भारतीय सेना के मजबूत इरादे और भारतीय नेतृत्व की दृढ़ता के चलते पैंगोंग झील से पीछे हटना चीन की शिकस्त का परिचायक
आखिरकार चीन यह मानने को विवश हुआ कि गलवन घाटी की झड़प में उसके भी सैनिक मारे गए थे
आखिरकार चीन यह मानने को विवश हुआ कि गलवन घाटी की झड़प में उसके भी सैनिक मारे गए थे, लेकिन फिलहाल उसने मारे गए सैनिकों की संख्या कम करके ही बताई है। चीन पूरा सच बयान नहीं कर रहा है, इस संदेह का एक कारण तो यह है कि अन्य स्नोतों से मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या 45 से लेकर 70 तक बताई जा चुकी है और दूसरा यह कि इस खूनी झड़प के बाद चीनी सेना को अपने हताहत सैनिकों को ले जाने के लिए कई वाहनों का इंतजाम करना पड़ा था। यदि चीनी नेतृत्व अपनी जनता के प्रति तनिक भी ईमानदार होता तो अपने सैनिकों के बारे में सूचना देने में नौ महीने नहीं लगाता। साफ है कि शर्मिंदगी से बचने के लिए चीन ने सच का सामना करने से इन्कार किया। चूंकि यह उसकी पुरानी आदत है इसलिए उसकी बातों पर एक सीमा से अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन उसकी स्वीकारोक्ति के बाद भारत में उन लोगों को अवश्य र्शंिमदा होना चाहिए, जो यह मानने को तैयार नहीं थे कि गलवन में चीनी सैनिकों को कोई नुकसान हुआ। ये ऐसे अंधविरोधी थे, जो भारत से ज्यादा चीन के दावों पर भरोसा कर रहे थे। वास्तव में इसी अंधविरोध के कारण ऐसे लोग यह स्वीकार करने में भी आनाकानी कर रहे हैं कि पैंगोंग झील से पीछे हटना चीन की शिकस्त का परिचायक है।