विश्व सिनेमा की जादुई दुनिया: क्यूबा का सिनेमा इतिहास, आंदोलन के इस ओर-उस ओर
टॉमस गुटिएरेज़ एलिआ, हम्बर्टो सोलास से लैटिन अमेरिका तथा दुनिया के अन्य फ़िल्म निर्देशकों प्रभावित हैं।
वेस्टइंडीज का देश क्यूबा कैरिबियन इलाके का सबसे बड़ा द्वीप है। क्यूबा का इतिहास प्रारंभ से बहुत उथल-पुथल भरा रहा है। 1492 में क्रिस्टोफ़र कोलंबस ने इस पर स्पेन के लिए अधिकार किया था, इसके मूल निवासियों का अब अता-पता नहीं है। एक समय गन्ने के कारण इस पर आधिपत्य किया गया था लेकिन आज भी क्यूबा में जीवन आसान नहीं है। वहां भोजन, ट्रांसपोर्ट, बिजली तथा अन्य जरूरत की चीजों की किल्लत है।
सन् 1898 तक इस पर स्पेन का शासन बना रहा। इसके बाद इस पर अमेरिका का आधिपत्य हो गया। स्वतंत्र होने के बाद भी इस पर अमेरिका का वर्चस्व बना रहा। 1 जनवरी 1959 में फ़िडेल कास्त्रो ने तानाशाही उखाड़ फेंकी, मगर रूस से नजदीकी के कारण इसे कई आर्थिक कठिनाइयां झेलनी पड़ीं। फ़िर भी क्यूबा के अधिकांश नागरिक अपने आंदोलनकारी समाज पर गर्व करते हैं। हम भारतीय क्यूबा और उसके नेताओं, फ़िडेल कास्त्रो, च्वेग्वेरा से खूब परिचित हैं।
क्यूबा के इतिहास की भांति इसका सिने-इतिहास भी उथल-पुथल का रहा है। इसके सिने-इतिहास को आंदोलन पूर्व तथा आंदोलन पश्चात दो स्पष्ट भागों में बांटा जा सकता है। बीसवीं सदी के प्रारंभ में सिनेमा क्यूबा में पहुंच गया था। मैक्सिको सिटी से क्यूबा आकर गैब्रियल वेय्रे ने हवाना की सीमा पर जनता को लुमियर भाइयों के काम से परिचित कराया। उसने एक सप्ताह लुमियर की फ़िल्में दिखाई। कुछ सप्ताह के बाद एडिसन की मशीन भी क्यूबा पहुंची और कैनवास के परदे पर लोगों ने चलती-फ़िरती तस्वीरें देखीं।
आंदोलन के पूर्व क्यूबा का सिनेमा
सन् 1959 के आंदोलन के पूर्व यहां पूरी लंबाई की करीब 80 फ़ीचर फिल्में बनी थीं। इनमें से अधिकांश फिल्में हॉलीवुड की तर्ज पर मेलोड्रामा, म्युजिकल एवं कॉमेडी थीं। वही फ़िल्में बन रही थीं जो शासकों को जंचती थीं, जो विदेशी ताकत के अनुरूप थीं। तब तक क्यूबा पूरी तरह अमेरिकी सांस्कृतिक छाया की गिरफ़्त में था। वास्तव में आंदोलन के पूर्व क्यूबा का अपना सिनेमा था ही नहीं। शुरू में क्यूबा में सिनेमा के नाम पर क्यूबन-स्पेनिश-अमेरिकन युद्ध से जुड़ी न्यूजरील की फ़ुटेज बनती थीं।
आंदोलन के बाद आज क्यूबा में औपनिवेशिक तथा कम्युनिस्ट दोनों कालों से जुड़ी फ़िल्में बनती हैं और दुनिया भर में देखी जाती हैं। इनमें तेजी से हुए परिवर्तन को देखा जा सकता है। 1960 में सिनेमा से जुड़ी संस्था ICAIC का निर्माण हुआ जिसका प्रमुख काम क्यूबा की सिने-विरासत को सुरक्षित कर उसका प्रचार-प्रसार करना है।
यह संस्था देश-विदेश में क्यूबा की फ़िल्में दिखाती है। क्यूबा में पुरानी फ़िल्म सुरक्षित रखने की सुविधा न होने के कारण पहले की फ़िल्मों का बहुत नुकसान हुआ। ICAIC पुरानी फ़िल्मों का रेस्टोरेशन करती है। मरम्मत (रेस्टोरेशन) एक जटिल प्रक्रिया है, अभी क्यूबा में इसकी पूरी सुविधा न होने के कारण ये लोग बाहरी संस्थाओं, खासकर अमेरिका से तकनीकि सहायता लेते हैं।
मशहूर फिल्म 'लुसिया'
'लुसिया' एक ऐसी ही फ़िल्म है जिसका रेस्टोरेशन किया गया है। यह क्यूबा की तीन स्त्रियों की कहानी है, तीनों का नाम लुसिया है। इन्होंने क्यूबा के इतिहास के तीन आंदोलन, उन्नीसवीं सदी का अंत, बीसवीं सदी का तीसरा दशक तथा 1959 के कास्त्रो आंदोलन के ठीक बाद कठिन जीवन संघर्ष किया था। 'डेथ ऑफ़ ए ब्यूरोक्रेट', 'ला सर्पिएंट रोजा', 'द लास्ट सपर', 'स्ट्राबेरी एंड चॉकलेट' आदि ऐसी ही फ़िल्में हैं जिनकी मरम्मत कर उन्हें नवजीवन प्रदान किया गया है।
एक समय 'स्ट्राबेरी एंड चॉकलेट' (1993) सर्वोत्तम विदेशी फ़िल्म के रूप में ऑस्कार के लिए नामांकित हुई थी। 108 मिनट की इस फ़िल्म के निर्देशन टॉमस गुटिएरेज़ एलिआ तथा जुआन कार्लोस टैबिओ हैं। इसमें दो धुर विपरीत व्यक्ति एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं, एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं।
कॉमेडी तथा रोमांस की इस फ़िल्म में एक समलैंगिक है, एक कम्युनिस्ट है, जबकि दूसरा व्यक्तिवादी है। एक शक्की है, दूसरा सहज विश्वास करने वाला है। टॉमस गुटिएरेज़ एलिआ, हम्बर्टो सोलास से लैटिन अमेरिका तथा दुनिया के अन्य फ़िल्म निर्देशकों प्रभावित हैं।
सोर्स: अमर उजाला