उड़ानों से गुलजार होगा आकाश
किसी भी देश के लिए पर्यटन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। इससे न केवल विदेशी मुद्रा मिलती है बल्कि पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को रोजगार भी मिलता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा: किसी भी देश के लिए पर्यटन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। इससे न केवल विदेशी मुद्रा मिलती है बल्कि पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को रोजगार भी मिलता है। पयर्टन उद्योग का विस्तार कर कई देशों की अर्थव्यवस्था का आधार बन चुका है। दुर्भाग्यवश कोरोना महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से विमानन सेवाएं काफी प्रभावित हुई हैं। कोरोना के कारण कई तरह के नियमों और प्रतिबंधों के चलते उड़ानें सामान्य ढंग से संचालित हो ही नहीं सकती थीं। बार-बार 48 घंटे पहले ही आरटी-पीसीआर रिपोर्ट दिखाने और क्वारंटाइन रहने के नियमों के चलते भी लोगों ने उड़ानों से दूरी बना ली थी लेकिन अब नागरिक उड्डयन क्षेत्र नया उजाला देखेगा। केन्द्र सरकार ने मार्च 2020 से कोरोना महामारी के चलते बंद की गई अंतर्राष्ट्ररीय उड़ानें 27 मार्च से बहाल करने का फैसला लिया है। उड़ानें फिर से संचालित की खबर से न केवल विदेश जाने वाले यात्रियों को राहत मिलेगी, बल्कि ट्रेवल एवं टूरिज्म इंडस्ट्री को फिर से संजीवनी मिलेगी। कोरोना आने से मार्च, 2020 से लेकर अब तक अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बंद होने से इस इंडस्ट्री की कमर टूट चुकी थी। ऐसे में जब हालात बेहतर हो रहे हैं, अगर अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू करने का फैसला टाला जाता तो इंडस्ट्री में संकट और गहरा जाता। इस इंडस्ट्री में काम करने वाले करीब 10 लाख और लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता था।सरकार के कुल टैक्स कलेक्शन में ट्रैवल और हॉस्पिटैलिटी का योगदान करीब 10% है। 2019 की बात करें तो ट्रैवल और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री ने 30 बिलियन डॉलर की कमाई सिर्फ विदेशी यात्रियों से की थी। कोविड से पहले यानी 2019 में करीब 25 मिलियन भारतीय विदेश घूमने गए थे। वहीं, 11 मिलियन विदेशी भारत में आए थे। इस तरह बीते दो साल में अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बंद होने से करीब 60 से 65 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है। बीते दो साल में कोरोना और लॉकडाउन के चलते इस इंडस्ट्री में काम करने वाले लाखों लोगाें की नौकरी खत्म हो चुकी है। भारत में अंतर्राष्ट्रीय उड़ान बंद होने का गलत फायदा विदेशी विमानन कंपनियां उठा रही हैं। वो भारत में अधिकांश कर्मचारियों को निकाल चुकी हैं या अनपेड कर चुकी हैं। वहीं, एयर बबल समझौतों के तहत उनकी उड़ानें भारत आ रही हैं। इससे नुकसान कंपनियों को कम लेकिन कर्मचारियों को ज्यादा उठाना पड़ रहा है। कोरोना का असर खत्म होता देख दुनिया के कई देशों ने विदेशी यात्रियों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। इनमें अमेरिका, अस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, बाली, मलेशिया जैसे देश शामिल हैं। ऐसे में अब भारत में विदेशी यात्रियों के लिए खोलने की मांग हो रही थी। हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू की जाए। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अनुसार भारतीय एयरलाइंस और हवाई अड्डों को वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान कोविड-19 महामारी के कारण करीब 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। वहीं, हवाई अड्डों का संचालन करने वाली कंपनियों को भी पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा। भारत से करीब 31 देशों के साथ एयर बबल समझौतों के तहत पिछले साल जुलाई से विशेष अंतर्राष्ट्रीय यात्री उड़ानों का संचालन किया जा रहा है। भारत ने इन देशों से उड़ानों के लिए औपचारिक द्विपक्षीय समझौता किया है। कई एयरलाइंस ने अपने किराए बढ़ा दिए हैं अब यात्रियों को कई डेस्टिनेशन्स के लिए ज्यादा किराया देना पड़ रहा है और उनकी जेब ज्यादा ढीली हो रही है। दिल्ली से अमरीका की राउंडट्रिप पहले जहां 90 हजार रुपये से 1.20 लाख रुपये के बीच पूरी हो सकती थी वहीं अब ये बढ़कर 1.50 लाख रुपये में हो गई है। वहीं दिल्ली से दुबई का राउंडट्रिप (सिंगल टिकट) पहले जहां करीब 20 हजार रुपये में आ जाता था वहीं अब इसकी कीमत 33,000 से 35,000 के बीच हो चुकी है।संपादकीय :भाजपा का शानदार प्रदर्शनपरिणाम से पहले ही चौकसी !भारत-चीन : क्या तनाव खत्म होगाशाखाएं शुरू होने पर आप सबको बधाई...चांद पर 4जी नेटवर्कउत्तर प्रदेश में पुनः भाजपाउड़ानें शुरू होने से विमानन उद्योग की आर्थिक स्थिति और पर्यटन उद्योग की गतिविधियां सामान्य होकर पटरी पर लौट आएंगी। नियमित अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू होने से मांग और आपूर्ति में संतुलन कायम होगा और इसमें अन्तर्राष्ट्रीय हवाई किराये में भी कमी आएगी। विमान सेवाओं और विमानन कम्पनियों के सामने घाटे की भरपाई की चुनौती खड़ी है। साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रूसी हवाई सीमा और रूसी विमानों पर प्रतिबंधों की आंच दुनिया भर के विमानों की सेवाओं पर आएंगी। रूस पर लगे प्रतिबंधों का दायरा इतना बड़ा हो चुका है कि इसके असर का आंकलन भी बहुत जटिल है। रूस के विशाल आकार और दुनिया के विमानन उद्योग से करीबी रिश्तों का मतलब है कि रूस पर प्रतिबंधों का असर पूरी दुनिया पर होगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें ऊंचाइयों को छू रही हैं और विमानों में इस्तेमाल किए जाने वाले तेल की कीमतों में भी इजाफा होना तय है। विमानन उद्योग तभी सामान्य होगा जब युद्ध थम जाए और रूस के खिलाफ यूरोपीय देश प्रतिबंधों में ढील दे। फिलहाल नियमित अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों से विदेश यात्रा पर जाने वाले लोगों को आसानी होगी क्योंकि वह अपने देश से दूसरे देश में गंतव्य स्थल पर पहुंच सकेंगे। कोरोना काल में तो छात्रों को विदेश जाने में भी कई-कई दिन लगते थे। विमानन सेवाएं गुलजार तो होंगी लेकिन अभी चुनौतियां भी कम नहीं।