हिमाचल प्रदेश की सुंदर धरती को कौन नहीं निहारना चाहता? इस प्रदेश का प्राकृतिक सौंदर्य अनायास ही सभी का मन मोह लेता है। सर्पीली सड़कें, बलखाती नदियां, पहाड़ों के शिखर से बहते झरने, बर्फीली चोटियां, फल-फूलों से लदे बगीचे, आसमान को छूते देवदार के पेड़, लहलहाती हरियाली फसलें, शीतल एवं मंद-मंद हवाएं सभी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। शांत, सुंदर एवं समृद्ध हिमाचल देवभूमि तथा वीर भूमि के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध है। प्रति वर्ष लाखों पर्यटक प्रदेश का भ्रमण कर स्वर्गलोक जैसा आनंद लेते हैं। पर्यटक हमारे मेहमान हैं तथा अतिथि देवो भव की संस्कृति का अनुसरण करते यह प्रदेश सभी पर्यटकों, देव दर्शन करने भक्तों तथा श्रद्धालुओं का स्वागत तथा आदर सत्कार करता है, लेकिन विगत कुछ वर्षों से देवभूमि में पर्यटन तथा धर्मस्थलों के दर्शन के लिए आने वाले नकली धार्मिक पर्यटकों एवं नव दंपतियों ने मानवीय, धार्मिक तथा सामाजिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाई हैं। नवरात्रों तथा त्योहारों के समय मंदिरों में गहने तथा सोने की चेन चोरने वाले गिरोह सक्रिय हो जाते हैं। राष्ट्रीय उच्च मार्गों पर ढाबों तथा होटलों में जिस्मोफरोशी के अवैध कारोबार समय-समय पर सामने आते रहते हैं। लड़ाई-झगड़े, मारधाड़, बदमाशी, मनमर्जी, पुलिस कर्मियों तथा प्रदेश के भोले-भाले तथा निहत्थे लोगों पर बिना किसी वजह के जानलेवा हमले हो चुके हैं। पेट पालने के लिए छोटा-मोटा काम-धंधा करने वाले लोगों पर नशे में मदमस्त, ग़ैर जि़म्मेदार, अमर्यादित, असंस्कारित पर्यटकों द्वारा मौत का तांडव आम तौर पर देखने को मिलता रहता है। प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पर कुछ सिरफिरे पर्यटकों द्वारा निहत्थे तथा बेकसूर छोटा-मोटा काम धंधा करने वाले लोगों पर सिर फोड़ने, डंडों से पीटने, शराब पीकर हुड़दंग करने की शर्मनाक तथा निंदनीय घटनाएं आमतौर पर होती रहती हैं जो किसी भी सभ्य तथा मानवीय दृष्टिकोण से स्वीकार नहीं की जा सकती। पर्यटकों का शराब पीकर होटल-ढाबों, चाय की दुकानों, शराब के ठेकों पर तोड़फोड़ तथा चोरी करना कहां तक जायज़ ठहराया जा सकता है?
कुल्लू तथा लाहौल-स्पीति को जोड़ने वाली ऐतिहासिक अटल टनल बनने के उपरांत इस शांत एवं एकांत क्षेत्र में भी पर्यटन सीजन में इस तरह की घटनाएं होना आम बात हो गई है। ड्यूटी कर रहे पुलिस कर्मियों से बहस, गाली-गलौज तथा बदतमीजियां अब आम बात हो गई है। इन गैर-जि़म्मेदार लुटेरों तथा हमलावर किस्म के लोगों की बदतमीजि़यां कहां तक सहन की जा सकती हैं? प्रदेश सरकार द्वारा होटल व्यवसायियों तथा पर्यटक स्थलों पर काम-धंधा चलाने तथा विपरीत हालात को सामान्य बनाने के लिए भरसक प्रयास किए जाते हैं। पर्यटकों का बेलगाम हो जाना तथा नागरिक मूल्यों का पतन कई अनसुलझे प्रश्नों को जन्म देता है। कुछ पर्यटकों द्वारा लड़ाई-झगड़े, मारपीट, गाली-गलौज तथा असभ्य आचरण जैसी दुखद घटनाओं को देखते हुए प्रदेश में एक सशक्त आदर्श पर्यटक आचरण संहिता की आवश्यकता है। पुलिस तथा प्रशासन को और अधिक कड़ाई से इन मनचले, बेलगाम पर्यटकों को शालीन व्यवहार का पालन करवाने की आवश्यकता है। इस वर्ग के पर्यटकों को 'अतिथि देवो भव' की परिभाषा से स्वागत नहीं बल्कि सही व्यवहार तथा अनुशासन का पाठ पढ़ाए जाने की आवश्यकता है क्योंकि जब अतिथि अपना देवत्व भूल जाएं तो उन्हें कानून व्यवस्था के डंडे याद करवाना आवश्यक हो जाता है। हिमाचल प्रदेश के लोग नम्र-विनम्र तथा भोले-भाले होते हैं। हमारी पुलिस व्यवहार कुशल है, हमारा पर्यटन विभाग अतिथियों के सेवा भाव में किसी से कम नहीं लेकिन आनंद तथा उल्लास प्राप्त करने वाले पर्यटकों से भी सभ्य, शिष्ट और शालीन आचरण की आशा की जा सकती है। प्रदेश के मुख्य प्रवेश द्वारों पर पर्यटकों का पंजीकरण होना चाहिए। पर्यटन को आनंद लेने के साथ एक पर्यटक अतिथि के रूप में उनकी जि़म्मेदारी, उत्तरदायित्व, नियम संहिता, उन्हें क्या नहीं करना है, पर्यावरण के नियम तथा विभिन्न अपराधों, कानूनी प्रवधानों तथा दंड संहिता के बारे में पर्यटन या पुलिस विभाग द्वारा मार्गदर्शक पुस्तिका को तैयार कर बांटा जाना चाहिए। पर्यटकों को इस बात का एहसास करवाया जाना आवश्यक है कि हिमाचल की सुंदर एवं पवित्र देवभूमि में उनकी मनमानियों तथा मनमर्जियों के लिए खुली छूट नहीं है, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उनकी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं। शालीनता एवं उच्च कोटि का व्यवहार मनुष्य की पहचान है।
भौतिकवाद तथा धन-संपदा के नशे में ये बेलगाम पर्यटक अपने घर की सीमाओं से बाहर निकलते ही अपनी मर्यादाओं को भूल जाते हैं तथा प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेने के बजाय उसे लूटना तथा बर्बाद करना शुरू कर देते हैं। पर्यटन स्थलों, जल प्रपातों तथा सुंदर स्थलों पर गंदगी फैलाना, शराब तथा बीयर की बोतलें तोड़ कर फैंकना विकृत मानसिकता का प्रदर्शन है। हिमाचल में आने वाले पर्यटक हमारे अतिथि हैं, परंतु मान-मर्यादाओं को तार-तार कर देने वाले पर्यटक उपद्रवियों तथा हमलावरों से कम भी नहीं। पर्यटकों से भी संवेदनशील, मर्यादित तथा प्रेम भाव की आशा रखी जा सकती है। पर्यटकों को किसी भी प्रकार के घातक हथियारों को लाने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। पर्यटन विभाग, पुलिस विभाग तथा सामान्य प्रशासन को इस दिशा में एक संयुक्त तथा कारगर योजना बनाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी अनहोनी को रोका जा सके। शिष्ट आचरण एवं व्यवहार सभ्य व्यक्ति की पहचान होती है। सभ्य तथा शालीन पर्यटक का तो प्रदेश की धरती पर स्वागत हो सकता है, परंतु ग़ैर-जि़म्मेदार, मनचले तथा असभ्य लोगों के लिए तो सख्त तथा मजबूत कानूनी डंडे की आवश्यकता है। प्रदेश के भीतर आने वाले मानसिक प्रदूषण से पीडि़त बाह्य लोगों का पुलिस तथा प्रशासनिक दृष्टि से कारगर इलाज होना चाहिए। प्रदेश के लोगों को अपरिचित लोगों के संभावित तथा अप्रत्याशित व्यवहार से सचेत रहना चाहिए तथा प्रदेश सरकार द्वारा भी उनकी सुरक्षा के लिए कड़े क़दम उठाए जाने चाहिए। प्रदेश के भीतर किसी भी व्यक्ति को किसी भी कीमत पर इस तरह की खुली छूट नहीं दी जा सकती। ऐसे असभ्य तथा अमर्यादित आचरण से प्रदेश के लोगों में परेशानी एवं असुरक्षा की भावना पैदा होती है। उनके शांत जीवन में खलल पैदा होता है तथा हमारी सभ्यता तथा संस्कृति भी प्रदूषित होती है।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक घुमारवीं से हैं