किसान आंदोलन का औचित्य: कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान नेता अब अपने आंदोलन की तलाश रहे वापसी की राह
इस पर हैरानी नहीं कि कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान नेता अब अपने आंदोलन की वापसी की राह तलाश रहे हैं
भूपेंद्र सिंह | इस पर हैरानी नहीं कि कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसान नेता अब अपने आंदोलन की वापसी की राह तलाश रहे हैं। भले ही किसान नेताओं ने केंद्र सरकार से नए सिरे से बातचीत शुरू करने की चिट्ठी लिखी हो, लेकिन लगता नहीं कि ऐसा हो पाएगा, क्योंकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे उन बिंदुओं पर सहमत हैं या नहीं, जो 11 दौर की बातचीत टूटने के बाद केंद्र ने उनके समक्ष रखे थे। यह बातचीत टूटी ही इसलिए थी, क्योंकि केंद्र की तमाम नरमी के बाद भी किसान नेता अपने हठ का परित्याग करने को तैयार नहीं थे। वे न केवल केंद्र सरकार को आदेश देने की मुद्रा अपनाए हुए थे, बल्कि तीनों कृषि कानूनों की वापसी से कम कुछ मंजूर करने को भी तैयार नहीं थे। इस अड़ियलपन ने यही प्रतीति कराई थी कि उनका मकसद किसानों की समस्याओं का समाधान कराना नहीं, बल्कि केंद्र सरकार को झुकाना है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आम किसान इस आंदोलन से दूरी बनाने लगे। यह किसान नेताओं की जिद के अलावा और कुछ नहीं कि वे कोरोना संक्रमण के भीषण खतरे के बाद भी धरना देने में लगे हुए हैं। इस धरने को तत्काल प्रभाव से खत्म करने की जरूरत है, क्योंकि अब यह एक खौफनाक तथ्य है कि किसान संगठनों के जमावड़े के कारण ही पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में कोरोना का संक्रमण फैला है।