फिर चली बदलाव की लहर

ऐसा लगता है कि लैटिन अमेरिका में फिर से बदलाव की लहर चल रही है।

Update: 2020-10-30 15:17 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ऐसा लगता है कि लैटिन अमेरिका में फिर से बदलाव की लहर चल रही है। पहले बोलिविया में जनता ने इवो मोरालेस की सोशलिस्ट पार्टी के पक्ष में भारी मतदान कर उसे सत्ता में लौटाया। मोरालेस का पिछले साल दक्षिणपंथी ताकतों ने तख्ता पलट दिया था। उसके बाद चिली में भी वामपंथ की बड़ी जीत हुई। वहां हुए संविधान दोबारा लिखे जाने के मुद्दे पर हुए जनमत संग्रह में 78.24 यानी दो तिहाई से ज्यादा लोगों ने नए संविधान का समर्थन किया। राष्ट्रपति सेबास्टियन पिन्येरा की रुढ़िवादी सरकार कई हफ्तों के प्रदर्शनों के दबाव में इस जनमत संग्रह के लिए तैयार हुई थी। प्रदर्शन करने वाले लोग बेहतर शिक्षा, ऊंची पेंशन और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को खत्म करने की मांग कर रहे थे। जनमत संग्रह में करीब एक करोड़ 40 लाख चिलीवासी वोट डालने के योग्य थे। इसमें दो सवाल पूछे गए थेः क्या संविधान को दोबारा लिखा जाना चाहिए, और अगर हां तो यह काम किसे करना चाहिए। मतदाताओं को दो विकल्प दिए गए थे- एक तो लोगों के द्वारा चुनी हुई संवैधानिक परिषद के जरिए या फिर एक ऐसी मिली-जुली परिषद के जरिए जिसमें आधे संसदीय प्रतिनिधि हों और आधे आम लोगों में से चुने गए प्रतिनिधि। करीब 79 फीसदी चिलीवासियों ने पूरी तरह से चुनी हुई परिषद में समर्थन जताया। चिली लैटिन अमेरिका के सबसे अधिक असमानता वाले देशों में है। चिली में मौजूद असमानताओं को लेकर 2019-20 में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। संविधान बदलने के मुद्दे पर जनमत संग्रह पहले इसी साल अप्रैल में होने वाला था लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे टाल दिया गया। महामारी के कारण कुछ हफ्तों के लिए विरोध प्रदर्शन बंद हुए थे, लेकिन फिर शुरू हो गए।

अक्टूबर 2019 से इस साल फरवरी के बीच विरोध प्रदर्शनों में कम से कम 30 लोगों की मौत हुई। चुनाव से एक हफ्ते पहले ही देश में कई जगहों पर भारी दंगे हुए और आगजनी की घटनाएं बड़े पैमाने पर हुईँ। मौजूदा संविधान सैनिक तानाशाह आगस्तो पिनोशे (1973-90) के दौर में लिखा गया। नया संविधान पिनोशे की विरासत से देश को पूरी तरह से अलग कर देगा। वामपंथी विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान संविधान में ऐसे प्रावधान हैं, जो असमानता को बढ़ावा देते हैं। इनमें संपत्ति के अधिकारों को वरीयता, सेवा के क्षेत्र में निजी कंपनियों की मजबूत भूमिका और प्रमुख कानूनों को बदलने में मुश्किलें प्रमुख रूप से शामिल है। अब इन सभी प्रावधानों को बदलने का रास्ता साफ हो गया है।

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