रूस-यूक्रेन युद्ध से सबसे बड़ा सबक यही मिला है कि अपनी रक्षा के लिए आप किसी और पर निर्भर नहीं रह सकते
यूक्रेन पर अपने हमले को रूस ने 'विशेष सैन्य अभियान' का नाम दिया है।
जीएन वाजपेयी। यूक्रेन पर अपने हमले को रूस ने 'विशेष सैन्य अभियान' का नाम दिया है। राष्ट्रपति पुतिन को पूरा भरोसा था कि जैसे उनकी सेनाओं ने क्रीमिया को जीत लिया, वैसे ही यूक्रेन को भी तीन दिनों में ध्वस्त कर देंगी। उनके लिए यह अफसोसजनक रहा कि महीने भर तक भारी-भरकम सैन्य हमलों के बावजूद यूक्रेन के प्रमुख शहरों में रूस की पैठ नहीं बन पाई। यहां तक कि रूस ने हाइपरसोनिक मिसाइल का भी सहारा लिया। यूक्रेन के सैन्य बलों, नागरिकों और राजव्यवस्था ने बहुत मजबूती से प्रतिरोध किया। अपने शस्त्रागार के बजाय देशभक्ति और लोकतंत्र के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें यह शक्ति प्रदान की है, जो संस्थानों और मानवीय जीवन पर आघात से भी अप्रभावित है। अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त थामस सेलिंग के अनुसार कोई टकराव वास्तव में उन नीति-नियंताओं के बीच रणनीतिक मुकाबला होता है, जो अपनी पसंद के विकल्पों को लेकर उसकी कीमत एवं फायदों को तौलते हैं। हालांकि हमलावर की रणनीति की सफलता उन संभावित परिणामों पर निर्भर करती है, जिस पर हमला किया जा सकता है।
पूरा विश्व यूक्रेन युद्ध की विभीषिका का प्रत्यक्षदर्शी बना हुआ है। सहानुभूति को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव से लेकर यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति और लाखों यूक्रेनियों का पड़ोसी देशों में शरणार्थी के रूप में स्वागत और रूस पर अप्रत्याशित आर्थिक प्रतिबंध और उसके धनकुबेरों एवं उनके संगी-साथियों पर कसता शिकंजा हम सभी ने देखा है। इतना ही नहीं पूरी दुनिया ऊर्जा संसाधनों, खनिज, खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी देख रही है। महंगाई के कारण उपजी मंदी और व्यापक मानवीय त्रासदी की स्थिति बन रही है। इस युद्ध का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि यह लड़ाई कितनी लंबी खिंचेगी और उसका अंत किस प्रकार होता है? रूस की मजबूत सेना के खिलाफ यूक्रेन के सीमित सैनिक और स्वयंसेवक ही मोर्चा संभाल हुए हैं। अभी से यह कहा जाने लगा है कि युद्ध में यूक्रेन की नैतिक जीत हो रही है। दुनिया भर में बन रहे अधिकांश विमर्श इसी पर केंद्रित हैं कि पुतिन यह लड़ाई हार रहे हैं। हालांकि जंग के मैदान में जीत इसी पहलू से निर्धारित होगी कि यूक्रेन का सैन्य अमला अपने देश की रक्षा के लिए कब तक अड़ा रहेगा?
यूक्रेन युद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े नीति-नियंताओं को कई सबक देता है। सबसे पहला तो यह कि अपनी रक्षा के लिए आप किसी और पर निर्भर नहीं रह सकते। इसमें सहानुभूति से कोई खास मदद नहीं मिलने वाली। न केवल लड़ाई खुद लडऩी होगी, बल्कि उसके प्रभावों-दुष्प्रभावों को भी स्वयं ही झेलना होगा। दूसरा सबक यह है कि मौजूदा युद्ध केवल एक ही मोर्चे पर नहीं लड़े जाते। उनमें सैन्य संघर्ष से लेकर साइबर युद्ध, सूचना युद्ध और आर्थिक प्रतिबंध एवं ऊर्जा संकट जैसे मोर्चे भी शामिल होते हैं। इसमें किसी के उपहार उदार अवश्य हो सकते हैं, लेकिन वे जिताने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। इसका उत्तर उसी मंत्र में निहित है, जिसका आह्वान प्रधानमंत्री मोदी पिछले कुछ अर्से से करते आए हैं। यह मंत्र है आत्मनिर्भरता का, जिसमें रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, सूचना हाईवे और ऊर्जा पर्याप्तता जैसे तमाम पहलू समाहित हैं। भारत के आयात बिल में ऊर्जा संसाधन, प्रौद्योगिकी और सैन्य साजोसामान से लेकर उन तमाम उपकरणों के पुर्जे भी प्रमुख अवयव हैं, जिनसे यहां निर्माण कार्य किया जाता है। यह हमारी कमियों को मुखरता से रेखांकित करता है। भारत एक शांतिप्रिय देश है और उचित ही है कि वह किसी पाले में नहीं खड़ा होता। हालांकि अक्सर उसकी विदेश नीति और रुख को इस प्रकार सुसंगत होना चाहिए कि उसके रणनीतिक रक्षण का मसला अलग-थलग न पड़े। मजबूत रणनीतिक कवच की रूपरेखा लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़ी है। मौजूदा सरकार स्थितियों को गंभीरता को समझकर तत्परता से कमियों को दूर करने में जुटी है, किंतु दशकों की हीलाहवाली को रातोंरात दुरुस्त नहीं किया जा सकता। आर्थिक धुरी को बदलने और बहुध्रुवीयता वाला वर्तमान भू-राजनीतिक उभार अत्यधिक तत्परता की मांग करता है। ऐसे में एक व्यापक रणनीतिक कार्ययोजना तैयार करनी होगी। इसमें सबसे बड़ी प्राथमिकता तो अर्थव्यवस्था का कुशल प्रबंधन एवं ऊंची जीडीपी वृद्धि होनी चाहिए। इसके लिए लोगों, उद्यमों और नीति-नियंताओं को बेहतर समझ बनाकर उचित समन्वय के साथ काम करना होगा।
हथियारों के निर्माण का काम घरेलू स्तर ही बढ़ाना होगा। उनके कलपुर्जों से लेकर उनके निर्माण और परीक्षण की प्रक्रिया यहीं संपादित करनी होगी। विनिर्माण से जुड़े उद्यम नकल के बजाय नवाचार में उत्कृष्टता प्राप्त करने के प्रयास करें। अत्याधुनिक शस्त्र भंडार बनाने के लिए हमारे नागरिक एवं सैन्य कर्मियों को कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा।
भारतीय आइटी प्रतिभाओं के कौशल का लोहा पूरी दुनिया मानती है। यूक्रेन को दुनिया भर से स्वैच्छिक लड़ाकों का साथ मिल रहा है। इसी तरह दुनिया भर में फैली भारतीय प्रतिभाओं को लामबंद होकर दुनिया की सर्वोत्तम तकनीकी एवं साइबर क्षमताओं के विकास में जुटना चाहिए। बहुस्तरीय बुनियादी ढांचे के विकास में आर्थिक वृद्धि के साथ ही सामरिक लक्ष्यों का भी ध्यान रखा जाए। इस दिशा में कार्य आरंभ हो गया है, लेकिन उसकी गति धीमी है। नीयि-नियंताओं की गंभीरता तो समझ आती है, लेकिन खेल बिगाडऩे वाले लोग भी सक्रिय हैं। इसी प्रकार हरित ऊर्जा का विकास भी आत्मनिर्भरता की दृष्टि से अब और प्रासंगिक हो गया है।
समय आ गया है कि हम अपनी भौगोलिक अखंडता, लोकतंत्र और आर्थिक बेहतरी को हमेशा के लिए सुनिश्चित करें। किसी देश का मानमर्दन उसकी कई पीढिय़ों के कल्याण, खुशी और गौरव को प्रभावित करता है। भारत गौरव के ऐसे शाश्वत भाव को सुनिश्चित करने के पड़ाव पर है। इसके लिए एकजुटता दिखाना मौजूदा पीढ़ी के लिए सम्मान और सौभाग्य की बात होनी चाहिए।
यूक्रेन ने दिखाया है कि नेतृत्व विशेषकर राजनीतिक नेतृत्व कितना मायने रखता है। प्रत्येक स्तर पर नेतृत्व को देशभक्ति, मातृभूमि से प्रेम और जन अपेक्षाओं की पूर्ति का प्रदर्शन करना चाहिए। अपने संकीर्ण हितों को किनारे कर देना चाहिए। पिछले महीने आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यही बताते हैं कि विकास ही लोगों को लुभाता है और 'प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद' से सत्ता विरोधी रुझान को मात दी जा सकती है।
(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)