काबुल में आतंकी धमाके

काबुल एयरपोर्ट पर गुरुवार को हुए आत्मघाती हमले ने अफगानिस्तान में उस भीषण दौर की शुरुआत का संकेत दे दिया है जिसकी आशंका थी।

Update: 2021-08-28 03:22 GMT

काबुल एयरपोर्ट पर गुरुवार को हुए आत्मघाती हमले ने अफगानिस्तान में उस भीषण दौर की शुरुआत का संकेत दे दिया है जिसकी आशंका थी। कैसी त्रासदी है कि तालिबान शासन में होने वाली दुर्गति से बचने के लिए किसी भी कीमत पर वहां से निकलने को बेकरार लोग एक तरफ विमान के पहियों के नीचे आने या आसमान से गिरने जैसे अंजाम को पहुंच को तैयार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ आतंकी हमले का शिकार हो रहे हैं। लेकिन गुरुवार की घटना में मारे जाने वालों में सिर्फ अफगानिस्तान के लोग नहीं हैं। वहां फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने में मदद कर रहे 13 अमेरिकी सैनिकों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी है। निश्चित रूप से अमेरिका में इसकी तीखी प्रतिक्रिया होगी। लेकिन अमेरिकी सरकार के सामने फिलहाल ज्यादा विकल्प नहीं हैं। राष्ट्रपति जो बाइडन के बयान से भी इसका संकेत मिलता है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका इसे न तो भूलेगा और न ही माफ करेगा। इसके लिए जिम्मेदार लोग जहां कहीं भी होंगे उन्हें हर हाल में ढूंढकर उनके किए की सजा दी जाएगी।

साफ है कि यह एक लंबा काम है। फिलहाल उनका भी ध्यान जान माल का और कोई नुकसान झेले बगैर वहां से वापसी की प्रक्रिया को पूरा करने पर लगा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि महीने के आखिर तक वापसी की यह प्रक्रिया संपन्न हो जाने के बाद अफगानिस्तान का क्या होगा और जो भी होगा, उसका आसपास के देशों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा। अब तक मुख्य चिंता यही सामने आ रही थी कि तालिबान का शासन आधुनिक मूल्यों में यकीन रखने वाले अफगानों, वहां की महिलाओं और अल्पसंख्यकों के साथ कैसा सलूक करेगा। पंजशीर से भले तालिबान की ओर चुनौती उछाली जा रही हो, मगर दोनों पक्षों में सीधे टकराव के हालात नहीं बने थे। दोनों के अपने अलग इलाके थे। मगर आईएसआईएस- के की ओर से किया गया ताजा आतंकी हमला बताता है कि वह तालिबान के लिए लंबा सिरदर्द साबित होने जा रहा है। अफगानिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम करने की लड़ाई में दोनों पहले से ही टकराते रहे हैं। आईएसआईएस का कहना है कि तालिबान अमेरिकियों की मिलीभगत से अफगानिस्तान में काबिज हुए हैं।
जाहिर है, उसकी ओर से तालिबानी शासन को ऐसी चुनौतियां मिलती रहने वाली हैं। यह चुनौती कितनी कमजोर या मजबूत होगी और आखिरकार इस रस्साकशी में दोनों में से कौन भारी पड़ेगा, इससे बाहरी दुनिया को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। दोनों की यह लड़ाई बेकसूरों की जान लेते हुए आगे बढ़ेगी और वहां के समाज को ज्यादा से ज्यादा कट्टर बनाती चलेगी। यही नहीं, अपना ज्यादा प्रभाव साबित करने के चक्कर में ये अफगान सीमा के बाहर भी आतंकी वारदात को अंजाम देने की कोशिश करने से नहीं चूकेंगे। कुल मिलाकर भविष्य के लिए संकेत अच्छे नहीं हैं।


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