शब्दों के जादूगर: शरणार्थियों के संघर्ष की अभिव्यक्ति का सम्मान

जिनमें ऐसे जनजीवन को अभिव्यक्त किया गया है, जो अभी तक अभिशप्त है।

Update: 2021-10-09 01:50 GMT

साहित्य के नोबेल के लिए प्रोफेसर अब्दुलरजाक गुरनाह का नाम एकदम चौंकाने वाला है। अब्दुलरजाक गुरनाह का नाम वैसे लेखक के रूप में सामने आता है, जिन्होंने शरणार्थियों के दुख-दर्द एवं संघर्ष की दास्तान को इस तरह से बयान किया है कि वह शब्दों के जादूगर लगते हैं। वह ऐसे चितेरे हैं, जिनके शब्दों से पीड़ा की अभिव्यक्ति के नए कोलाज खुलते जाते हैं। यह विशेषता उनकी तमाम रचनाओं में दिखाई देती है।

उन्होंने अपनी लेखनी के जरिये उपनिवेशवाद के प्रभाव एवं नई तरह की सांस्कृतिक उठा-पटक को अपने लेखन का मुख्य आधार बनाया है। असल में अब्दुलरजाक का अपना जीवन भी शरणार्थी जीवन रहा है। तंजानिया के छोटे से द्वीप जंजीबार से चलकर लंदन तक का उनका सफर संघर्ष की एक ऐसी दास्तान है, जिसमें दुख, पीड़ा एवं दुनिया की खुशबू समाई है। वर्ष 1948 में जंजीबार में पैदा हुए हुए अब्दुलरजाक ने डॉक्टरेट की डिग्री केंट विश्वविद्यालय से प्राप्त की है।
उन्होंने जब 21 वर्ष की उम्र में लिखना शुरू किया था, तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह साहित्यकार ही बनेंगे। उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि 1993 में रचे गए उनके उपन्यास पैराडाइज से मिली। यह वास्तव में उनकी शोध यात्रा की अभिव्यक्ति है, जिसमें उन्होंने शरणार्थी जनजीवन की पीड़ा एवं तंजानिया में पल-बढ़ रहे एक लड़के की कहानी है। इस उपन्यास का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
उनकी रचनाओं में सुख-दुख, अकेलापन और उदासीनता व्याप्त है। उनके लेखन को किसी और लेखक से परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि शरणार्थी पीड़ा के जिस मर्म को उन्होंने अपनी रचनाओं में व्यक्त किया है, वैसा सिर्फ वही कर सकते हैं। आधुनिक जीवन की विसंगतियों को उन्होंने अपने रचना संसार में जिस तरह चित्रित किया है, वह अद्भुत है।
इन दिनों जब साहित्य के नोबेल की बात होती है, तो उसमें राजनीति एवं दुनिया भर में विभिन्न भाषाओं में रचे साहित्य को तुलनात्मक अध्ययन की कसौटी पर परखा जाता है, परंतु समय के साथ जो शब्द हाशिये पर छूट गए हैं, उनसे साहित्य का नया संसार पैदा करने वाले कुछेक रचनाकारों में उनका नाम सम्मान से लिया जा सकता है।
उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलना इस बात की गवाही है कि अब भी शब्द की संरचना में मानवीय मूल्य मुख्यधारा का वह आवेशपूर्ण आलोक है, जिससे आने वाली नस्लों एवं भविष्य को हम संजोकर रख सकते हैं। उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियों में बाई द सी, द लास्ट गिफ्ट एडमिरिंग साइलेंस एवं मेमोरी ऑफ डिपार्चर जैसी पुस्तकें हैं, जिनमें ऐसे जनजीवन को अभिव्यक्त किया गया है, जो अभी तक अभिशप्त है।

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