भारत और नेपाल के संबंधों में सुधार की उम्मीद बंधी

नेपाल में संसदीय चुनावों के बाद चुनाव आयोग ने जितनी सीटों के परिणाम घोषित किए हैं,

Update: 2022-12-19 14:50 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | नेपाल में संसदीय चुनावों के बाद चुनाव आयोग ने जितनी सीटों के परिणाम घोषित किए हैं, उससे स्पष्ट संकेत हैं कि पांच दलों के गठबंधन जिसमें नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-माओवादी सेंटर, सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनमोर्चा शामिल हैं, की सत्ता में वापसी तय है। यह चीन के लिए बड़ा झटका होगा। चीन पूर्व प्रधानमंत्री केपीएस ओली की अगुवाई में कम्युनिस्टों को प्रोत्साहन देता रहा है। ओली चुनावों में कामयाब प्रदर्शन करने में सफल नहीं हुए हैं। जनता ने उनकी पार्टी सीपीएन-यूएमएल (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड माक्र्ससिस्ट-लेनिनिस्ट) को खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग ने 275 सीटों में से 165 सीटों का परिणाम जारी कर दिया है। शेष 110 सदस्य आनुपातिक चुनाव प्रणाली के माध्यम से चुने जाएंगे। नेपाली कांग्रेस 57 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। सीपीएन-यूएमएल को 44, सीपीएन (माओवादी सेंटर) को 18, सीपीएन (यूनीफाइड सोशलिस्ट) को 10 सीटें मिली हैं। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की अगुवाई में पांच सदस्यीय गठबंधन जल्द ही सरकार बनाने का दावा पेश कर सकता है।

प्रधानमंत्री देउबा के समक्ष कई चुनौतियां हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह स्थापित तथ्य है कि नेपाल और भारत के बीच रिश्तों को बिगाडऩे की चीन लगातार कोशिश कर रहा है। 2015 में भारत ने मधेशी लोगों के हितों की रक्षा के लिए नेपाल पर पांच महीने लंबी अनौपचारिक नाकेबंदी कर दी थी। इस घटना ने नेपाल को चीन की ओर धकेल दिया था। अब चीन बैकफुट पर होगा, क्योंकि नई सरकार भारत से सम्बंध सुधारने के लिए उत्सुक होगी। यह चीन के लिए बुरी खबर है। चीन ने कम्युनिस्टों के ओली धड़े पर पूरी तरह नियंत्रण कर लिया था। यह धड़ा 2017 के चुनावों में नेपाली कांग्रेस को शिकस्त देकर सत्ता में आया था। अब नई सरकार के सामने भारत के साथ पुराने संबंधों को मजबूत करने में कोई बाधा नहीं है। नई सरकार का यह सबसे प्रमुख कार्य होगा। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल को अपने पक्ष में करने के लिए व्यक्तिगत प्रयास किए थे। अरबों डॉलर की वित्तीय सहायता की घोषणा की थी। चीन द्वारा नेपाल में किए गए निवेश का दोहरा उद्देश्य है। पहला- बड़े पैमाने पर निवेश से अच्छा रिटर्न और नेपाल को भारत से दूर रखना। दूसरी बात नेपाल-भारत के बीच खुली सीमा होने से भारत में चीनी माल का भेजना आसान होना। देउबा चीन को नाराज किए बिना इन पहलों पर लगाम लगा सकते हैं। साफ है कि नेपाल में चीन के लिए अब ज्यादा गुंजाइश नहीं है, क्योंकि ओली की पार्टी चुनावों में पृष्ठभूमि में चली गई है।
उधर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब तक आधा दर्जन बार नेपाल का दौरा कर चुके हैं, जो दोनों देशों के आपसी मेलजोल को दर्शाता है। भारत ने कोविड महामारी में नेपाल को मानवीय आधार पर सहायता दी थी, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हुई है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कर्मवीर योजना भी लागू की जा सकती है, जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। उल्लेखनीय है कि नेपाल के 28,000 युवाओं की भारतीय सेना में भर्ती की जानी है। भारत के सेना प्रमुख ने इन पदों को वापस लेने की धमकी दी थी, लेकिन भारत सरकार ने पुराने संबंधों की रक्षा के लिए इससे परहेज किया। अब नेपाल में नई सरकार बनने के बाद यह योजना लागू होगी। अमरीका भी नेपाल में अपनी पैठ बनाने के लिए चीन को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है। अमरीका ने यहां वित्तीय पहल की है। देउबा सरकार ने अलग रुख अपनाया हुआ है, क्योंकि अमरीका सामान्य रूप से आर्थिक सहायता देता है, जबकि चीन कर्ज के जाल में फंसाता है। पाकिस्तान और श्रीलंका समेत अनेक देशों को वह बर्बाद कर चुका है। अंतिम आकलन यही कि नेपाल और भारत के रिश्ते रणनीतिक रूप से मजबूत हो रहे हैं।

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