लगता है कि वह समय आ गया है जब पार्टी को कुछ सख्त फैसले लेने होंगे. जिन लोगों के कारण पार्टी की यह अवस्था हुई है उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उन्हीं के हाथों पार्टी का उत्थान होगा. सीधे शब्दों में अगर कहें तो समस्या गांधी परिवार है, गांधी परिवार समस्या का समाधान नहीं है. एनसीपी के संस्थापक नेता शरद पवार ने पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी की समस्या को बहुत सीधे तरीके से समझाने की कोशिश की. पवार ने कांग्रेस पार्टी की तुलना एक ज़मीनदार से कर दी जिसके पास अब जमीन का थोड़ा सा टुकड़ा ही बचा है.
पवार एक लम्बे समय तक कांग्रेस पार्टी का हिस्सा रहे हैं और उनमें कांग्रेस पार्टी की समझ है. पवार ने भले ही यह बात नहीं की हो कि गांधी परिवार पार्टी का नेतृत्व परिवार के बाहर किसी और को सौंप दे, पर उनका इशारा इसी दिशा में था. लेकिन इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि गांधी परिवार स्वेच्छा से पार्टी की कमान किसी और को सौंप देगी.
गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी की धुरी है
गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी की धुरी है जिसके इर्दगिर्द ही पार्टी वर्षों से घूमती रही है. पर यह धुरी अब कमजोर, बेबस और लाचार दिखने लगी है. समय आ गया है कि पार्टी के हित में गांधी परिवार के विरोध में विद्रोह का बिगुल बजा दिया जाए, और अगर गांधी परिवार स्वेच्छा से पार्टी की कमान किसी चुने हुए नेता को ना सौंप दे तो उनके खिलाफ एक्शन लिया जाए. 135 वर्ष पुरानी पार्टी किसी परिवार की जायदाद नहीं हो सकती. गांधी परिवार के कारण ही चाहे वह शरद पवार हों, ममता बनर्जी हों, जगन मोहन रेड्डी हों, हिमंता बिस्वा सरमा हों, ज्योतिरादित्य सिंधिया हों, जितिन प्रसाद हों या फिर पिछले दिनों सुष्मिता देव हों, एक-एक कर के नेता पार्टी छोड़ते चले गए. पार्टी कमजोर होती रही, पर गांधी परिवार सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के फ़िराक में ही लगी रही. जिसका नतीजा है कि कांग्रेस पार्टी अब कुछ ही राज्यों तक सिमट कर रह गयी है.
2024 का लोकसभा चुनाव भी राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा?
अमेरिका और इंग्लैंड में एक परंपरा है कि अगर कोई नेता जो राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री पद का दावेदार है और पार्टी की चुनाव में हार हो जाती है तो वह दोबारा उस पद का दावेदार नहीं होता है. उसकी जगह एक नए चेहरे को सामने लाया जाता है. कांग्रेस पार्टी दो बार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना चुकी है और दोनों चुनावों में पार्टी बुरी तरह परास्त हुई, पर किसी और को मौका देने की जगह एक बार फिर से राहुल गांधी के नेतृत्व में ही 2024 का चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है. अब सवाल उठता है कि राहुल गांधी में ऐसा क्या बदलाव आ गया है कि जिसे जनता दो बार रिजेक्ट कर चुकी हो उसे जनता इस बार सिर आंखों पर उठा लेगी और सत्ता सौंप देगी.
पार्टी के भीतर क्यों चुनाव नहीं करा रही कांग्रेस
कोरोना आया और अब लोगों ने कोरोना के साथ जीना सिख लिया. जीवन वापस पटरी पर आ गया है. राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, पर कांग्रेस पार्टी में चुनाव कराने की कोई सुगबुगाहट तक नहीं है. पिछले दो वर्षों से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं. अंतरिम का मतलब होता है टेम्पररी, ना कि पर्मानेंट. कोरोना के आड़ में गांधी परिवार चुनाव कराने से कतरा रही है, जो साफ़ दिख रहा है. उन्हें भय है कि कहीं पार्टी की कमान उनके हाथों से छिन ना जाए. पर कम से कम सोनिया गांधी ब्लॉक, जिला और प्रदेश स्तर पर चुनाव तो करवा ही सकती हैं, जो नहीं हो रहा है. क्योंकि अगर लोकप्रिय नेता सामने आ जायेंगे तो फिर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भविष्य खतरे में पड़ सकता है.
क्षेत्रीय दलों की पुछल्ली बन गई है कांग्रेस
कुछ महीने में पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, जिसमे से एक कांग्रेस शासित पंजाब भी है. आसार बहुत कम है कि ऐसा कोई चमत्कार होने वला है कि कांग्रेस पार्टी बीजेपी को हरा कर उन राज्यों में सत्ता में आ जाये जहां फिलहाल बीजेपी राज कर रही है. अगर कांग्रेस पार्टी शरद पवार को गलत साबित करना चाहती है तो उसे खोयी हुई जमीन वापस हासिल करनी होगी. इसके लिए जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी अपने घर में आग लगा कर तमाशा देखने से बचे. बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के चक्कर में ही कांग्रेस पार्टी का विनाश हुआ है. बीजेपी के हारने से कांग्रेस पार्टी ऐसे खुश होती है मानो उसी की सरकार बन गयी, जबकि इस प्रयास में वह क्षेत्रीय दलों की पुछल्ली पार्टी बनती जा रही है.
जब बीमारी लाइलाज हो जाती है, दवा का असर नहीं होता है तो फिर ऑपरेशन करना पड़ता है. समय आ गया है कि कांग्रेस पार्टी का भी ऑपरेशन हो. पार्टी खुद पर सर्जिकल स्ट्राइक करे ताकि ऐसे तत्वों से मुक्ति मिल जाए जिसके कारण पार्टी की यह दुर्गति हो रही है. शॉर्ट टर्म में इसका नुकसान हो सकता है पर लॉन्ग टर्म में इसका फायदा ही होगा.