राज्य सरकार व राज्यपाल के बीच खींचतान चिंता का विषय

Update: 2023-07-20 03:26 GMT

Written by जनसत्ता: पिछले कुछ समय में अलग-अलग मसलों पर विभिन्न राज्य सरकारों और राज्यपाल के बीच जिस तरह की खींचतान देखी गई है, उससे फिर यह सवाल उठा है कि ऐसे टकराव का हासिल क्या है और इससे आखिरी तौर पर किसका हित प्रभावित होता है। हाल ही में पंजाब के राज्यपाल ने राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिख कर बताया कि पिछले महीने आयोजित विधानसभा का दो-दिवसीय सत्र ‘कानून एवं प्रक्रिया का उल्लंघन था’।

इसलिए वे इस सत्र के दौरान पारित चार विधेयकों की वैधता को लेकर अटार्नी जनरल यानी महान्यायवादी की सलाह लेने या राष्ट्रपति के पास भेजने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। यानी राज्य विधानसभा में पारित इन विधेयकों के कानून बनने के लिए उस पर राज्यपाल के हस्ताक्षर का मामला भी इसका कोई हल निकलने तक रुका रहेगा।

जाहिर है, राज्यपाल के इस पत्र के बाद राज्य में आम आदमी पार्टी यानी आप सरकार और राजभवन के बीच गतिरोध में और तीव्रता ही आएगी, जो पहले ही कई मुद्दों पर सार्वजनिक होती रही है। इसी कड़ी में आप की ओर से यह दावा किया गया कि राज्यपाल का रुख राज्य की विधानसभा के अधिकार की उपेक्षा करता है और साथ ही यह आम लोगों की आवाज को दबाने की कोशिश है।

सवाल है कि अगर राज्यपाल ने पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र पर सवाल उठाए हैं, तो क्या उसका कोई कानूनी आधार नहीं है! राज्यपाल ने अपने पत्र में साफ कहा है कि संबंधित सत्र ‘कानून एवं प्रक्रिया का उल्लंघन था।’ इस आपत्ति का कोई तकनीकी और उचित जवाब देने के बजाय आम आदमी पार्टी की ओर से अगर अपनी दलीलों में भावुकता का सहारा लिया जाता है तो उसे कैसे देखा जाएगा।

इसके अलावा, राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच यह टकराव अगर लंबा खिंचता है और इसका असर नीतिगत कार्यक्रमों के अमल में आने या अन्य जटिल हालात पैदा होने से जनता का हित बुरी तरह प्रभावित होता है तो उसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा। यह छिपा नहीं है कि पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और दोनों ही राज्यों में अधिकार क्षेत्र को लेकर राज्यपालों के साथ एक तरह के टकराव में निरंतरता बनी हुई है।

दोनों एक दूसरे पर ‘संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा नहीं करने’ का आरोप लगाते रहे हैं। पंजाब में विधानसभा का सत्र बुलाने, राज्यों के मामलों को चलाने के तरीके, नियुक्तियों और सदन में सरकार को ‘मेरी सरकार’ कह कर संबोधित करने जैसे मुद्दों पर यह टकराव खुल कर सामने आया है।

यों देश के कई राज्यों में राज्यपाल और वहां की सरकार के बीच अलग-अलग वजहों से टकराव के मामले सामने आते रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में तमिलनाडु, केरल आदि कुछ राज्यों में भी राज्यपालों के रुख की वजह से सरकारों के साथ तीखे टकराव की स्थिति पैदा हुई। लेकिन खासतौर पर दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद शासन के मामले में अधिकारों और सीमाओं को लेकर राज्यपालों के साथ एक विचित्र कड़वाहट का माहौल बना है।

जबकि राज्यपाल और सरकार के आमने-सामने खड़े दो पक्ष बनने के बजाय होना यह चाहिए था कि दोनों तरफ से अहं को किनारे कर सौहार्दपूर्ण माहौल में कानून और प्रक्रिया के मुताबिक तकनीकी सवालों का हल निकाला जाता, ताकि आम जनता के हितों का नुकसान न हो। इसके लिए किसी बहस को टकराव की हद तक ले जाने के बजाय बेहतर शायद यह है कि देश के संविधान में दर्ज राज्यपाल और सरकार के अधिकार और सीमाओं पर गौर किया जाए।



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