहुत मायने रखता है। इस व्यवस्था में मुख्यमन्त्री कुछ और नहीं बल्कि विधानसभा में बहुमत में आये राजनीतिक दल के विधायकों का नेता होता है। उसका चुनाव सिद्धान्ततः चुने हुए विधायक ही करते हैं। भाजपा में यह परंपरा कायम है कि मुख्यमन्त्री चुनते हुए ज्यादा हील-हुज्जत और गुटबाजी देखने में नहीं आती।