कोरोना पीड़ितों की आक्सीजन की कमी से हुई मौतें
उत्तर में पंजाब, हरियाणा समेत दक्षिण के राज्यों से भी पर्याप्त आक्सीजन आपूर्ति में राज्य सरकारों और अस्पताल प्रबंधन की विफलता संबंधी खबरें आती रहीं। कोरोना पीड़ितों की आक्सीजन की कमी से हुई मौतों के आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि इस तरह की दुखद घटनाएं दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गोवा में घटी हैं। ऐसे राज्यों की संख्या 14 है। यह संख्या देश के कुल राज्यों की आधी है। इन राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों जैसे भाजपा, कांग्रेस, आप, शिवसेना, वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति और द्रमुक की सरकारें हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी सहित आठ राजनीतिक र्पािटयों की गठबंधन सरकार है। तमिलनाडु में द्रमुक की अगुआई वाली गठबंधन सरकार में कांग्रेस, सीपीआइ, सीपीएम और एमडीएमके आदि शामिल हैं। जाहिर है कि इन राज्यों में देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दल या तो सरकार चला रहे हैं या फिर सरकार का हिस्सा हैं।
अस्पतालों के रखरखाव और उनमें घट रही घटनाओं के लिए राज्य सरकारें ही जिम्मेदार
आज जब हर तरफ आरोप-प्रत्यारोप को दौर चल रहा है तब इस पर ध्यान देना जरूरी है कि संविधान के अनुसार अस्पतालों के रखरखाव और उनमें घट रही घटनाओं के लिए सीधे राज्य सरकारें ही जिम्मेदार हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्यों के अधिकारों का वर्णन है। इसमें दोनों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषयों की सूची दी गई है। इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और दवाखाना जैसे विषय राज्यों की सूची में दर्ज हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पतालों तथा दवाखानों के प्रबंधन की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्यों की है। वे इसके लिए किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। समवर्ती सूची के अनुसार किसी संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने का दायित्व भी राज्यों का है। इस प्रकार आज कोई भी राज्य यह बहाना नहीं बना सकता कि वह कोरोना से निपटने में असहाय है या उसके पास जरूरी अधिकार नहीं हैं।
कोरोना की दूसरी लहर के लिए अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए पीएम मोदी को कोस रहे हैं
कोरोना की दूसरी लहर के लिए पिछले एक महीने से कुछ लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोस रहे हैं। वास्तव में वे अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए ही उन पर आरोप लगा रहे हैं। एक बार जब हम इस संकट से उबर जाएंगे, तब हमें जरूर सोचना चाहिए कि इस साल की पहली तिमाही में विभिन्न जिम्मेदारों जैसे कि केंद्र सरकार, खासकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव और मंत्रालय के सभी वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, स्वास्थ्य मंत्रियों, मुख्य सचिवों, स्वास्थ्य सचिवों, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद तथा सभी सरकारों के प्रशासकों, देश के निजी अस्पतालों ने कोरोना को रोकने के लिए क्या किया या नहीं किया? अस्पतालों में आक्सीजन की कमी के लिए सरकार को दोष दे रहे निजी अस्पतालों के प्रबंधकों ने गत एक वर्ष के दौरान अपने यहां आक्सीजन भंडारण और आर्पूित क्षमता में बढ़ोतरी के लिए क्या कुछ भी किया? ध्यान रहे कि समूचे विश्व को यह पता था कि कोरोना संक्रमितों को सांस लेने की समस्या होती है। बहरहाल यह समय आरोप-प्रत्योरप का नहीं है। जैसा कि उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू ने भी कहा कि हमें इस कोरोना महामारी से एकजुट होकर लड़ना होगा, क्योंकि कम समय में बहुत अधिक काम करने हैं।
केंद्र सरकार को बहुत पहले इस आपदा के खिलाफ जुट जाना चाहिए था
हालांकि इसमें दोराय नहीं कि केंद्र सरकार को बहुत पहले इस आपदा के खिलाफ जुट जाना चाहिए था। इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने ठीक कहा कि 'कोरोना की पहली लहर के बाद सभी सरकारें, प्रशासन और लोग एक तरह से लापरवाह हो गए। सभी ने सतर्कता बरतनी छोड़ दी। इसी वजह से हम मुश्किल घड़ी में पहुंच गए। अब यह समय एक-दूसरे पर दोष मढ़ने का नहीं है। कोरोना को दूर भगाने के लिए हमें हर हाल में सकारात्मक रहना होगा।'
कोरोना को हराने के लिए देश को साहस और संकल्प की दरकार है
मोहन भागवत ने दूसरे विश्व युद्ध की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि 'जब लग रहा था कि इंग्लैंड युद्ध हार जाएगा, तब भी वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के टेबल पर एक पर्ची रखी थी, जिस पर लिखा था कि इस दफ्तर में निराशावाद के लिए कोई जगह नहीं है। हमें हारने की संभावनाओं में तनिक भी दिलचस्पी नहीं है। उसका कोई अस्तित्व नहीं है।' कोरोना को हराने के लिए भारत को भी ऐसे ही साहस और संकल्प की दरकार है। देखा जाए तो उन्होंने बिल्कुल सही बात कही। देश में ऐसा कोई भी परिवार नहीं है, जो कोरोना से किसी न किसी तरह से प्रभावित नहीं हुआ है। ऐसे में हमें इस कठिन समय से पार पाने के लिए एक महामानव की तरह साहस, संकल्प और सकारात्मकता प्रदर्शन करना ही होगा।
( लेखक लोकतांत्रिक मामलों के विशेषज्ञ हैं )