सत्ता की वांछित परीक्षा

पांचवें साल की सत्ता में हिमाचल की नीयत व नखरे उस मुकाम पर हैं, जहां प्रदर्शन की हर कवायद का विश्लेषण होगा। जाहिर है हिमाचल की सरकारी मशीनरी व सत्ता का नेतृत्व इस समय को सुंदर बनाने की हर करवट पर सतर्क हो रहा है

Update: 2022-01-13 03:00 GMT

पांचवें साल की सत्ता में हिमाचल की नीयत व नखरे उस मुकाम पर हैं, जहां प्रदर्शन की हर कवायद का विश्लेषण होगा। जाहिर है हिमाचल की सरकारी मशीनरी व सत्ता का नेतृत्व इस समय को सुंदर बनाने की हर करवट पर सतर्क हो रहा है, लेकिन मसौदे फिर कोविड की बिगड़ती स्थिति में उलझ रहे हैं। सरकार की अहम बैठकों व मंत्रिमंडल की दृष्टि में कोविड चुनौती से निपटने की रणनीति में सत्ता का अवांछित इम्तिहान शुरू हो गया है, तो यह मानना पड़ेगा कि बतौर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को अपनी अधिकतम ऊर्जा व उर्वरता कोरोना के खिलाफ लगानी पड़ी और यह क्रम पांचवें साल की हजामत में फिर जुट गया है। बावजूद इसके हिमाचल के राजनीतिक विश्लेषण में पांचवां साल अपनी शिकायतों से भरा रहेगा और सरकार की कसौटियों पर विपक्ष के लिए आक्रोश चुनना आसान होगा। क्या हिमाचल का विपक्ष पांच विधानसभा चुनावों में उड़ती आशंकाओं में फंसी भाजपा की स्थिति को प्रदेश तक भांप रहा है या कांग्रेस के भीतर शख्सियतें यूं ही लड़ती रहेंगी। पांचवां साल यानी जलवों का युद्ध है और यह भाजपा बनाम कांग्रेस के बीच अपनी-अपनी पार्टी की आंतरिक ताकत की आजमाइश भी है।

काग्रेस की अपने मुद्दों की स्थिरता के बीच आंतरिक खिन्नता का प्रकोप इसलिए भी दिखाई दे रहा है कि यहां नेतृत्व छीनने का अवसाद है, तो बयानों की लंगड़ी में एक दूसरे को गिराने की जद्दोजहद भी है। बहरहाल सरकार की सूचनाएं बड़े से बड़ा परिदृश्य बनाने की फिराक में अब ऐसे कारनामे करेंगी, जिनमें कहीं जिगर तो कहीं दिल की बात होगी। सूचनाएं बता रही हैं कि अप्रैल में सबसे अधिक शिलान्यासों के मील पत्थर और उद्घाटन समारोहों को प्रभावशाली बनाया जाएगा। ऊना में पीजीआई सेटेलाइट या केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए शिलान्यास पत्थर चमकाए जा रहे हैं, तो एक साथ फोरेस्ट क्लीयरेंस की कई फाइलें बाहर आएंगी और रुके कामों के राजनीतिक शुभ मुहूर्त कराएंगी। प्रदेश की सबसे बड़ी परियोजना यानी मंडी का ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट का शुभारंभ वर्तमान सरकार की महत्त्वाकांक्षा को लिख पाएगा या इसी का मुखौटा पहनकर पहले से बनी हवाई पट्टियां अपना शृंगार करेंगी। जनता गुजरात मॉडल में भाजपा के कसीदों का रंग देखना चाहेगी तथा यह यकीन भी करना चाहेगी कि वास्तव में डबल इंजन सरकार चली कितने कोस।

यहीं से हिमाचल सरकार की चुनौती बढ़ती जाएगी, क्योंकि पिछली सरकार की परिकल्पना में जिन योजनाओं-परियोजनाओं का शृंगार हुआ था, वे आज तक अगर पूरी नहीं हुईं, तो पांचवां साल विपक्ष को मुद्दे बनाने में आसान होता जाएगा। जाहिर है सत्ता के सशक्त प्रहरी के रूप में कुछ विधायक व अधिकारी श्रेष्ठ साबित होने में अग्रणी दिखाई देते हैं, लेकिन जो पिछड़ गए उनकी रीढ़ सीधी कौन करेगा। जो विधानसभा क्षेत्र विपक्ष के अधीन रहे, उन्हें वर्तमान सत्ता अंतिम वर्ष में कैसे करीब लाएगी, इसका भी जोरदार मुआयना शुरू हो रहा है। सत्ता के अहम विश्लेषणों की एक तासीर बनकर पांचवां साल सचिवालय से सड़क तक मुआयना कर रहा है, तो फैसलों की जुगत में हर्जाने तय होंगे और यह कर्मचारी साम्राज्य की बनती-बिगड़ती सूरत है जो सदा हिचकोले देती है। ऐसे में प्रदेश सरकार के लिए कोरोना के अनिश्चय से बाहर निकलते हुए यह तय करना है कि सत्ता के शपथ पत्र का राज्य स्तरीय संतुलन पैदा हो। कम से कम सत्ता पक्ष के हर विधायक को यह साबित करना है कि सुशासन के हिस्से में उसका विधानसभा क्षेत्र कितना आगे बढ़ा। झंडूता के विधायक जीत राम कटवाल ने जिस तरह कोटधार क्षेत्र को सड़क, पानी और शिक्षा के मामले में आगे किया है, उस तरह के प्रदर्शन की दरकार है। पुल, पुलिया व सड़क या जलापूर्ति की परियोजनाओं के उद्घाटन समारोह कहीं अधिक उत्तीर्ण माने जाएंगे, जबकि शिलान्यासों के स्वर्णिम अक्षर भी कहीं मद्धिम पड़ जाएंगे।


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