Thomas Cup: बैडमिंटन में भारत की ऐतिहासिक जीत देखने वाले इन यादों को अपनी अगली पीढ़ी से साझा करेंगे

जब भारत को आजादी मिली तो आप कहां थे? 1971 में कब पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया? कपिल देव ने कब प्रूडेंशियल कप जीता?

Update: 2022-05-16 07:05 GMT
संदीपन शर्मा.
जब भारत को आजादी मिली तो आप कहां थे? 1971 में कब पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया? कपिल देव ने कब प्रूडेंशियल कप (Prudential Cup) जीता? कब…इस सूची में आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ और प्रश्न जोड़ें. आप 15 मई 2022 रविवार को कहां थे? आप 15:13 IST पर कहां थे, जब किदांबी 'बुद्ध' श्रीकांत (Kidambi Srikanth) कोर्ट पर उतरे और सीधे गेम में अपने इंडोनेशियाई प्रतिद्वंद्वी जोनाथन क्रिस्टी (Jonathan Christie) के शटल को तहस-नहस कर दिया? आप कहां थे, जब क्रिस्टी शटल को अपनी पहुंच से बाहर गिरते हुए देख रहे थे, फिर श्रीकांत ने मुड़कर देखा और भारी नुकसान पहुंचाने वाले अपने हथियार, यानी बैडमिंटन रैकेट को गिराकर जोर की दहाड़ लगाई? इससे पहले श्रीकांत ऐसा व्यवहार कर रहे थे मानो वे किसी विपश्यना (Vipassna) सेंटर में हों: शांत, स्थिर, अविचलित, संघर्ष के बीच में अपने स्वयं के मंत्र का जाप करने वाले भिक्षु की तरह.
आप कहां थे जब उनकी गर्जना से बैंकॉक का इम्पैक्ट एरिना गूंज उठा? क्या आपने उनकी टीम के साथियों को हर्डल रेस के एथलीट की तरह स्टैंड से छलांग लगाते और श्रीकांत को गले लगाते हुए देखा जैसे स्पार्टन्स (Spartans) अपने लियोनाइडिस (Leonidas) का अभिवादन करते हैं. क्या आपने ढोल बजते हुए और 'भारत माता की जय' के नारे सुने? जब बैंकॉक (Bangkok) के बैडमिंटन कोर्ट में राष्ट्रगान गाया गया तो क्या आप खुशी से रो पड़े? आह, बहुत कुछ है याद रखने के लिए. बहुत कुछ पूछना है. किसने सोचा होगा, शेक्सपियर ने भी लिखा होता, इंडिया हैड सो मच ऑफ़ बैडमिंटन इन देम? किसने सोचा होगा कि हम इसके गवाह बनेंगे?
पांच भारतीयों ने इंडोनेशिया को धूल चटाई
उस समय तक थॉमस कप के 73 साल पुराने इतिहास में सिर्फ पांच देश इस प्रतिष्ठित बैडमिंटन खिताब को जीतने में कामयाब हुए थे. 1979 के बाद से भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2010 में हुआ, जब वह क्वार्टर फाइनल में पहुंचा था. अगर यह क्रिकेट होता और किसी ने भारत के पुरुष विश्व कप जीतने की संभावनाओं पर दांव लगाया होता, तो भारत के सेमीफाइनल में पहुंच जाने के बावजूद कुछ निडर पत्रकार यह स्वीकार करते कि उनके द्वारा अतीत में कही गई बातें या उनके द्वारा लगाए गए कयास गलत थे. लेकिन, भारत ने इसे यूं ही नहीं जीता. भारत ने 14 बार इस खिताब को हासिल करने वाले देश इंडोनेशिया को 3-0 से हराकर थॉमस कप को हासिल किया है. नियोलॉजी यानि कुछ शब्दों को नया अर्थ देने के लिए क्षमा करें, बैटल ऑफ़ थॉमसपाइले (Battle of Thermopylae) 300 ने नहीं, बल्कि सिर्फ पांच बहादुर भारतीयों ने जीती जो अपने भाग्य में विश्वास करते थे. पांच पुरुष जो मानते थे कि वे महज धैर्य और हिम्मत के साथ बैडमिंटन के ज़ेरेक्स (Xerxes), इंडोनेशिया को मात दे सकते हैं.
मैच था या बिलीव इट ऑर नॉट का एपिसोड
भारतीयों का मानना था कि वे फाइनल की शुरुआत से ही फिर से इतिहास लिखेंगे. युवा लक्ष्य सेन (Lakshya Sen) ने एंथनी गिंटिंग (Anthony Ginting) के खिलाफ पहले मैच में जो स्क्रिप्ट लिखी थी उसे आप बैक-फ्रॉम-बिहाइंड वीरतापूर्ण जीत में देख सकते हैं. आप देख सकते हैं, ठीक है, आइए स्टोरी पर टिके रहते हैं. भारत के संकल्प का निर्णायक क्षण पहले डबल्स मैच के अंत में आया. दूसरे गेम में 17-20 से पीछे, पहले से ही 0-1 से नीचे, एस रंकीरेड्डी (S Rankireddy)और चिराग शेट्टी (Chirag Shetty) की भारतीय जोड़ी ने मुश्किल जीत हासिल करते हुए हाई रैंकिंग वाली इंडोनेशियाई जोड़ी को हराया. ऐसा लगा मानो यह रिप्ले के बिलीव इट या नॉट का कोई एपिसोड हो.
इस तरह भारत ने खिताब अपने नाम किया
शेट्टी और रंकीरेड्डी ने अपनी छाती थपथपाई, कोर्ट में डांस किया और उग्र टाइगर की तरह गरजे. उन्हें सेलिब्रेट करते हुए देखकर आप समझ सकते हैं कि केवल भारत के इतिहास रचने के लिए ही वहां इंडोनेशिया था. कुछ ही मिनट पहले, लक्ष्य सेन ने शुरुआती मुकाबले में चमत्कार दिखाया. अपने प्रतिद्वंद्वी के लगातार कोर्ट के सबसे दूर के कोने पर हमला करने के साथ, सेन थोड़े नर्वस दिखाई दिए. जब वह पहला गेम हार गए और दूसरे में 9-11 से पिछड़ गए तब ऐसा लगा कि सेन को झटका लगेगा, जिससे भारत की शुरुआत ठीक नहीं होगी. लेकिन, सेन ने 9-11 पॉइंट से बढ़त हासिल करते हुए तीन शानदार रोमांचकारी मैचों में पहला मैच जीत लिया.
लेकिन, फाइनल मैच श्रीकांत ने खेला. कोर्ट में एंट्री करने के साथ ही श्रीकांत ने आपको महसूस कराया कि वह वहां सभी को बताने आए हैं कि शांत हो जाओ, मैं हूं ना. मैदानी इलाकों से बहने वाली शांत धारा की तरह उन्होंने शुरुआत की और फिर समय आने पर विकराल नदी का रूप धारण कर लिया जो अपने रास्ते में सब कुछ बहाते हुए, चट्टानों को तहस-नहस करते हुए अपना रास्ता बनाती है. उसने अचानक आक्रमण किया, उसने चूर-चूर किया, वह असंभव परिस्थितियों से उबर गया, असंभव एंगल पर थम सा गया और शायद उसने अपने जीवन का यादगार मैच खेला. इस सब के बीच उनके घुटने पर बंधा पट्टा लगभग गिर गया. लेकिन, श्रीकांत ने ध्यान ही नहीं दिया. वह पूरी तरह से एक अलग दुनिया में थे जहां अपने लक्ष्य के रास्ते में दर्द, संदेह या भय जैसी सामान्य बातों के लिए कोई जगह नहीं थी.
मैच में एक समय ऐसा भी आया जब श्रीकांत का सामना फोरहैंड के सुदूर कोने में ड्रिफ्ट से हुआ. उन्होंने जो बढ़त हासिल की थी वह बराबर हो गया. लेकिन, श्रीकांत ने तुरंत अपना खेल बदल दिया, नेट के पास खेलना पसंद किया और फिर मौका मिलने पर मिड-कोर्ट में शटल स्मैश करने लगे. अपने शांत, आक्रामक और चतुर चालों की बदौलत उन्होंने भारत के इतिहास को बदल दिया. उन्होंने कपिल देव, एमएस धोनी, नीरज चोपड़ा और विश्वनाथन आनंद जैसे प्लेयर्स की तरह भारत के खेल गौरव को बढ़ाया.
हम दुनिया के चैंपियन हैं
बैंकॉक में जीत स्पोर्ट्स की दुनिया में मायने रखती है. जिन लोगों ने मैच देखा वे अपने बच्चों और पोते-पोतियों से कहेंगे कि एक बार की बात है पांच बहादुर भारतीय थे जिन्होंने असंभव को संभव बनाया. उन पांचों ने उस समय जीत हासिल की, जब बहुतों ने उनसे उम्मीद नहीं की थी. उन्होंने भारतीयों को तिरंगे को ऊपर जाते हुए और बैडमिंटन विश्व कप में राष्ट्रगान की धुन सुनने का आनंद दिया. वे कृतज्ञता और खुशी के साथ कहेंगे, इतने भारतीयों पर इतने कम लोगों का इतना कर्ज पहले कभी नहीं था. आप कहां थे जब लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, एचएस प्रणय, एस रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी ने हम सभी को गाने के लिए प्रेरित किया: हम दुनिया के चैंपियन हैं?
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