मां की कोख में पल रहे भ्रूण ने कर दिया मुकदमा! 62 और बच्चे भी आए उसके साथ, पर वजह क्या है

जहां भारत में बड़े-बुजुर्ग अपने तजुर्बों से नसीहत देते हैं कि कोर्ट-कचहरी और मुकदमेबाजी से बचना चाहिए, वहीं दक्षिण कोरिया से इस नसीहत के ठीक उलट, एक हैरान करने वाली खबर है

Update: 2022-07-06 17:43 GMT

By लोकमत समाचार सम्पादकीय

जहां भारत में बड़े-बुजुर्ग अपने तजुर्बों से नसीहत देते हैं कि कोर्ट-कचहरी और मुकदमेबाजी से बचना चाहिए, वहीं दक्षिण कोरिया से इस नसीहत के ठीक उलट, एक हैरान करने वाली खबर है. वहां एक बीस हफ्ते के भ्रूण ने अपनी सरकार की नीतियों के खिलाफ मुकदमा किया है. वादी का कहना है कि कोरिया सरकार की ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर लगाम लगाने की नीतियां नाकाफी हैं और एक लिहाज से उससे उसका जीने का संवैधानिक अधिकार छीनती हैं.
वुडपेकर नाम के इस अजन्मे बच्चे के साथ 62 और बच्चे भी इस मुकदमे में शामिल हैं जिन्होंने कोरिया की एक अदालत में मामला दर्ज किया है. 'बेबी क्लाइमेट लिटिगेशन' नाम से चर्चित हो रहे इस मुकदमे में इन बच्चों के वकील ने इस आधार पर एक संवैधानिक दावा दायर किया है कि देश के 2030 तक के नेशनली डिटर्मिंड कंट्रीब्यूशन, या NDC, या जलवायु लक्ष्य, वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए नाकाफी हैं और बच्चों के जीने के संवैधानिक हक का हनन करते हैं.
इन 62 बच्चों में 39 पांच वर्ष से कम उम्र के हैं, 22 की उम्र 6 से 10 साल के बीच है, और वुडपेकर अभी अपनी मां की कोख में पल रहा है.
ध्यान रहे कि कोरियाई संवैधानिक न्यायालय ने पहले भी एक संवैधानिक याचिका दायर करने के लिए भ्रूण की क्षमता को, यह देखते हुए स्वीकार किया है कि 'सभी मनुष्य जीवन के संवैधानिक अधिकार का विषय हैं, और जीवन के अधिकार को बढ़ते हुए भ्रूण के लिए भी मान्यता दी जानी चाहिए.'
ली डोंग-ह्यून, जो वुडपेकर नाम के इस भ्रूण से गर्भवती हैं और एक छह साल के, मुकदमे के दूसरे दावेदार की मां भी हैं, कहती हैं, ''जब जब यह भ्रूण मेरी कोख में हिलता डुलता है, मुझे गर्व की अनुभूति होती है. मगर जब मुझे एहसास होता है कि इस अजन्मे बच्चे ने तो एक ग्राम भी कार्बन उत्सर्जित नहीं की लेकिन फिर भी इसे इस जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के दंश को झेलना पड़ता है और पड़ेगा, तो मैं दुखी हो जाती हूं.''
यह मामला दरअसल नीदरलैंड में 2019 के एक ऐतिहासिक मुकदमे से प्रेरित है जहां मुकदमा करने वाले पक्ष की दलील के आगे कोर्ट ने सरकार को उत्सर्जन कम करने का आदेश दिया और फिर यह मामला एक नजीर बना.


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