युद्ध के मुहाने
यों इस टकराव के सबसे गंभीर और संवेदनशील स्वरूप में पहुंचने के बावजूद यह उम्मीद बनी हुई थी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें जारी थीं कि किसी तरह यह जंग रुके और दोनों देशों के बीच सुलह हो। मगर बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम से यह आशंका पैदा हो गई है कि यह युद्ध कहीं दुनिया के अन्य देशों के बीच भी न फैल जाए।
Written by जनसत्ता; यों इस टकराव के सबसे गंभीर और संवेदनशील स्वरूप में पहुंचने के बावजूद यह उम्मीद बनी हुई थी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें जारी थीं कि किसी तरह यह जंग रुके और दोनों देशों के बीच सुलह हो। मगर बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम से यह आशंका पैदा हो गई है कि यह युद्ध कहीं दुनिया के अन्य देशों के बीच भी न फैल जाए।
गौरतलब है कि हाल ही में रूस के क्रीमिया पुल के एक हिस्से को तबाह कर दिया गया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव ने गंभीर शक्ल अख्तियार कर ली थी। उस हमले के बाद रूस ने यूक्रेन पर हमले तेज कर दिए थे और तभी इस बात की आशंका उभरी थी कि शायद हालात और बिगड़ें। इस बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस की निंदा करने से लेकर अन्य स्तर पर युद्ध खत्म कराने की कोशिशें जारी थीं।
अब जो नया घटनाक्रम सामने आया है, वह न केवल यूक्रेन, बल्कि समूचे विश्व के लिहाज से चिंताजनक है। हाल में यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी, जिसके बाद नए वैश्विक समीकरण बनने की संभावना बनी। लेकिन नाटो की सुगबुगाहट के बाद रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का जो रुख सामने आया है, उसने दुनिया के तमाम देशों की चिंता बढ़ा दी है।
पुतिन ने साफ लहजे में कहा है कि अगर किसी भी मामले में रूसी सेना के साथ नाटो सैनिकों का सीधा संपर्क या फिर टकराव हुआ तो यह एक बहुत ही खतरनाक कदम होगा, जो वैश्विक तबाही का कारण बन सकता है और मुझे उम्मीद है कि जो लोग ऐसा कह रहे हैं, वे इतने समझदार हैं कि ऐसा कदम न उठाएं। रूस ने जिन हालात में और जो वजहें बता कर यूक्रेन पर हमला किया था, उसके मद्देनजर देखें तो अगर सचमुच नाटो सैन्य स्तर पर दखल देता है, तो युद्ध के भावी स्वरूप और त्रासदी की कल्पना की जा सकती है। खासकर पुतिन ने जिस भाषा में टकराव के नतीजों के बारे में चेतावनी दी है, उससे कई तरह की आशंकाएं खड़ी हो गई हैं।
दरअसल, पुतिन पहले ही यह कह चुके हैं कि वे रूस को सुरक्षित रखने के लिए परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकेंगे। इसके बाद जी-7 देशों के समूह ने कहा था कि रूस की ओर से किसी भी तरह के रासायनिक, जैविक और परमाणु हथियारों का इस्तेमाल बेहद गंभीर हालात पैदा करेगा। यूक्रेन के अपने कब्जे वाले चार क्षेत्रों को रूस पहले ही अपने में मिला चुका है और अब भी वह पीछे हटने की मुद्रा में नहीं दिख रहा।
दूसरी ओर, यूक्रेन कमजोर होने के बावजूद मोर्चा छोड़ने को तैयार नहीं है। अपनी स्थिति से वाकिफ होने के बावजूद वह जिस तरह अमेरिका और नाटो के सहयोग की ओर बढ़ रहा है, उससे युद्ध के नए मोर्चे बनने की आशंका है। अगर किन्हीं स्थितियों में नाटो के बीच में आने के बाद युद्ध का स्वरूप बिगड़ता है तो आखिरी तौर पर जीत चाहे जिसकी हो, मगर इससे होने वाली तबाही की भरपाई शायद कभी नहीं की जा सकेगी। समय रहते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस और यूक्रेन के इस युद्ध को रोकने की ठोस कोशिश करनी होगी, अन्यथा इसका हश्र इंसानियत के खिलाफ बेहद त्रासद हो सकता है।