अफगान शांति के पेच

पहले रूस की पहल पर मास्को में अफगानिस्तान में शांति कायम करने को लेकर सम्मेलन हुआ।

Update: 2021-03-25 02:00 GMT

पहले रूस की पहल पर मास्को में अफगानिस्तान में शांति कायम करने को लेकर सम्मेलन हुआ। फिर अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की अफगानिस्तान यात्रा पर पहुंचे। उन्होंने काबुल में सैन्य कमांडरों और राष्ट्रपति अशरफ गनी समेत वरिष्ठ अफगान सरकारी अधिकारियों से मुलाकात की। अमेरिकी योजना के तहत टर्की में अफगान शांति वार्ता का अगला दौर होने वाला है। ये सभी गतिविधियां अफगानिस्तान में शांति कायम करने और वहां से अमेरिकी फौज के पूरी तरह वापस ले जाने के प्रयासों का हिस्सा हैं। लेकिन क्या सचमुच अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का रास्ता निकल रहा है? ऑस्टिन ने कहा है कि जो बाइडेन प्रशासन अफगान युद्ध का अंत देखना चाहता है, लेकिन उसके लिए हिंसा का कम होना जरूरी है। लेकिन हिंसा असल में बढ़ती जा रही है। ऐसे में अमेरिकी सैनिकों के निकालने की समय सीमा को लेकर अमेरिका में असमंजस गहरा गया है।

पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक मई तक ये लक्ष्य हासिल कर लेने का एलान किया था। लेकिन बाइडेन प्रशासन ने साफ कर दिया है कि कम से कम अगले एक नवंबर तक ऐसा नहीं होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले सप्ताह एक साक्षात्कार में कहा था कि समय सीमा अगर आगे बढ़ाई जाएगी, तो वो "ज्यादा आगे" नहीं बढ़ाई जाएगी। उधर तालिबान ने को चेतावनी जारी कर दी है कि अगर अमेरिका समय सीमा का पालन नहीं करता है, तो उसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे। तालिबान के मुताबिक अमेरिकी सैनिक एक मई समयसीमा का पालन नहीं करते हैं, तो यह समझौते का उल्लंघन होगा। गौरतलब है कि ये समयसीमा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के प्रशासन और तालिबान के बीच हुए समझौते में लिखी हुई है। बाइडेन प्रशासन इस समय इस समझौते की समीक्षा कर रही है और दोनों पक्षों पर दबाव भी डाल रही है कि वो शांति समझौते की तरफ जल्द बढ़ें। अफगान राष्ट्रपति की ओर से जारी हुए एक बयान में कहा गया है कि राष्ट्रपति अशरफ ग़नी बिना चुनाव के किसी को सत्ता नहीं सौपेंग। तालिबान पुराने संविधान के तहत चुनाव नहीं चाहता। खबर है कि अमेरिका ने तालिबान और अफगान सरकार दोनों को आठ पन्नों का एक शांति प्रस्ताव दिया है, जिसकी दोनों पक्ष समीक्षा कर रहे हैं। प्रस्ताव में एक अंतरिम शांति सरकार की बात की गई है, जो देश को संवैधानिक सुधारों और चुनावों की तरफ ले जाएगी। लेकिन संविधान बदलने को लेकर देश में सहमति नहीं है।


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