इंटरनेट पर हिंदी भाषा का सफर
भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति दी थी
दिव्याहिमाचल.
21वीं सदी के पहले दशक में ही गूगल न्यूज़, गूगल ट्रांसलेट तथा ऑनलाइन फोनेटिक टाइपिंग जैसे साधनों ने वेब की दुनिया में हिंदी के विकास में महत्त्वपूर्ण सहायता की। हिंदी की पकड़ इंटरनेट पर दिन-प्रतिदिन मजबूत हो रही है। निश्चय ही हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है…
भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति दी थी। इसके बाद हिंदी निरंतर विकास के नए आयाम को स्थापित करती नजऱ आ रही है। वर्तमान हिंदी वैदिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश और अवहट्ट से गुजरती हुई अपने प्रारंभिक रूप खड़ी बोली को प्राप्त करती है। हिंदी भारत में संपर्क भाषा का कार्य करती है। यह उत्तर भारत के दस राज्यों और दो केन्द्र शासित प्रदेशों के अधिकतर सरकारी कार्यालयों, आकाशवाणी, दूरदर्शन व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं की माध्यम है। 1950 में जब संविधान लागू हुआ, तब आठवीं अनुसूची में मात्र 14 भाषाएं शामिल थीं, परंतु वर्तमान में ये 22 हो गई हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें भी हिंदी को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। वेब मीडिया में हिंदी का विकास यूनिकोड के आने के बाद शुरू हुआ। 90 के दशक में हिंदी में इंटरनेट सर्च और ई-मेल की सुविधा की शुरुआत हुई। वर्ष 1999 में शुरू हुए हिंदी के पहले वेबपोर्टल से लेकर अब तक हिंदी लगातार इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति मजबूत करती गई है। फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के लोकप्रिय प्लेटफार्म हों या फिर ब्लाग, वेबसाइट अथवा वेब पोर्टल, इंटरनेट के हर कोने में हिंदी चमक रही है। स्मार्टफोन के आने से लोगों की जीवन शैली में बहुत बदलाव आया, ढेरों ऐसे कीबोर्ड ऐप आ चुके हैं जो देवनागरी हिंदी लेखन को बढ़ाना देने में सहायक हैं। हिंदी लंबे समय तक फॉंट की समस्या से जूझती रही, लेकिन बढ़ती ज़रूरत के बीच हिंदी गूगल इनपुट, यूनीकोड और मंगल जैसे फॉंट के विकास ने हिंदी को नया जीवन प्रदान किया। आज के समय में इंटरनेट पर हिंदी साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
जहां एक ओर सैकड़ों दैनिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्र, ई-पत्र पत्रिकाएं देवनागरी लिपि में उपलब्ध हैं तो वहीं अभिव्यक्ति, अनुभूति, रचनाकार, हिंदी नेस्ट, कविताकोश, संवाद आदि हिंदी प्रेमियों के लिए सुलभ हो चुकी हैं। यही नहीं हंस, कथादेश, तद्भव, नया ज्ञानोदय जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के इंटरनेट संस्करण भी अब सहज उपलब्ध हैं। वर्तमान में पंद्रह से भी अधिक हिंदी के सर्च इंजन हैं जो किसी भी वेबसाइट का चंद मिनटों में हिंदी अनुवाद करके पाठकों को वांछित सामग्री उपलब्ध कराते हैं। भारत जैसे विशाल देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी को डिजिटल एजुकेशन ने तेज़ी से पूरा किया है। टिचिंग ऐप टिचमिंट, क्लासरूम, गूगल मीट, ज़ूम आदि इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ई पाठशाला, उमंग, यू-ट्यूब, हेंगआऊट, बायजूस, ड्युलिंगो, नेक्स्ट एजुकेशन, वेदांतू, काहूट, आवाज जैसे ऐप हिंदी में सामग्री मुहैया करा रहे हैं। तकनीकी क्रांति के बाद हिंदी में शिक्षण के साथ-साथ मेडिकल एजुकेशन के क्षेत्र में भी ऑनलाइन पठन-पाठन सामग्री तेजी से बढ़ रही है। दूरदराज के स्कूल जो ऊंचे वेतन के शिक्षक नहीं रख सकते, वे भी स्मार्ट क्लास के माध्यम से हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल तरीके से अपने बच्चों को बड़े स्कूलों जैसे प्रतिस्पर्धी बना रहे हैं। वेब मीडिया का ही करिश्मा है कि आज घर बैठे हम ऑनलाइन हिंदी की अनेक किताबें पढ़ सकते हैं। हिंदी में अपने विचार लिखकर उन्हें एक बड़े तबके तक पहुंचा सकते हैं। मनोरंजन क्षेत्र की बात की जाए तो हिंदी में अनेकों हिंदी टीवी चैनल सहित कहानियां, चुटकुले, समाचार, संगीत सुनाने और दिखाने वाले ऑडियो-विजुअल ऐप भी बाजार में छा चुके हैं। ऑडियो-विजुअल ऐप हिंदी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं।
ये ऐप यूजर को खुद कंटेट देने और पैसा कमाने का मौका भी देते हैं। देखा जाए तो इंटरनेट को हिंदी के विकास में यह एक मील का पत्थर कहा जा स्कता है। 21वीं सदी के पहले दशक में ही गूगल न्यूज़, गूगल ट्रांसलेट तथा ऑनलाइन फोनेटिक टाइपिंग जैसे साधनों ने वेब की दुनिया में हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण सहायता की। एक समय था जब एक बात पहुंचाने के लिए कई दिन-महीने लग जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। वेब मीडिया ने इन सभी सीमाओं को तोड़ा है। हिंदी की पकड़ इंटरनेट पर दिन प्रतिदिन मजबूत हो रही है। आज जो हम अपनी छोटी से छोटी बातों को पोस्ट करके हज़ारों लाइक्स और कमेंट्स पाते हैं, इससे पता चलता है कि हमारी पहुंच क्या है। पहले हमें इंटरनेट पर कुछ भी सर्च करने के लिए उसे अंग्रेजी में ही टाईप करना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जो भी सर्च करना है, हिंदी में लिखने पर उपलब्ध हो जाता है। हिंदी भारतवर्ष की विविधता में एकता की भी प्रतीक है। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, डा. अम्बेडकर, सी राजगोपालाचारी जैसे महापुरुषों ने हिंदी को भारत की संपर्क भाषा के रूप में अपनाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। अगर हम वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो हिंदी के समक्ष आज अनेक चुनौतियां खड़ी हैं। आज हिंदी में ढेरों साफ्टवेयर उपलब्ध हैं, लेकिन बैंक, बिजली विभाग, बीमा आदि क्षेत्र में अब भी पालिसी, बिल, रसीद आदि अंग्रेजी में ही दी जा रही हैं।
अधिकतर सरकारी वेबसाइटें आमतौर इंटरनेट पर आज भी अंग्रेजी में ही खुलती हैं, हिंदी में देखने के लिए अलग लिंक उपलब्ध होता है। हिंदी भाषा के सम्मान के लिए हिंदी भाषियों में जागरूकता की कमी है। सरकारी नीतियां भी कम जिम्मेदार नहीं। हिंदी फॉंट की समस्या भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। मंगल फॉंट, गूगल इनपुट और युनिकोड में हिंदी में लिखते हुए वर्तनियों में अधिक अशुद्धियां रहती हैं, जैसे शृंगार और शृंखला शब्द इसमें अशुद्ध लिखे जाते हैं। ये सिर्फ कृतिदेव में ही कड़े परिश्रम से ठीक लिखे जा सकते हैं। कृतिदेव में लिखना सभी के लिए आसान कार्य नहीं है। आज भी हिंदी बोलने वालों का एक बड़ा तबका अपने आपको अंग्रेज़ी बोलने वालों के सामने हिचकिचाता है और अपने विचारों को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाता है। इसके बावजूद आज वैश्वीकरण के दौर में हिंदी का महत्व और भी बढ़ गया है। हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है। आज विदेशों में अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही हैं। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। निश्चय ही हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है।
डा. हेमराज भारद्वाज,
लेखक कुल्लू से हैं