आतंक की विकराल होती चुनौती: तालिबान के सत्ता में आने पर आतंकी घटनाओं में वृद्धि की आशंका बढ़ी

आतंक की विकराल होती चुनौती

Update: 2021-11-01 03:59 GMT

हरेंद्र प्रताप। आठ वर्ष पूर्व पटना के गांधी मैदान में हुए बम विस्फोट के दोषियों को राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए अदालत द्वारा सजा सुनाई जानी है। अदालत ने गिरफ्तार 10 आरोपियों में से नौ को दोषी माना है। 27 अक्टूबर, 2013 को बिहार की राजधानी पटना में आयोजित नरेन्द्र मोदी की सभा के पूर्व और सभा के दौरान सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे। मैदान में पहले से रखे गए बम लगातार फटते जा रहे थे। फिर भी कोई भगदड़ नहीं मची। घटना में छह लोग मारे गए और 189 घायल हुए थे। अगर भगदड़ मचती तो हजारों की संख्या में लोग अपनी जान गंवाते। उस समय विपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी ने गांधी मैदान की घटना पर बिहार विधान परिषद में हुई चर्चा में भाग लेते हुए कहा था कि आइबी ने राज्य सरकार को पूर्व में चेतावनी दी थी। उसके बाद भी प्रशासन ने नरेन्द्र मोदी जी की प्रस्तावित रैली की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं की।


मालूम हो कि जुलाई माह में गया स्थित महाबोधि मंदिर में ब्लास्ट हुआ था। इसमें शामिल लोगों ने ही गांधी मैदान में भी ब्लास्ट किया था। देश की अनेक आतंकवादी घटनाओं के तार बिहार से जुड़ते रहे हैं। आतंकवादी बिहार से अपना पासपोर्ट तक बनवाने में सफल रहे हैं। दिल्ली में गिरफ्तार पाकिस्तानी आतंकवादी मुहम्मद असरफ 15 वर्ष पूर्व बांग्लादेश होते हुए बिहार के मुस्लिम बहुल तथा बांग्लादेश के करीब स्थित किशनगंज जिले में न केवल संरक्षण पाया, बल्कि अपना पासपोर्ट भी बनवाने में सफल रहा। 2002 में कोलकाता स्थित अमेरिकी सांस्कृतिक केंद्र पर हुए हमले के मुख्य षड्यंत्रकारी आफताब अंसारी उर्फ फरहान मल्लिक को जब दुबई से गिरफ्तारी किया गया तो उसके पास से बिहार के नालंदा जिले से अनुशंसित और पटना से जारी पासपोर्ट प्राप्त हुआ था।

2009 में बिहार के मधुबनी का रहनेवाला मुहम्मद जुबैर उर्फ मदनी जाली नोट के साथ दिल्ली में गिरफ्तार हुआ था। पूछताछ में पता चला कि लश्कर से जुड़ा मदनी भारत के नौजवानों को आतंकवादी बनाने के लिए पाकिस्तान भेजता है। दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास उड़ाने की योजना में शामिल शमीम सरवर पटना के फुलवारी शरीफ, मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के आरोपी मुहम्मद कमाल एवं खालिद बासोपट्टी मधुबनी, उत्तर प्रदेश रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर आक्रमण में शामिल मुहम्मद शहाबुद्दीन भी मधुबनी जिले के ही रहने वाले थे। 2005 में दिल्ली में पुलिस मुठभेड़ में दो पाकिस्तानियों के अलावा पटना का शम्स उर्फ परवेज भी मारा गया था। इन लोगों से एके-56 के अलावा डायनामाइट, हैंड ग्रेनेड और डेटोनेटर भी बरामद हुए थे। इनके संपर्क में कितने लोग थे? उन्हें कौन संरक्षण देता था? सवाल है कि इनकी जांच कर कड़े कदम क्यों नहीं उठाए गए?

देश की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से जुड़े होने और वहां भारतीय सैनिकों/अर्धसैनिक बलों की नियुक्ति से अवैध प्रवेश कठिन है, पर वाया नेपाल या बांग्लादेश भारत में अवैध प्रवेश होता रहा है। 1995 में नेपाल से सटे बिहार के सुपौल में सबीर अहमद कुछ अफगानियों को लेकर वाया कटिहार कोलकाता जा रहा था। बिहार की पुलिस नहीं, कस्टम विभाग ने जब उसे पकड़ा तब उसने स्वीकार किया कि उसका भाई मुहम्मद अहमद भी अफगानियों को वाया फारबिसगंज कोलकाता ले जा रहा है। दोनों भाइयों ने बताया कि पाकिस्तान के कराची का रहने वाला हाजी अख्तर उन्हें प्रति खेप 2,500 रुपये देता है। वे दोनों काठमांडू स्थित मस्जिद से इन अफगानियों को लेकर बिहार होते हुए कोलकाता पहुंचा देते हैं।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के आतंकवादी संगठन भारत के बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बंगाल आदि राज्यों में अपना नेटवर्क खड़ा कर युवकों की भर्ती करते हैं। प्रशिक्षण के लिए वाया नेपाल इन्हें पाकिस्तान भेजते हैं। भ्रष्ट तंत्र और वोट की राजनीति के कारण चाहे भारतीय मूल के आतंकवादी हों या बांग्लादेश और म्यांमार के मुस्लिम घुसपैठिए सबको राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, पासपोर्ट आदि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। वामपंथी और इस्लामी ताकतें मुस्लिम युवकों को किस प्रकार गुमराह कर रही हैं इसके उदाहरण उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे स्वयंभू नेता हैं। शरजील इमाम ने बिहार के अनेक स्थानों पर जहरीला भाषण दिया। उसके भाषण से और कितने गुमराह हुए इसका पता लगाना होगा।

गांधी मैदान की घटना कोई अंतिम घटना नहीं थी। बोध गया में तो दलाई लामा के आगमन पर एक बार पुन: बम ब्लास्ट हुआ था। विगत जून में ही बांका के एक मदरसे में बम ब्लास्ट हुआ जिसमें एक मौलवी मारा गया। जून में ही दरभंगा स्टेशन बम ब्लास्ट के साथ ही साथ नेपाल से सटे अररिया में एक ब्लास्ट हुआ। दरभंगा स्टेशन ब्लास्ट की तो जांच आगे बढ़ी, पर बांका और अररिया का क्या हुआ? पता नहीं चल रहा। बिहार का नाम आतंकवाद के कारण बदनाम हो गया है। आए दिन मधुबनी और दरभंगा माड्यूल की चर्चा होती रहती है। आतंकवाद के साथ ही अवैध हथियारों के निर्माण और उनकी आपूर्ति को लेकर भी समाचार छपते हैं। बिहार के मुंगेर में बड़े पैमाने पर एके-47 जैसे हथियार पकड़े गए थे।

बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम विस्फोट के आरोपी को जब कर्नाटक पुलिस ने मधुबनी से गिरफ्तार किया तो बिहार के तत्कालीन शासकों ने नाराजगी प्रकट की। सवाल है कि आतंकवादियों को बिहार पुलिस पकड़ क्यों नहीं पाती? क्यों शरजील इमाम को एनआइए उसके गांव की मस्जिद से जाकर पकड़ती है? अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद आतंकी घटनाओं में वृद्धि की आशंका बढ़ी है। बिहार के प्रशासनिक तंत्र को चुस्त-दुरुस्त नहीं किया गया तो फिर कोई एक और 'गांधी मैदान' लहूलुहान हो जाएगा।

(लेखक बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैं)


Tags:    

Similar News

-->