महाराष्ट्र में तनाव है क्या, पता करो चुनाव है क्या? राज ठाकरे हमले में घायल महिला अधिकारी से मिले, फेरीवाले के बहाने उत्तर भारतीयों पर निशाने?

अगले साल फरवरी में मुंबई, ठाणे महानगरपालिकाओं सहित कई बड़े महापालिकाओं के चुनाव हैं

Update: 2021-09-01 13:10 GMT

शमित सिन्हा।

मनसे प्रमुख राज ठाकरे (Raj Thackeray, MNS Chief) ने ठाणे के जुपिटर अस्पताल में जाकर ठाणे महापालिका की सहायक आयुक्त कल्पिता पिंपले से मुलाकात की. मुलाकात कर उनसे कहा कि, 'जल्दी ठीक हो जाएं, आगे देखता हूं क्या करना है.' कल्पिता पिंपले एक फेरीवाले द्वारा कोयते से किए गए हमले में घायल हो गई थीं. उनकी तीन ऊंगलियां कट कर गिर गई थीं. वे अनधिकृत फेरीवालों को हटाने गई थीं तब उन पर अमरजीत सिंह यादव नाम के एक फेरीवाले ने हमला कर दिया था. हमलावर अमरजीत यादव को तत्काल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पर अब इस घटना ने राज ठाकरे स्टाइल की राजनीति को फिर से हवा दे दी है. उत्तरभारतीयों के खिलाफ एक बार फिर राजनीति करते हुए राज ठाकरे ने हमलावर अमरजीत यादव को पुलिस की गिरफ्त से छूटने के बाद पीटने की धमकी दी है. यहां राहत इंदौरी का एक मशहूर शेर बरबस याद आता है, 'क्या कहा, सरहद में बड़ा तनाव है क्या, ज़रा पता तो करो चुनाव है क्या ?'

अगले साल फरवरी में मुंबई, ठाणे महानगरपालिकाओं सहित कई बड़े महापालिकाओं के चुनाव हैं. याद रहे कि मुंबई महानगरपालिका का सालाना बजट देश के कई राज्यों के सालाना बजट से ज्यादा होता है. ठाणे महापालिका मुंबई के पड़ोस की महापालिका है. धीरे-धीरे चुनाव की तैयारियों से जुड़ी स्थितियां साफ होती जा रही हैं. राज ठाकरे एक बार फिर मराठी विरुद्ध उत्तर भारतीयों का मुद्दा उठाने वाले हैं. बस देखना यह है कि कितने जोर-शोर से उठाने वाले हैं. फिलहाल शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के खिलाफ भाजपा और एमएनएस करीब आते हुए दिख रहे हैं. हाल ही में राज ठाकरे की भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटील (Chandrakant Patil, Maharashtra BJP State President) से नासिक में मुलाकात भी हुई थी. भाजपा की शर्त है कि वे उत्तर भारतीयों के खिलाफ की जाने वाली राजनीति को लगाम दें.
फेरीवाला 'यादव' है तो आक्रामक हुए राज ठाकरे, 'जाधव' होता तो MNS सामने आती?
इसके पीछे सीधा-सीधा वोटों का गणित है. मुंबई और ठाणे में पिछले कुछ सालों में मराठी भाषी लोगों की तादाद कम होती चली गई है. इसलिए राज ठाकरे की यह राजनीति पुरानी पड़ गई है. इससे कम से कम मुंबई और ठाणे में तो कोई खास प्रभाव पड़ने वाला नहीं है. पर सच्चाई यह भी है कि मनसे के वोटों की कुल जमा कमाई ही भूमिपुत्रों के हक की आवाज उठाने वाली छवि से हुई है. इस राजनीति से उन्हें नासिक और पुणे में तो फायदा हो सकता है, लेकिन मुंबई और ठाणे में बस वे वोट काटने वाली पार्टी बन कर ही सामने आ पाएंगे. फिर क्यों फेरीवाले के खिलाफ़ पिटाई की बात कर रहे हैं राज ठाकरे?
राज ठाकरे की पार्टी के प्रवक्ता ने दी सफाई, अनधिकृत फेरीवालों के खिलाफ है लड़ाई
इस पूरे मुद्दे पर जब हमने सवाल किया तो Tv9 भारतवर्ष डिजिटल से बात करते हुए एमएनएस प्रवक्ता संदीप देशपांडे (MNS Spokesperson Sandeep Deshpande) ने कहा कि, 'राज ठाकरे ने इस मामले में कब उत्तरभारतीयों के बारे में कुछ गलत कहा? यहां दो तरह के फेरीवाले हैं- अधिकृत और अनधिकृत. नियमों के तहत रेलवे स्टेशनों के 150 मीटर के भीतर फेरीवाले नहीं होने चाहिए. वे चाहे परप्रांतीय (उत्तर भारतीय) हों या मराठी. सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में राज्य सरकार से हॉकर्स पॉलिसी लाने को कहा था. हॉकिंग जोन बनाने की बात हुई थी. ताकि हॉकर्स तय जगहों पर ही बैठ सकें. आज तक राज्य सरकार ने हॉकर्स पॉलिसी लाने के लिए कुछ भी नहीं किया. यह लड़ाई उत्तर भारतीयों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि अनधिकृत फेरीवालों के ख़िलाफ़ है.'
हालांकि यह बात भी आम तौर पर सबको पता है कि अनधिकृत फेरीवालों में ज्यादातर परप्रांतीय (उत्तर भारतीय) ही हैं और जब अधिकृत करने की बात आती है तो उनके पास काग़ज़ात कम पड़ जाते हैं. उनके पास डॉक्यूमेंट्स नहीं होते कि वे धंधे को अधिकृत करवा सकें. इसके अलावा संदीप देशपांडे ने यह भी कहा कि, ' फेरीवाले ने एक महिला पर अटैक किया है. एक अधिकारी पर अटैक किया है. वो भले ही यादव है, लेकिन अगर वह जाधव भी होता तो राज ठाकरे इसी तरह आवाज उठाते. मिसाल के तौर पर उन्होंने कहा कि कुछ सालों पहले एक ट्रैफिक हवलदार पर बांद्रा पेट्रोल पंप के पास हमला हुआ था. हमलावर परप्रांतीय नहीं था, फिर भी राज ठाकरे इसी तरह हरक़त में आए थे.'
इस बार राज ठाकरे सीधे-सीधे उत्तर भारतीयों को टारगेट करने से बच रहे
फिलहाल राज ठाकरे की पार्टी के सामने बड़ा संकट यह है कि वे अगर अपनी पार्टी को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो उत्तर भारतीयों (खास तौर से उत्तर प्रदेश और बिहार से महाराष्ट्र आकर बसे लोग) के ख़िलाफ़ नफ़रत की राजनीति को भूलना होगा. सबको साथ लेकर चलना होगा. पर ऐसा होता है तो समस्या यह है कि एमएनएस अपनी जड़ों से ही कट जाएगी. आज जिस वजह से पार्टी जहां तक भी पहुंची है, वहां से भी हट जाएगी.
मराठियों के हक़ की बात पर डटे हुए भी, पार्टी का दायरा बढ़ाने में जुटे हुए भी
यही वजह है कि पिछले कुछ समय से राज ठाकरे बार-बार अपने भाषणों में यह ज़िक्र करते हैं कि जो बरसों पहले यहां आ गए, वे भी यहीं के हैं और अगर एमएनएस मराठी माणूस की बात करती है तो उसमें वे भी शामिल हैं. इस तरह से राज ठाकरे की राजनीति में एक पॉलिसी शिफ्ट दिखाई दे रहा है. यानी भूमिपुत्रों के हक़ की बात पर डटे हुए भी हैं और पार्टी का दायरा बढ़ाने में जुटे हुए भी हैं.
जो बरसों से यहां हैं, उनसे लड़ाई कहां है? वो यहीं के हैं चाहे पूर्वज उनके बिहार-यूपी के हैं
इसलिए राज ठाकरे इस बार सीधा उत्तर भारतीय विशेषण का चुनाव करने से बच रहे हैं. 31 अगस्त को उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उस फेरीवाले को पुलिस जब छोड़ेगी तो हम पकड़ कर पीटेंगे. एक तरफ तो राज पूरे समुदाय को टारगेट करने से बच रहे और 'परप्रांतीय' की बजाए 'अनधिकृत फेरीवाला' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं. दूसरी तरफ राज ठाकरे की मराठी अस्मिता की राजनीति बंद नहीं हुई है. शब्दों में 'पिटाई करने, मस्ती उतारने' वाली आक्रामकता भी कायम है. फ़र्क इतना है कि मराठी अस्मिता की बात करते हुए उत्तर भारतीयों को नाराज ना करने की सावधानी भी बरत रहे हैं. वैसे भी कुछ महीने पहले राज ठाकरे ने कई उत्तर भारतीयों को अपनी पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण दिया था और कई उत्तर भारतीय एमएनएस में शामिल भी हुए.
राज ठाकरे और अन्य हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं में एक बड़ा फ़र्क
महाराष्ट्र में रहने वाले उत्तर भारतीय भी यह महसूस करते हैं कि एक महाराष्ट्र का नेता महाराष्ट्र और मराठी हक़ की बात नहीं करेगा तो क्या कोई बिहार और यूपी का नेता करेगा? लेकिन राज ठाकरे की राजनीति की जो बात चुभने वाली है वो यह कि भूमिपुत्रों की राजनीति में राज वो हिमाक़त कर जाते हैं जिसे ना नैतिकता इज़ाज़त देती है और ना संविधान इज़ाज़त देता है. लेकिन अब रणनीति में नया शिफ्ट यही है कि एमएनएस हाल के कुछ दिनों से इस तरह की राजनीति से परहेज कर रही है. ऐसे में अपनी संस्कृति, अपनी मिट्टी, अपने लोग, अपने राज्य की बात उठाना अच्छी बात है. राज ठाकरे ने कभी यह इच्छा भी नहीं जताई है कि उन्हें दिल्ली और देश की राजनीति में कोई रुचि है. वे जहां के हैं, वहां की बात करते हैं तो क्या गलत करते हैं?
जबकि आम बिहार और उत्तरप्रदेश के नेताओं में समस्या यह है कि अपने क्षेत्रों और गांवों को समझे बिना, उनके पिछड़ेपन को दूर किए बिना सीधा देश की राजनीति में लग जाते हैं. अपने क्षेत्र की सड़कें नहीं सुधार सकते, देश की सरहद की सुरक्षा पर बड़े-बड़े लेक्चर सुन लो. अगर आज़ादी के इतने सालों में वहां के कई बड़े नेता देश की राजनीति के चक्कर में ना पड़ते हुए अपने-अपने क्षेत्रों की जिम्मेदारियों को ही निभाए होते तो आज उत्तरभारतीयों को अपने-अपने घर-द्वार छोड़ कर दिल्ली-मुंबई-पंजाब नहीं जाना पड़ता.
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