BJP-JDU के रिश्ते नहीं हैं ठीक, गठजोड़ में पड़ गयी गांठ
सियासत में नंबर गेम बड़ा जबरदस्त होता है
Anand Singh
by Lagatar News
सियासत में नंबर गेम बड़ा जबरदस्त होता है. जरा देखिए इन नंबर्स को…43, 74 और 75. अब आप कह सकते हैं कि इन नंबर्स का क्या मतलब. जनाब, इन्हीं नंबर्स का तो मतलब है. 43 विधायक जदयू के हैं, 74 भाजपा के और 75 राजद के. 43 और 74 को जोड़ दें तो जो संख्या आती है वह है 118. बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं. उनमें बहुमत के लिए जो नंबर्स चाहिए, उससे कहीं ज्यादा है ये 118 का आंकड़ा. अब ये नंबर कल बदल जाएं तो बहुत अचरज करने की जरूरत नहीं.
जातीय जनगणना पर दोनों की राहें जुदा
दरअसल, हाल के दिनों में इस गठबंधन में दरार पड़ गई है. जदयू ने कुछ ऐसा बोला है जिससे भाजपा आहत हुई है और भाजपा ने कुछ ऐसा बोला है, जिससे जदयू परेशान हुई है. जातीय जनगणना को लेकर भाजपा असहज थी. वह नहीं चाहती थी कि जातीय जनगणना हो. लेकिन, नीतीश इसे कराने पर अड़े हुए थे. वह पहले भी कह चुके थे कि जातीय जनगणना जरूरी है.
कहते हैं, भाजपा को बिना कांफिडेंस में लिए उन्होंने 1 जून को आल पार्टी मीटिंग की सूचना जारी कर दी. न चाहते हुए भी 1 जून को भाजपा को उस मीटिंग में शामिल होना पड़ा. अब 500 करोड़ रुपये की लागत से जातीय जनगणना कराने की घोषणा कर दी गई है. जातीय जनगणना से भाजपा कतई सहमत नहीं और नीतीश इसे हर हाल में करवाना चाहते थे. उन्हें सपोर्ट कर दिया तेजस्वी ने. इस प्रकार जो दोनों दलों में गांठ थी, वह और मजबूत हो गई.
अग्निपथ को लेकर दोनों अलग
अभी अग्निपथ योजना को लेकर भी जदयू का स्टैंड भाजपा से सर्वथा अलग दिखा. जदयू का मानना है कि जब इस स्कीम को लेकर नौजवान ही खुश नहीं हैं, जब वही उपद्व कर रहे हैं तो उस योजना को लेकर केंद्र को युवाओं से बातचीत करनी चाहिए. बातचीत से ही समस्या का समाधान निकलेगा. भाजपा का मानना है कि इस मोर्चे पर जदयू को जिस तरीके से भाजपा को समर्थन मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला.
जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर राय अलग
जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर भाजपा चाहती थी कि जैसे यूपी में इस पर काम हो रहा है, वैसे ही बिहार में भी हो. भाजपा चाहती थी कि जनसंख्या नियंत्रण कानून को बिहार में लागू किया जाए. लेकिन, जदयू ने इसे साफ तौर पर खारिज कर दिया. जदयू कतई नहीं चाहता कि बिहार में इस तरह का कोई कानून लागू हो.
विधानसभाध्यक्ष को तगड़ी डांट
बीते दिनों विधानसभा में एक अजीब ही दृश्य देखने को मिला था. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भरी सदन में झाड़ कर रख दिया था. मामला सरस्वती पूजा से जुड़ा था. भाजपा के दो कार्यकर्ताओं को कोविड नियम उल्लंघन के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था. जिस क्षेत्र में उन्हें गिरफ्तार किया गया, वह लखीसराय का क्षेत्र था. लखीसराय वह विधानसभा है, जहां से खुद विजय सिन्हा चुनाव जीत कर आए. अव्वल तो भाजपा इस बात को लेकर नाराज थी कि उसके दो कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया. फिर, जब हर दो-तीन दिनों में यह मामला विधानसभा में उठने लगा तो नीतीश कुमार खासे नाराज हो गए.
नीतीश अपने काम-काज में दखल बर्दाश्त नहीं करते
भाजपा सरकार को घेरना चाहती थी और नीतीश को यह मंजूर नहीं था. नीतीश ने विधानसभाध्यक्ष से कहा भी था कि आप टारगेटेड बिंदुओं को लेकर विधानसभा चला रहे हैं. यह ठीक नहीं है. नीतीश कुमार ने जिस तरीके से विजय सिन्हा को लताड़ा, उस जैसा दूसरा कोई उदाहरण बिहार विधानसभा में दिखता नहीं. इसको लेकर भाजपा और जदयू में जबरदस्त तनातनी की स्थिति बनी जो अभी भी बरकरार है.
नीतीश-तेजस्वी के संबंध से भी भाजपा बेचैन
भाजपा को लगता है कि जिस तरीके से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच बेहतर संबंध हो रहे हैं, उससे यह भी संभव है कि किसी दिन नीतीश-तेजस्वी मिल कर सरकार भी बना सकते हैं. नीतीश ऐसा कर भी चुके हैं. लेकिन, इसकी काट के रूप में भाजपा के पास ईडी और सीबीआई है जो वह कई बार लालू एंड फैमिली के विरुद्ध इस्तेमाल कर चुकी है. लिहाजा, ताल दोनों तरफ से ठोकी जा रही है. देखना है आगे होता है क्या…