सही जांच की ओर
लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा का पूरा सच सामने लाने की कवायद आगे बढ़ रही है और सुप्रीम कोर्ट सीधे इस मामले पर नजर रखे हुए है
लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा का पूरा सच सामने लाने की कवायद आगे बढ़ रही है और सुप्रीम कोर्ट सीधे इस मामले पर नजर रखे हुए है। कोर्ट ने सोमवार को प्रदेश सरकार द्वारा दायर एक स्थिति रिपोर्ट पर निराशा व्यक्त की है, जिसमें चार किसानों और एक स्थानीय पत्रकार सहित आठ लोग मारे गए थे। अदालत को लगता है कि जांच उस तरह से नहीं चल रही है, जैसी उसे उम्मीद थी। इसमें कोई शक नहीं कि इस मामले में पुलिस को पूरी सतर्कता और तेजी के साथ कार्रवाई करनी पड़ेगी। अदालत की जो अपेक्षा है, उस पर खरा उतरने के लिए जांच से जुड़े अधिकारियों को पूरी मुस्तैदी के साथ अपने दायरे में रहते हुए कार्रवाई करते हुए अदालत को आश्वस्त करना पड़ेगा।
आला अधिकारियों को सावधान रहना होगा, क्योंकि अदालत गवाहों की सूची और पूछताछ से संतुष्ट नहीं है। इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया है कि वह जांच की निगरानी के लिए उत्तर प्रदेश से बाहर के एक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करेगी। अब मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी, जिसमें पुलिस को बेहतर जवाबों के साथ सामने आना होगा। अदालत ने कहा है कि साक्ष्यों के साथ घालमेल न हो, इसलिए जांच की निगरानी के लिए वह पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करने को इच्छुक है। अदालत ने दो न्यायाधीशों के नाम भी सुझाए हैं। बहरहाल, अब सरकार की ओर से साफ हो गया है कि पत्रकार रमन कश्यप को किसानों ने नहीं मारा था, बल्कि घटना में शामिल वाहन द्वारा कुचले जाने से उनकी मौत हुई थी। पहले हमलावर किसानों पर यह आरोप लग रहा था कि उन्होंने पत्रकार को मारा है। यह बहुत दुखद है कि एक पत्रकार को इस तरह से जान गंवानी पड़ी है। गाड़ी से कुचलने वालों को दंड मिलना ही चाहिए। प्रदर्शन का लोगों को अधिकार है, लेकिन किसी तेज वाहन से ऐसे प्रदर्शन को निशाना बनाने को मंजूरी हम किसी भी पैमाने पर नहीं दे सकते। प्रदर्शनकारी किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के लिए जो लोग जिम्मेदार हैं, उन्हें जल्द सजा मिलनी चाहिए। यह काम पुलिस जितनी मुस्तैदी से करेगी, उतना ही अच्छा होगा।
जनमानस के साथ-साथ कानून-कायदे का भी पूरा ध्यान रहना चाहिए और यहां कानून-कायदे का महत्व ज्यादा है। कानून को सही अर्थों में लागू करके ही इस पूरे मामले का पटाक्षेप किया जा सकता है। किसानों के गुस्से के संदर्भ को समझने की जरूरत है। कोई भी ऐसी कार्रवाई या लीपापोती नहीं होनी चाहिए, जिससे किसानों को भड़कने का नया मौका मिले। इस देश ने किसान आंदोलन के अलग-अलग अनेक स्याह रूप देख लिए हैं, अब कतई कोई बुरा स्वरूप लोगों को मंजूर नहीं होगा। किसानों को भी कानून-व्यवस्था के साथ-साथ व्यापक समाज के हित में सोचना चाहिए। आंदोलन अपनी जगह है, लेकिन देश के माहौल को खराब करने के लिए कोई गलती नहीं करनी चाहिए। अच्छी बात है कि पुलिस ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत कुछ अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर रखा है। यह अपने आप में बड़ी कार्रवाई है, लेकिन आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट के हिसाब से जांच करते हुए न्याय की ओर बढ़ना चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो समग्रता में किसान आंदोलन के समाधान को भी बल मिलेगा और न्याय की छवि भी उत्तरोत्तर चमकदार होगी।
हिन्दुस्तान