सेंधमारी रोकने का दुरूह काम

किलो क्लास पनडुब्बी के आधुनिकीकरण से जुड़ी खुफिया जानकारी लीक करने के मामले में सीबीआई द्वारा की गई गिरफ्तारियां शोचनीय तो हैं

Update: 2021-10-28 07:30 GMT

अभिजीत अय्यर मित्र किलो क्लास पनडुब्बी के आधुनिकीकरण से जुड़ी खुफिया जानकारी लीक करने के मामले में सीबीआई द्वारा की गई गिरफ्तारियां शोचनीय तो हैं, पर उम्मीद भी बंधाती हैं। अब तक मुंबई में तैनात नौसैन्य कमांडर सहित कुछ सेवानिवृत्त अधिकारी केंद्रीय जांच ब्यूरो के हत्थे चढ़े हैं। जिस गति से इस पूरे मामले की जांच चल रही है, कयास है कि आने वाले दिनों में कई और हाथों में हथकड़ियां लग सकती हैं। ऐसे मामले पेशानी पर इसलिए बल बढ़ाते हैं, क्योंकि ये देश की सुरक्षा से सीधे-सीधे जुड़े होते हैं। चिंता की बात यह है कि सेंधमारी की ऐसी घटनाएं हाल के वर्षों में काफी बढ़ गई हैं। पिछले साल के आखिरी दिनों में ही हमारी एजेंसियों ने लुधियाना के हलवर एयरफोर्स के एक कर्मी को गिरफ्तार किया था, जो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए गुपचुप तरीके से सूचनाएं बटोर रहा था। इसके अलावा भी कई अन्य घटनाएं बीते कुछ महीनों में हुई हैं। सुरक्षाकर्मियों के लिए तो 'हनी ट्रैप' अब जाना-पहचाना शब्द बन गया है।

जाहिर है, ऐसी घटनाओं की तीव्रता और प्रवृत्ति हमारे लिए परेशानी की बात है। मगर इससे एक धवल तस्वीर भी बनती है। दरअसल, ऐसी गिरफ्तारियां यह भी तस्दीक करती हैं कि देश की भ्रष्टाचार निरोधक इकाइयां अच्छी तरह से काम कर रही हैं। वे न सिर्फ हर किसी पर नजर रख रही हैं, बल्कि कुसूरवारों को दबोच भी रही हैं। यह सुखद इसलिए है, क्योंकि दुनिया की ऐसी कोई फौज नहीं है, जहां खुफिया जानकारियों में सेंध न लगाई जाती हो। अमेरिका तो लगातार इससे जूझ रहा है। वहां चीन और रूस के कई नागरिक सूचनाएं लीक करने के आरोप में दबोचे गए हैं। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे तमाम देशों में ऐसी हरकतें करने वालों पर कार्रवाइयां होती रही हैं। कहीं भी ऐसा कोई माकूल तंत्र नहीं है, जो इन सब चीजों पर लगाम लगा सके।
लिहाजा, जब भी कोई गिरफ्तारी होती है, तब यह आशा करनी चाहिए कि कम से कम हम ऐसे अपराधियों की शिनाख्त तो कर पा रहे हैं। यह एक सकारात्मक रुख है। सीबीआई ने नौसेना के जिस अधिकारी को गिरफ्तार किया है, वह वरिष्ठ ओहदे पर थे। उनकी गिरफ्तारी हैरत में डालती है, क्योंकि अपने यहां यही संस्कृति फलती-फूलती रही है कि जो जितना बड़ा अधिकारी होगा, उसकी उतनी कम जांच-पड़ताल होगी। उस पर तुलनात्मक रूप से कम नजर रखी जाती है। पद का रुतबा हम पर सिर चढ़कर बोलता है। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस अधिकारी की गिरफ्तारी संकेत है कि इस कु-संस्कृति से हम अब ऊपर उठने लगे हैं। अब बड़े से बड़ा अधिकारी भी जांच एजेंसियों की निगाह में है और उन पर भी जांच की आंच आ सकती है। इससे निस्संदेह वरिष्ठ अधिकारियों में भी भय पैदा होगा और गलत काम करने से पहले वे कई बार सोचेंगे।
बचाव के उपाय की अगर बात करें, तो ऐसे मामलों से बचना खासा मुश्किल है। सख्त लहजे में कहें, तो हम इनको कतई नहीं रोक सकते। ये मानवीय स्वभाव हैं। जब राष्ट्र, समाज, या परिवार के हर सदस्य सद्गुणी नहीं होते, तो भला 12 लाख की क्षमता वाली हमारी थल सेना, 67 हजार कर्मियों वाली नौसेना अथवा 1.4 लाख सैनिकों की ताकत रखने वाली वायु सेना में हर सदस्य से अच्छे आचरण की अपेक्षा भला कैसे की जा सकती है? हां, कुछ ऐसे उपाय जरूर किए जा सकते हैं, ताकि अपराधियों व देशद्रोहियों को नापाक हरकतों में कामयाब होने से पहले दबोचा जा सके।
यहां अमेरिका एक उदाहरण हो सकता है। वह अपने परमाणु संस्थानों में काम करने वाले तकरीबन दो फीसदी कर्मियों को हर वर्ष बाहर का रास्ता दिखाता है। वह हर कर्मचारी के आचरण की पड़ताल करता है। न सिर्फ सेवा के दौरान, बल्कि ड्यूटी के बाद भी उसके कर्मी जांच एजेंसियों के रडार पर होते हैं। कर्मियों के निजी जीवन तक को बार-बार परखा जाता है। वह मानता है कि चूंकि परमाणु संस्थान बहुत ही संवेदनशील विभाग है और यहां हल्की सी चूक गंभीर मानवीय त्रासदी को न्योता दे सकती है अथवा वैश्विक मंच पर अमेरिका की प्रतिष्ठा धूमिल कर सकती है, इसलिए कार्य के दौरान किसी तरह की जोखिम की कतई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। और, अगर कोई कर्मी निजी जीवन में गलत आचरण करता है, तो मुमकिन है कि कार्यस्थल पर भी वह गलती करे। यही वजह है कि कर्मियों के कसीनो जाने, सिगरेट पीने, ड्रिंक लेने जैसी छोटी-छोटी आदतों पर भी निगाह होती है। कर्मियों की हर चूक जांच एजेंसी दर्ज करती है और उसी आधार पर हर साल कर्मचारियों की छंटनी करती है।
अपने यहां निस्संदेह हुबहू ऐसी व्यवस्था नहीं बनाई जा सकती। अगर कर्मियों पर इस तरह निगरानी हो, तो संभवत: पूरी फौज को ही बाहर का रास्ता दिखाना पड़ जाए, क्योंकि यहां नशे की एक 'खास संस्कृति' कायम है। कई बार तो सैन्य अधिकारियों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वे नशे का सेवन करें। इसीलिए, उनके व्यवहार के आकलन का हमें कुछ अलग रास्ता अपनाना होगा। जब तक ऐसा कुछ नहीं हो जाता, तब तक हम अपनी भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों को और मजबूत बना सकते हैं, ताकि देश की सुरक्षा से खेलने वालों की मंशा कतई पूरी न हो सके और उन्हें जल्द से जल्द सलाखों से पीछे धकेला जा सके।
स्पष्ट है, अभी एक लंबा रास्ता हमें तय करना है। सेंधमारी को थामने संबंधी कोई ठोस व्यवस्था बनाना आसान काम नहीं है। हमारे नीति-नियंता भ्रष्टाचार निरोधक इकाइयों को अत्याधुनिक बनाएं और उन्हें तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराएं। इसके अलावा, अति संवेदनशील जगहों पर तैनात कर्मियों की लगातार जांच-पड़ताल करके व उनकी सेवाओं में बार-बार रद्दोबदल करके सुरक्षा सेवाओं को मजबूत बनाया जा सकता है। हमारी सेवाएं जितनी मजबूत होंगी, उनमें सेंधमारी की आशंका उतनी ही कम होती जाएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


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