वंचित का हक
सरकार वंचित लोगों के लिए अनेक प्रकार की कल्याणकारी योजनाएं चलाती है, ताकि उनका जीवन स्तर ऊपर उठ सके और वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। मगर क्रियान्वयन एजेंसियों की मिलीभगत से ये योजनाएं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पातीं।
Written by जनसत्ता: सरकार वंचित लोगों के लिए अनेक प्रकार की कल्याणकारी योजनाएं चलाती है, ताकि उनका जीवन स्तर ऊपर उठ सके और वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। मगर क्रियान्वयन एजेंसियों की मिलीभगत से ये योजनाएं अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पातीं। ताजा मामला कोरोना से हुई मौतों पर मुआवजा राशि प्राप्त करने के लिए फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने का सामने आया है। केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दी गई जानकारी के अनुसार आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और केरल में ऐसे सर्वाधिक मामले प्रकाश में आए हैं। ऐसे में कोर्ट ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को मृत्यु प्रमाण पत्रों की औंचक जांच कराने के संकेत दिए हैं।
लोगों की किसी भी तरह योजनाओं का लाभ उठाने की प्रवृत्ति के कारण ही वास्तविक हकदार योजनाओं का लाभ पाने से वंचित रह जाते हैं। सरकार को ऐसे मामलों में लोगों को चिह्नित कर उन पर आपराधिक प्रकरण दर्ज करते हुए कठोर कार्रवाई करनी चाहिए और भविष्य में ऐसी धांधली को रोकने के लिए पुख्ता निगरानी तंत्र विकसित करना चाहिए।
बिहार के भागलपुर जिले में जहरीली शराब पीने से आठ व्यक्तियों की मौत हो गई। होली मातम में बदल गई। एक व्यक्ति की आंख की रोशनी भी चली गई। यह घटना पहली नहीं है। बिहार में शराबबंदी के बाद पड़ोसी राज्य से शराब खरीदी जाती है। जहरीली शराब पीने से नवंबर 2021 में छियासठ लोगों की मौत ही गई थी। इस वर्ष यह तीसरी घटना है। इस तरह राज्य में जहरीली शराब का कारोबार फलता रहा है। कहीं न कहीं सरकार की ढुलमुल नीति ऐसे कार्यों को बढ़ावा दे रही है। सरकार ने शराबबंदी कर एक सुंदर बिहार बनाने की पहल की, लेकिन लोगों की हरकतों से प्रशासन कठघरे में आ गया है।
भागलपुर में जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद गोपालगंज में उपद्रवियों ने पुलिस से मारपीट कर दो रायफलें छीन ली। बेतिया में हवलदार की हत्या कर वाहनों को आग के हवाले कर दिया। साधु समाज सत्तारूढ़ सरकार से खफा है। बिहार में अपहरण और हत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। पुलिस कहीं न कहीं कानून-व्यवस्था बनाए रखने में नाकाम साबित हो रही है।
वर्तमान में सोशल मीडिया जनता की आवाज उठाने का एक बेहतर मंच बन गया है। इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव समाज में देखे जा रहे हैं। सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों के जरिए समकालीन मुद्दों पर चर्चा कर जनतांत्रिक प्रणाली में नेताओं तक कीे खिंचाई हो रही है। सोशल मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ, अल्पसंख्यकों के हितकारी कार्य कराने में बहुत सहायक हो रहा है।
सोशल मीडिया अब समाज में समान विचारधाराओं वाले लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का सशक्त माध्यम बन गया है। आम आदमी भी बेहिचक अपने मन की बात इन माध्यमों से अनेक लोगों तक पहुंचाने मे समर्थ हो गया है। बिगड़ती कानून-व्यवस्था और अनियमितताओं की खबरें और उन्हें चुस्त दुरूस्त करने के लिए होने वाले जन-आंदोलनों की खबरें, लोकतंत्र में सोशल मीडिया द्वारा तेजी से प्रचारित-प्रसारित होने से उनके हल के लिए अधिक निर्णायक भूमिकाएं निभा रही हैं।
सोशल मीडिया के दुरूपयोग की खबरें भी आए दिन आती रहती हैं। लोग भ्रामक प्रचार करने से नहीं हिचक रहे हैं। इनसे जातिवाद, भेदभाव और अंधविश्वासों को बढ़ावा देते आपत्तिजनक संदेशों के प्रचार से लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है, जो बिलकुल उचित नहीं है।