by Lagatar News
दीपक अम्बष्ठ
बेरंग कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के माध्यम से रंग में आने की कोशिश कर रही है, लेकिन जो रंग में आने की कोशिशें ही बेरंग करतीं, तो फिर इसका इलाज क्या ? पार्टी लंबे समय से एडहॉक (तदर्थ) पार्टी अध्यक्ष के साथ चल रही है. कांग्रेस नेता और पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को छोड़ कर हर कांग्रेसी चाहता है कि राहुल गांधी ही पार्टी अध्यक्ष बनें. लेकिन जिम्मेदारियों से बेफिक्र राहुल गांधी का राजनीति में अपना अंदाज है. ऐसा अंदाज, जैसा किसी ने कभी पहले देखा न सुना.
पार्टी अध्यक्ष पद तो क्या किसी भी जिम्मेदारी को स्वीकार करने से बचते राहुल गांधी वस्तुतः हर काम करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन यह संभव कैसे है कि पानी में उतरे बिना कोई तैरना सीख ले ? पार्टी की ओर से जारी जानकारी के अनुसार 22 सितंबर को पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव की अधिसूचना जारी होगी. 24 सितंबर से नामांकन दाखिल किए जा सकेंगे. यदि अध्यक्ष पद के लिए एक से अधिक उम्मीदवार मैदान में होते हैं, तो 17 अक्टूबर को मतदान होगा. दो दिन के बाद विजेता के नाम की घोषणा कर दी जाएगी.
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में देश के विभिन्न राज्यों से कुल नौ हजार के करीब मतदाता हैं, जो अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. यह सब तो जोड़ जमा हिसाब है. कांग्रेस लोकतंत्र की बात कहती है. चुनाव की बात करती है, लेकिन यह भी कहती है कि यदि राहुल गांधी अध्यक्ष पद के लिए तैयार हो जाते हैं तो फिर चुनाव की कोई जरूरत नहीं है? पार्टी की रणनीति और रवैया पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. जी23 के सदस्यों के अलावा कांग्रेस के नेता शशि थरूर और मनीष तिवारी जैसे नेताओं ने संकेत दिए हैं कि यदि चुनाव की बात हो रही है, तो प्रक्रिया में गोपनीयता कैसी? शशि थरूर ने तो यहां तक कहा है कि वह पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.
जानकार कहते हैं कि जी23 के नेता अध्यक्ष पद के लिए अपना भी उम्मीदवार उतार सकते हैं. यह बात थोड़ी और बढ़ी, तो यह तय है कि राहुल गांधी फिर पीछे हटेंगे, पृष्ठभूमि में जाएंगे. चुनाव लड़ कर अध्यक्ष बनने के प्रति अपनी अनिच्छा सार्वजनिक करेंगे. कांग्रेस का विक्षुब्ध खेमा अध्यक्ष पद के चुनाव की घोषणा को अवसर के रूप में देख रहा है. कांग्रेस को नेहरू-गांधी परिवार के साये से दूर निकाल ले जाने के रास्ते के रूप में देख रहा है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी का यह कहना कि चुनाव प्रक्रिया संदेह के घेरे में है, बहुत कुछ कहता है. उन्होंने चुनाव प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री से पूछा है कि मतदाता सूची या कहें मतदान करने वाले प्रतिनिधियों के नामों की जानकारी सार्वजनिक किए बगैर निष्पक्ष चुनाव के दावे किस आधार पर किए जा रहे हैं?
हालांकि मधुसूदन मिस्त्री कह रहे हैं कि मतदाता सूची सार्वजनिक कर दी जाएगी. लेकिन असंतुष्ट खेमा उनकी इस बात पर भरोसा नहीं कर रहा है. मनीष तिवारी पूछ रहे हैं कि क्लब स्तर के चुनाव में भी ऐसा नहीं होता है, जैसा कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए किया जा रहा है. क्लब स्तर पर भी चुनाव लड़ने वाले जानते हैं कि मतदाता कौन हैं. और यदि प्रत्याशी को जानकारी ही न रहे कि मतदाता कौन है तो फिर गड़बड़ियों की संभावना बेहिसाब बढ़ जाती है. असंतुष्ट कांग्रेस नेता ने यह भी पूछा है कि चुनाव लड़ने वाले को क्या राज्यों में भटकना होगा ? मधुसूदन भरोसा दिला रहे हैं कि मतदाताओं की सूची प्रदेश कांग्रेस कार्यालयों में है. इसे चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को सौंप दिया जाएगा.
लेकिन ऐसी मांग पूर्व में उठाने वाले कांग्रेस नेता आनंद शर्मा को भी अभी तक अपने सवालों के जवाब कांग्रेस पार्टी की ओर से नहीं मिले हैं. कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए 10 प्रस्तावकों की जरूरत पड़ती है. मनीष तिवारी पूछते हैं, यदि चुनाव लड़ने वाले को यही पता न हो कि मतदाता कौन है और वह किसी को प्रस्तावक बना ले, बाद में पता चले कि वह कांग्रेस का मतदाता ही नहीं है, तो फिर उम्मीदवार का पर्चा रद्द कर दिया जाएगा. इससे तो चुनाव में धांधली, बेईमानी की संभावना बढ़ जाएगी. इस पर रोक जरूरी है. इसके लिए चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी रखना होगा.
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने स्वामी विवेकानंद को कोट करते हुए कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद में उनकी रुचि है और वह भी चुनाव लड़ सकते हैं. शशि थरूर के इच्छा जताते ही कांग्रेस की प्रतिक्रिया भी तत्काल आ गई है. पार्टी प्रवक्ता गौरव वल्लभ कहते हैं कि चुनाव की प्रक्रिया जारी है. चीजें सार्वजनिक कर दी गई हैं. जो चाहे चुनाव लड़े. सारी बातें स्पष्ट हैं. गौरव बल्लव की स्पष्टता में भी आक्रोश साफ झलकता है. यह बात समझी जा सकती है कि कांग्रेस के गांधी खेमे में बेचैनी कितनी है.
गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से इस्तीफे के बाद जी23 के नेता कभी समूह में तो कभी अकेले आजाद से लगातार मिल रहे हैं. उनका सार्वजनिक बयान होता है कि यह शिष्टाचार मुलाकात है. लेकिन क्या हकीकत इतनी सी है? बिल्कुल नहीं. असंतुष्ट उन संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं कि पार्टी अध्यक्ष पद पर किसे उतारा जाए, उनकी रणनीति कैसी हो. यह खेमा संकेत देता रहा है कि नेहरू-गांधी परिवार खासकर राहुल गांधी से कांग्रेस का भला नहीं हो सकता है. यदि कांग्रेस को फिर से मुख्यधारा की राजनीति में वापसी करनी है, तो पार्टी को नेहरू- गांधी परिवार के साये से दूर ले जाना होगा.