खेल 'मज़हब' नहीं
टी-20 विश्व कप के पराजित मैच की समीक्षा हमने भी की थी। यह देश के प्रत्येक जागरूक नागरिक और विश्लेषक का अधिकार और धर्म है
टी-20 विश्व कप के पराजित मैच की समीक्षा हमने भी की थी। यह देश के प्रत्येक जागरूक नागरिक और विश्लेषक का अधिकार और धर्म है कि वह किसी भी पक्ष की सम्यक आलोचना करे। खेल को खेल ही रहने दें, मज़हबी रंग न दें। क्रिकेट के किसी भी खिलाड़ी के संदर्भ में हिंदू-मुस्लिम न करें। क्रिकेट सामूहिकता का खेल है, लिहाजा सभी 11 खिलाड़ी जिम्मेदार हैं। इसमें किसी विशेष दिन कोई खिलाड़ी 'नायक' या 'मैन ऑफ द मैच' तो हो सकता है, लेकिन किसी 'ऑफ दिन', किसी भी खिलाड़ी को 'खलनायक' करार नहीं दिया जा सकता। ऐसा करना खेल-भावना के खिलाफ होगा। कोई भी जीत या हार किसी मज़हब अथवा समुदाय के जज़्बातों की जीत या हार नहीं हो सकती। इस संदर्भ में पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख़ रशीद का बयान 'शर्मनाक' और 'निंदनीय' है। उसकी इससे ज्यादा व्याख्या हम नहीं करेंगे। भारत-पाकिस्तान मैच में मुहम्मद शमी बहुत महंगे गेंदबाज साबित हुए और 3.5 ओवर में उन्होंने 43 रन लुटा दिए। यह कोई भी खिलाड़ी कर सकता है। जरा याद करें भारतीय गेंदबाज चेतन शर्मा को, जिनकी अंतिम गेंद पर पाकिस्तान के जावेद मियांदाद ने छक्का जड़ दिया था और भारत मैच हार गया था। मौजूदा पीढ़ी को यह प्रकरण याद भी नहीं होगा। चेतन शर्मा हो या शमी हो, उन गेंदबाजों का आकलन हिंदू-मुसलमान के तौर पर करना गलत है, फिरकापरस्ती है और सांप्रदायिक नफरत की बुनियाद भी है। 'क्रिकेट के भगवान' माने जाने वाले, 'भारत-रत्न' सचिन तेंदुलकर भारतीय गेंदबाज शमी को विश्वस्तरीय गेंदबाज आंकते हैं। वह दिन शमी का 'ऑफ दिन' था, जो किसी अन्य खिलाड़ी का भी हो सकता है। जिस गेंदबाज ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों में, भारत के लिए, 350 से अधिक विकेट लिए हैं, वह 'खलनायक' अथवा कुछ भी नकारात्मक कैसे माना जा सकता है? यह बेहद संकीर्ण और घटिया सोच है। कृपया ऐसे मज़हबी लोग क्रिकेट का खेल देखना ही छोड़ दें। सचिन समेत लक्ष्मण, सहवाग और गौतम गंभीर सरीखे विश्व चैम्पियन रहे बल्लेबाजों ने शमी और टीम इंडिया का समर्थन किया है। वे उनके साथ चट्टान की तरह खड़े हैं। बल्कि आगे बढ़ने का आह्वान भी कर रहे हैं, लेकिन इस प्रकरण का एक और सांप्रदायिक तथा देश-विरोधी पक्ष भी है।
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