लक्षद्वीप का असल खतरा

लक्षद्वीप इन दिनों दूसरी वजहों से चर्चा में है, लेकिन उस पर मंडरा रहा असल खतरा कुछ अलग है।

Update: 2021-07-01 05:00 GMT

लक्षद्वीप इन दिनों दूसरी वजहों से चर्चा में है, लेकिन उस पर मंडरा रहा असल खतरा कुछ अलग है। असल खतरा उसके अस्तित्व के लिए है। जलवायु परिवर्तन की वजह से ये द्वीप हो सकता है कि अगले दो दशक के अंदर दुनिया के नक्शे से मिट जाए। ये बात समुद्र वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने अध्ययन के आधार पर कही है। अध्ययन अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ऐलसेवियर में छपी है। अध्ययनकर्ता इतने अधिक चिंतित हैं कि उन्होंने द्वीप के लोगों को सबसे सुरक्षित जगहों पर ले जाकर बसाने की सिफारिश की है। आईआईटी खड़गपुर के समुद्र विज्ञान संस्थान और केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों की टीम ने अपने अध्ययन में पाया है कि जलवायु परिवर्तन से लक्षद्वीप में हर साल समुद्र का स्तर 0.4 मिमी से 0.9 मिमी तक बढ़ेगा। इसकी वजह से द्वीप के कई हिस्से समुद्र में समा जाएंगे। रिपोर्ट में 2035 तक 70 से 80 फीसदी जमीन समुद्र के गर्भ में समाने का अंदेशा जताया गया है। कहा गया है कि लक्षद्वीप में कई ऐसे छोटे द्वीप हैं, जो जमीन की पतली पट्टी के तौर पर ही बच जाएंगे।

इनमें सबसे ज्यादा नुकसान चेतलाट द्वीप को होगा। उसका 82 फीसदी हिस्सा पानी में डूब जाएगा। राजधानी कावारत्ती का 70 फीसदी हिस्सा भी प्रभावित होगा। अगाती स्थित द्वीप के एकमात्र एयरपोर्ट पर तो नुकसान का असर अभी से नजर आने लगा है। रिपोर्ट में सरकार से बिप्रा, मिनिकॉय, कालपेनी, कावारत्ती, अगाती, कल्तान, कदमात और अमिनी द्वीप को बचाने के लिए तटों की सुरक्षा के ठोस कदम उठाने की सिफारिश की गई है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से एंड्रोथ द्वीप को सबसे कम यानी 30 फीसदी नुकसान पहुंचेगा। इसलिए सुझाव दिया गया है कि लक्षद्वीप की ज्यादातर आबादी को वहां बसाया जा सकता है। अरब सागर में समुद्र का जलस्तर बढ़ने की दर बंगाल की खाड़ी के मुकाबले तेज है। बंगाल की खाड़ी में ताजा पानी वाली कई नदियां मिलती हैं। इस वजह से उसके पानी का खारापन कम है। यही वजह है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह के मुकाबले लक्षद्वीप ( lakshadweep islands ) को ज्यादा खतरा है। अब सवाल है कि इस रिपोर्ट पर कौन ध्यान देगा? सरकार की इस द्वीप को लेकर प्राथमिकताएं अलग हैँ। वहां की आबादी उसके खिलाफ आंदोलन पर उतरी हुई है। इस मसले का शोर इतना ज्यादा है कि जो असल खतरा अब बताया गया है, उसके दब कर रह जाने का अंदेशा है।
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