फैलते हुए ब्रह्मांड की गुत्थी

उन्नत तकनीक के इस दौर में कई दशक से धरती और ब्रह्मांड के बारे में अनुसंधान और खोज जारी है। इसके बावजूद वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा बहुत कुछ है, जिसका पता लगाना बाकी है।

Update: 2022-09-21 04:13 GMT

निरंकार सिंह; उन्नत तकनीक के इस दौर में कई दशक से धरती और ब्रह्मांड के बारे में अनुसंधान और खोज जारी है। इसके बावजूद वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा बहुत कुछ है, जिसका पता लगाना बाकी है। इस बीच वैज्ञानिकों को अपनी दुनिया के बारे में तो बहुत कुछ पता है, लेकिन अब उन्हें धीरे-धीरे एक ऐसी दुनिया पर भी यकीन हो गया है, जो हमारी दुनिया से बिल्कुल उलटी है।

लगभग चौदह अरब साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। इस बिंदु के अंदर ही विस्फोट होने लगे। तब अंदर मौजूद प्रोटोनों की आपसी टक्कर से अपार ऊर्जा पैदा हुई। विस्फोट बदला महाविस्फोट में। इन महाविस्फोटों से ब्रह्मांड का निर्माण होता रहा। आज भी ब्रह्मांड में महाविस्फोट होते रहते हैं। इस तरह ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है। यही बिग बैंग सिद्धांत है।

ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है और इसके फैलने की गति तेज हो रही है। सभी ग्रह-नक्षत्र और आकाशगंगाए एक-दूसरे से दूर होती जा रही हैं। यह रहस्य पिछले दो दशकों से अनसुलझा है कि आखिर ऐसा क्या है, जिसकी वजह से यह विस्तार कायम है और इसकी गति तेज हो रही है। वैज्ञानिक कई तरीकों से इस विस्तार की गति को समझने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे वे ब्रह्मांड की उम्र, संरचना और विस्तार जैसे कई अनसुलझे सवालों के जवाब खोज सकते हैं। शिकागो यूनिवर्सिटी के खगोलविदों ने ब्रह्मांड के विकास को समझने के लिए स्पेक्ट्रल सायरन नाम की नई पद्धति सुझाई है, जिसमें ब्लैक होल के टकराव के जरिए वे पुरातन ब्रह्मांड को समझ सकते हैं।

ब्लैक होल के बारे में कहा जाता है कि वह ऐसी जगह है जहां सूचनाएं भी गायब हो जाती हैं, फिर भी वैज्ञानिकों ने कई परोक्ष तरीकों से इनके जरिए ऐसी जानकारी निकालने में सफलता पाई है, जिससे ब्रह्मांड के इतिहास के बारे में पता चल सकता है। नए अध्ययन में दो खगोलविदों ने ऐसी पद्धति का विकास किया है जिसके जरिए टकराने वाले ब्लैक होल के जोड़े का उपयोग कर ब्रह्मांड के विस्तार की गति का मापन किया जा सकता है।

इससे हमें पता चल सकेगा कि हमारा ब्रह्मांड कहां से विकसित हुआ, वह किससे बना और वह कहां जा रहा है। ब्रह्मांड के विस्तार की दर क्या है, यही सबसे बड़ा सवाल और बहस का विषय बना हुआ है। इसे हबल स्थिरांक के जरिए परिभाषित किया जाता है, लेकिन इसकी गणना के लिए अलग-अलग पद्धतियों का उपयोग होता है, जिससे अलग-अलग मात्राएं नतीजे में मिलती हैं।

इस विवाद को सुलझाने के लिए वैज्ञानिक वैकल्पिक तरीके भी पता लगा रहे हैं। इस संख्या की सटीकता से ही ब्रह्मांड की उम्र, उसके इतिहास और संरचनाओं संबंधी सवालों के उत्तर मिल सकते हैं। नया अध्ययन इस गणना के नए तरीके को प्रस्तावित कर रहा है, जिसमें ब्लैक होल के टकराव से पैदा हुए खगोलीय कंपनों को विशेष डिटेक्टर द्वारा मापा जा सकेगा। जब दो ब्लैक होल आपस में टकराते हैं तो उनसे पूरे ब्रह्मांड में हर तरफ 'आकाश-काल' में एक कंपन फैलती है। पृथ्वी पर अमेरिका में लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल वेव आबजर्वेटरी और इटली की वर्गो वेधशाला इन कंपनों को पकड़ सकते हैं, जिन्हें गुरुत्व तरंगें कहा जाता है।

पिछले कुछ सालों में लीगो और वर्गो ने करीब दस ब्लैक होल जोड़ों के टकरावों के आंकड़े जमा किए हैं। इन तरंगों में ब्लैक होल के भार की जानकारी छिपी होती है। लेकिन ये ब्रह्मांड के विस्तार के कारण, रास्ते में इन तरंगों के गुणों में बदलाव आ जाता है। वैज्ञानिक अगर इन तरंगों में बदलाव का मापन कर सके तो वे ब्रह्मांड के विस्तार की दर का भी पता लगा सकते हैं।

फिर भी यहां एक समस्या है कि यह कैसे पता चलेगा कि संकेत मूल रूप से कितने बदले हैं। नए शोध पत्र में जोस मारिया इज्क्यूयागा और डेनियल होल्ज सुझाते हैं कि वे ब्लैक होल की पूरी जनसंख्या की मिली नई जानकारी को आधार बना सकते हैं और भविष्य में बदलाव से तुलना कर ब्रह्मांड के विस्तार की दर का पता लगा सकते हैं।

इस पद्धति से ब्रह्मांड के उस युग के बारे में पता चलेगा जब तथाकथित 'डार्क मैटर' ने ब्रह्मांड में हावी होना शुरू कर दिया होगा। इस संक्रमण काल के अध्ययन में वैज्ञानिकों की विशेष दिलचस्पी है। ब्लैक होल से जितनी जानकारी मिलती जाएगी इस पद्धति की सटीकता भी बढ़ती जाएगी। इसके लिए हमें हजारों की तादाद में संकेत चाहिए, जिसमें एक दो दशक का समय लग सकता है और तब तक यह पद्धति ब्रह्मांड के बारे में सीखने का एक बहुत शक्तिशाली उपकरण बन जाएगी।

ब्लैक होल के अलावा डार्क मैटर और एंटी मैटर पर भी तेजी से खोजबीन चल रही है। लेकिन वे अभी तक रहस्यमय बने हुए हैं। जो भी दिखाई दे रहा है वह मैटर है। मैटर अर्थात पदार्थ। एंटीमैटर आभासित माना गया है, पर डार्ट मैटर की सत्ता है। वैज्ञानिक अभी तक इसकी खोज में लगे हुए हैं कि डार्क मैटर क्या है। ऐसा माना जाता है कि अंतरिक्ष का पंचानबे फीसद हिस्सा डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से मिल कर बना है। डार्क मैटर एक आकर्षक शक्ति के रूप में कार्य करता है, एक प्रकार का ब्रह्मांडीय मोर्टार, जो हमारी दुनिया को एक साथ रखता है।

ऐसा इसलिए है, कि डार्क मैटर गुरुत्वाकर्षण के साथ इंटरैक्ट करता है, फिर भी प्रकाश को प्रतिबिंबित, अवशोषित या उत्सर्जित नहीं करता। डार्क एनर्जी एक प्रतिकारक बल है, एक प्रकार का एंटी-ग्रेविटी, जो ब्रह्मांड के विस्तार को धीमा कर देता है। ऐसा अनुमान है कि लगभग तेईस प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर ही है। एंटीमैटर की दूर तक कोई सत्ता नहीं है, लेकिन डार्क मैटर सब जगह है।

वैज्ञानिकों के अनुसार डार्क मैटर और डार्क एनर्जी ही वह एक कड़ी है, जिसने इस समूचे ब्रह्मांड को एक क्रमबद्ध ढंग से बांध रखा है। डार्क मैटर ऐसे पदार्थों से मिल कर बने हैं, जो न तो प्रकाश छोड़ते हैं, न सोखते हैं और न ही परावर्तित करते हैं। इस कारण इसे अभी तक देख पाना संभव नहीं हो पाया है। आकाशगंगाओं की खोज में तारों का पीछा करते हुए वैज्ञानिकों ने डार्क मैटर को खोजा।

लेकिन वे इसके बारे में कभी सही जानकारी नहीं जुटा सके। यह पता चला कि सभी आकाशगंगा के ग्रह, तारे और नक्षत्र गुरुत्वाकर्षण की बंधन शक्ति के कारण स्थिर हैं। पर गणना करने पर पता चला कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी नहीं है कि वह आकाशगंगा को थाम सके। मतलब कुछ और ही अज्ञात चीज है, जो इन्हें थाम रही है। अन्यथा अब तक गुरुत्वाकर्षण शक्ति कमजोर हो गई होती और सभी ग्रह, नक्षत्र तारे अपने परिक्रमा पथ से भटक गए होते। इसी सोच ने डार्क मैटर की अवधारणा को बल दिया। डार्क मैटर ही इस ब्रह्मांड को द्रव्यमान दे रहा है।

उन्नत तकनीक के इस दौर में कई दशक से धरती और ब्रह्मांड के बारे में अनुसंधान और खोज जारी है। इसके बावजूद वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा बहुत कुछ है, जिसका पता लगाना बाकी है। इस बीच वैज्ञानिकों को अपनी दुनिया के बारे में तो बहुत कुछ पता है, लेकिन अब उन्हें धीरे-धीरे एक ऐसी दुनिया पर भी यकीन हो गया है, जो हमारी दुनिया से बिल्कुल उलटी है। एनल्स आफ फिजिक्स जर्नल में इस सिद्धांत की विस्तार से व्याख्या की गई है। अनुसंधानकर्ताओं का यह भी कहना है कि इस दुनिया में न्यूट्रान दार्इं तरफ से घूमते होंगे।

इस दुनिया की बात को साबित करने के लिए वैज्ञानिक मास न्यूट्रान्स का परीक्षण कर रहे हैं। वे अगर इस परियोजना में कामयाब होते हैं तो इस दूसरी दुनिया की बात साबित हो जाएगी। वैज्ञानिक भी इस संभावना से इनकार नहीं करते हैं कि हमारी दुनिया की ही तरह एक ऐसी भी दुनिया है, जहां वक्त यानी समय का पहिया उल्टा चलता है।


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