बिना खिले मुरझाते मासूम

उसने बताया कि पति के इलाज, बच्चों की पढ़ाई, किराया समय पर न दे पाने पर मकान मालिक द्वारा मकान खाली करने की धमकी जैसी समस्याओं से वह दो-चार है। उसका तात्कालिक समाधान तो निकाला गया

Update: 2022-09-29 06:30 GMT

बुलाकी शर्मा: उसने बताया कि पति के इलाज, बच्चों की पढ़ाई, किराया समय पर न दे पाने पर मकान मालिक द्वारा मकान खाली करने की धमकी जैसी समस्याओं से वह दो-चार है। उसका तात्कालिक समाधान तो निकाला गया, लेकिन यह कोई स्थायी उपाय नहीं था। उसका पति शहर के मुख्य मार्ग के एक किनारे फल-सब्जी का ठेला लगाता था।

उसकी आमदनी से घर खर्च चल रहा था, लेकिन मुख्य मार्गों को चौड़ा करने के लिए प्रशासन की ओर से ठेलों को वहां से हटाने का निर्णय लेकर उन्हें ऐसी जगह ठेले लगाने के आदेश दिए गए, जहां ग्राहकों का आवागमन नाममात्र का था। नई जगह पर बहुत कम ग्राहकों के आने से घर खर्च चलाना मुश्किल हो गया। फल-सब्जी के जमे-जमाए काम को छोड़ कर वह मजदूरी करने को विवश हो गया। उसके बाद तंगहाली से मजबूरी में महिला भी कुछ घरों में साफ-सफाई का काम करने लगी।

गरीबी ऐसी बीमारी है जो मासूम बच्चों से उनका बचपन छीन लेती है। उन्हें समय से पहले समझदार बना देती है। महिला के बारह-तेरह वर्ष के बेटे से घर की तंगहाली देखी नहीं गई। वह विद्यालय की छुट्टी होने के बाद कोई काम-धंधा करके अपनी कमाई से घर में सहयोग देना चाहता था। महिला अपने बेटे को इसीलिए साथ लेकर आई थी कि उसे कहीं काम पर लगवा दिया जाए। बाल श्रम निषेध व नियमन अधिनियम, 1986 और संशोधित अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के मुताबिक चौदह वर्ष से कम आयु वालों को रोजगार पर रखना कानूनन गलत है।

रोजगार देने वालों को छह माह से दो वर्ष तक की कैद और बीस हजार से लेकर पचास हजार रुपए तक जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है। मां-बेटे, दोनों को समझाया गया कि इस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते हैं, पढ़ते-लिखते हैं। मेहनत-मजदूरी के बजाय बच्चे को पढ़ना चाहिए। लेकिन बेटे को मां-पिता की परेशानी नहीं देखी जा रही थी। आखिरकार वह सुबह स्कूल के बाद एक ढाबे पर काम करने लगा। लेकिन वहां से भी उसका काम छूट गया। दरअसल, कुछ सरकारी अफसर ढाबे पर आए और उसके मालिक को बच्चों से मजदूरी नहीं कराने की हिदायत देकर गए थे।

हम सबको पसीना बहाते काम करते बाल श्रमिक सब जगह दिखाई देते हैं। सरकारी कार्यालयों के आसपास भी वे किसी होटल में कप-प्लेट धोते, बर्तन साफ करते दिख जाते हैं। देखने के बावजूद न सिर्फ आम लोग, बल्कि जिम्मेदार सरकारी मुलाजिम भी अनदेखी करते रहते हैं। लेकिन जब बाल श्रम मुक्ति का अभियान चलाया जाता है, तब बाल संरक्षण अधिकारों का स्मरण करते हुए बाल श्रम की रोकथाम के प्रति सजगता दिखाई देती है।

होटलों, ढाबों, प्रतिष्ठानों आदि में श्रम विभाग का जांच दल औचक छापामारी करता है। वहां काम करने वाले बाल श्रमिकों की आयु संबंधी दस्तावेजों का निरीक्षण किया जाता है। बाल श्रम कराने वालों पर अर्थदंड लगाया जाता है। भविष्य में बच्चों से मजदूरी नहीं करवाने के संकल्प पत्र भरवाए जाते हैं। मजदूरी करने वाले बच्चों के अभिवावकों को भी समझाया जाता है। निरीक्षण की यह प्रक्रिया सतत जारी नहीं रहती। औचक निरीक्षण कभी-कभी होता है, जिसका असर कम समय तक रहता है।

छोटी उम्र की अपनी संतानों को अभिवावक मजबूरी से ही मजदूरी के लिए भेजते हैं। यों वे भी यही सपना देखते हैं कि बड़ा होकर वह उनका नाम रोशन करेगा। लेकिन गरीबी की मार सहते हुए जब वे दो जून की रोटी का बंदोबस्त करने में असमर्थ हो जाते हैं, तब अपने बच्चों से मजदूरी करवाने पर विवश होते हैं। आमतौर पर विवशता से मजदूरी करने वाले बाल श्रमिकों का शोषण ही किया जाता है। अरुचिकर वातावरण से उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। काम करते हुए भी उन्हें प्रताड़ना सहनी पड़ती है। बाल तस्करी, भिक्षावृत्ति जैसी कुत्सित घटनाएं भी होती हैं।

असमय ही वे बचपन से वंचित हो जाते हैं। विषम परिस्थितियों से बालमन खिलने से पहले ही मुरझाने लगता है। उनका शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। गरीबी से जूझते बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार, सर्वशिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन जैसी योजनाएं भी किसी काम की नहीं रहतीं। अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें विद्यालय में पढ़ने की जगह कहीं मेहनत-मजदूरी करनी पड़ती है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन सन 2002 से प्रतिवर्ष विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाता है, लेकिन बचपन की मौज-मस्ती भूल बच्चे श्रम करने को विवश हैं। संकटग्रस्त, बेसहारा, लावारिस बच्चों की सहायता, उनके पुनर्वास, उन्हें गोद लेने के जितने प्रयास होने चाहिए, उतने हो नहीं पा रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के साथ सामाजिक संस्थाएं भी बाल श्रम रोकने के लिए प्रयत्नशील हैं, लेकिन गरीबी दूर होने पर ही बाल श्रम की समस्या से मुक्ति मिल सकती है।


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