खेल 'मज़हब' नहीं

टी-20 विश्व कप के पराजित मैच की समीक्षा हमने भी की थी। यह देश के प्रत्येक जागरूक नागरिक और विश्लेषक का अधिकार और धर्म है

Update: 2021-10-26 18:41 GMT

टी-20 विश्व कप के पराजित मैच की समीक्षा हमने भी की थी। यह देश के प्रत्येक जागरूक नागरिक और विश्लेषक का अधिकार और धर्म है कि वह किसी भी पक्ष की सम्यक आलोचना करे। खेल को खेल ही रहने दें, मज़हबी रंग न दें। क्रिकेट के किसी भी खिलाड़ी के संदर्भ में हिंदू-मुस्लिम न करें। क्रिकेट सामूहिकता का खेल है, लिहाजा सभी 11 खिलाड़ी जिम्मेदार हैं। इसमें किसी विशेष दिन कोई खिलाड़ी 'नायक' या 'मैन ऑफ द मैच' तो हो सकता है, लेकिन किसी 'ऑफ दिन', किसी भी खिलाड़ी को 'खलनायक' करार नहीं दिया जा सकता। ऐसा करना खेल-भावना के खिलाफ होगा। कोई भी जीत या हार किसी मज़हब अथवा समुदाय के जज़्बातों की जीत या हार नहीं हो सकती। इस संदर्भ में पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख़ रशीद का बयान 'शर्मनाक' और 'निंदनीय' है। उसकी इससे ज्यादा व्याख्या हम नहीं करेंगे। भारत-पाकिस्तान मैच में मुहम्मद शमी बहुत महंगे गेंदबाज साबित हुए और 3.5 ओवर में उन्होंने 43 रन लुटा दिए। यह कोई भी खिलाड़ी कर सकता है। जरा याद करें भारतीय गेंदबाज चेतन शर्मा को, जिनकी अंतिम गेंद पर पाकिस्तान के जावेद मियांदाद ने छक्का जड़ दिया था और भारत मैच हार गया था। मौजूदा पीढ़ी को यह प्रकरण याद भी नहीं होगा। चेतन शर्मा हो या शमी हो, उन गेंदबाजों का आकलन हिंदू-मुसलमान के तौर पर करना गलत है, फिरकापरस्ती है और सांप्रदायिक नफरत की बुनियाद भी है। 'क्रिकेट के भगवान' माने जाने वाले, 'भारत-रत्न' सचिन तेंदुलकर भारतीय गेंदबाज शमी को विश्वस्तरीय गेंदबाज आंकते हैं। वह दिन शमी का 'ऑफ दिन' था, जो किसी अन्य खिलाड़ी का भी हो सकता है। जिस गेंदबाज ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों में, भारत के लिए, 350 से अधिक विकेट लिए हैं, वह 'खलनायक' अथवा कुछ भी नकारात्मक कैसे माना जा सकता है? यह बेहद संकीर्ण और घटिया सोच है। कृपया ऐसे मज़हबी लोग क्रिकेट का खेल देखना ही छोड़ दें। सचिन समेत लक्ष्मण, सहवाग और गौतम गंभीर सरीखे विश्व चैम्पियन रहे बल्लेबाजों ने शमी और टीम इंडिया का समर्थन किया है। वे उनके साथ चट्टान की तरह खड़े हैं। बल्कि आगे बढ़ने का आह्वान भी कर रहे हैं, लेकिन इस प्रकरण का एक और सांप्रदायिक तथा देश-विरोधी पक्ष भी है।

कश्मीर के श्रीनगर समेत देश के कुछ हिस्सों में पाकिस्तान की जीत के जश्न मनाए गए। पटाखे और आतिशबाजियां छोड़ी गईं। पाबंदियों के बावजूद पटाखेबाजी….! सोशल मीडिया पर खासकर शमी को बहुत ट्रोल किया गया। वीरेंद्र सहवाग को पलटवार करना पड़ा- 'शमी चैम्पियन हैं और कोई भी खिलाड़ी, जो भारत की जर्सी पहनता है, उसके अंदर ऑनलाइन भीड़ से ज्यादा देशभक्ति होती है।' श्रीनगर में तो पाकिस्तान का झंडा लहराते हुए 'पाकिस्तान जि़ंदाबाद' के नारे तक बुलंद किए गए। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हमेशा पाकपरस्त रही हैं, लिहाजा उन्होंने सवाल उठाया कि पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने के लिए कश्मीरियों के खिलाफ गुस्सा क्यों जताया जा रहा है? दरअसल वे नारेबाज कश्मीरी नहीं, पाकिस्तानी एजेंट और दलाल थे, जिन्हें कुछ 'खनकते सिक्के' मिल जाते हैं और वे अपनी देशप्रियता भूल जाते हैं। कश्मीर में ऐसे देश-विरोधी तत्त्व अब भी हैं। हमेशा रहे हैं, क्योंकि यह तो हमारी पुरानी परंपरा रही है, नहीं तो हम सदियों तक गुलाम क्यों रहते? गौरतलब है कि यह किसी भी नागरिक का मौलिक या संवैधानिक अधिकार नहीं है कि वह देश-विरोध का प्रदर्शन करे। इज़हार सरकार, नेता, नीतियों अथवा किसी भी राजनीतिक दल के खिलाफ किया जा सकता है, लेकिन 'पाकिस्तान जि़ंदाबाद' में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भाव या अधिकार निहित नहीं है। एक पार्टी प्रवक्ता की यह टिप्पणी बिल्कुल सटीक लगती है कि हमारी खुफिया एजेंसियां- रॉ और आईबी-खूब मेहनत के बावजूद ऐसे 'आस्तीन के सांपों' को ढूंढ नहीं पातीं, जो एक मैच ने कर दिया और देश के गद्दार बेनकाब हो गए। उधर खेल के मैदान पर दोनों देशों के खिलाड़ी आपस में गले मिले। यही खेल भावना है।

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