लैंगिक समानता की ओर: सेना में अपने आकाश की तलाश
सरकार व सेना के स्तर पर इस बाबत नीतिगत फैसला लेने की जरूरत है।
दैनिक ट्रिब्यून, हाल के वर्षों में देश की शीर्ष अदालत के कई महत्वपूर्ण फैसले आये हैं, जिनमें सेना में महिलाओं के भविष्य की संभावनाओं को विस्तार दिया गया है। दरअसल, परंपरागत सोच और व्यवस्थागत विसंगतियों की वजह से इस पहल को विस्तार नहीं दिया जा सका। लेकिन धीरे-धीरे सेना में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है। इसी कड़ी में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी यानी एनडीए और इंडियन नेवल अकादमी की परीक्षाओं में लड़कियों की भागीदारी की राह खोल दी और लैंगिक बाधा की कड़ी को हटाने की कोशिश की है। हालांकि, अभी अदालत का यह अंतरिम आदेश है। अदालत में दायर एक याचिका में कहा गया था कि एनडीए की परीक्षा से लड़कियों को लैंगिक भेदभाव के तहत वंचित रखा जा रहा है जिसे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन भी बताया गया। उल्लेखनीय है कि बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के आदेश दिये थे। दरअसल, याचिकाकर्ताओं की एक दलील यह भी थी कि लड़के कम उम्र में एनडीए के जरिये स्थायी कमीशन हासिल कर लेते हैं, जिसके चलते सेवा अवधि ज्यादा होने के कारण ऊंचे पदों तक पहुंच जाते हैं जबकि लड़कियां स्नातक होने के बाद सेना में कमीशन पाती हैं, जिसके चलते उनके उच्च पदों पर पहुंचने की अवधि कम हो जाती है। दरअसल, ऐसा भी नहीं है कि सेना में पूरी तरह से लिंगभेद हो, धीरे-धीरे सेना ने वक्त के साथ बदलावों को स्वीकार करना शुरू किया है। लेकिन अभी भी व्यापक स्तर की सभी प्रवेश परीक्षाओं में लड़कियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये सांगठनिक व व्यवस्था के स्तर पर व्यापक तैयारी करने की भी जरूरत है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार इस दिशा में गंभीर नहीं है। हाल ही में केंद्र सरकार ने सभी सैनिक स्कूलों में प्रवेश के लिये लड़कियों के लिये दरवाजे खोले थे। ये मौके पहले उपलब्ध नहीं थे। कह सकते हैं कि वक्त के साथ जब लड़कियों में अपने नये करिअर तलाशने की आकांक्षाएं हिलोरें ले रही हैं तो सरकार व सेना के स्तर पर इस बाबत नीतिगत फैसला लेने की जरूरत है।