सर्वोच्च न्यायालय का 'कोरोना कवच'
भारत के लोकतन्त्र की शुरू से ही यह खूबसूरती रही है कि संविधान की बुनियाद पर रखी हुई जब इसकी प्रशासनिक प्रणाली का कोई भी अंग शिथिल पड़ने लगता है
आदित्य चोपड़ा: भारत के लोकतन्त्र की शुरू से ही यह खूबसूरती रही है कि संविधान की बुनियाद पर रखी हुई जब इसकी प्रशासनिक प्रणाली का कोई भी अंग शिथिल पड़ने लगता है तो स्वतन्त्र न्यायपालिका उसे अपने कर्त्तव्य का बोध कराते हुए पूरे तन्त्र को न केवल दिशा-निर्देश देती है बल्कि उसमें नई ऊर्जा भी भर देती है। यह ऊर्जा समूची शासन व्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिए इस प्रकार भरी जाती है कि पूरी अलसायी व्यवस्था फिर से सावधान होकर अपने दायित्व का निर्वाह करने लगे। कोरोना संक्रमण काल में जिस तरह विभिन्न राज्य सरकारें अपने आक्सीजन आवंटन के लिए केन्द्र से उलझ रही हैं और न्यायालयों की शरण में जा रही हैं उसके मद्देनजर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा फार्मूला ईजाद किया जिससे किसी भी राज्य को उसके हिस्से की जायज आक्सीजन मिल सके। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि कोरोना के तेज रफ्तार कहर को देखते हुए पूरे देश में सरकारों के हाथ-पैर फूल रहे हैं और वे इस पर काबू पाने के लिए इस तरह बेचैन हो रही हैं जिस तरह रेगिस्तान में पानी की तलाश में हिरण कुलाचे मारता है। मगर इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र का विकास किसी लावारिस बच्चे की तरह ही किया गया है और हालत यह है कि इस पर हम अपने सकल उत्पाद का केवल एक प्रतिशत ही खर्च करते हैं।