नफरत के कारोबार में टेक कंपनियां
इस प्रक्रिया में सत्ता के खिलाड़ियों के लिए काम करने से निर्दोष युवा लड़कों-लड़कियों की प्रतिष्ठा तबाह हो गयी
एक बटन दबाना, हाई टेक अल्गोरिद्म और एक दुष्टतापूर्ण लॉग इन- विवेक की नीलामी के इन दरवाजों का पता पिछले सप्ताह तब चला, जब तकनीक के बाजार पर नफरत का हथौड़ा गिरा. सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई जैसे विस्फोट ऑनलाइन स्पेस में हुए, जिनका उद्देश्य सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना और मुस्लिम स्त्रियों का अपमान करना था.
उसी हफ्ते सूचना तकनीक मंत्रालय ने एक टेलीग्राम चैनल को बंद किया था, जो इसी तरह हिंदू महिलाओं की तस्वीरें साझा करता था. असली अपराधियों का पीछा करने की जगह शासन ने राजनीतिक तरीके से कार्रवाई की. भाजपा शासित राज्य सरकारों ने अल्पसंख्यकों का पीछा किया, तो गैर-भाजपा सरकारों ने केसरिया समूहों पर कार्रवाई की.
इस प्रक्रिया में सत्ता के खिलाड़ियों के लिए काम करने से निर्दोष युवा लड़कों-लड़कियों की प्रतिष्ठा तबाह हो गयी. ये भटके हुए युवा सामाजिक ताने-बाने को इस तरह नुकसान नहीं पहुंचा पाते, अगर उन्हें अपनी करतूतों को बड़े पैमाने पर फैलाने के औजार नहीं मिलते. भारत में बहुत अधिक संख्या में सांप्रदायिक घटनाएं होती हैं, पर पहले तकनीकी पहुंच न होने से उन पर राष्ट्रीय या वैश्विक ध्यान नहीं जाता था.
अब तकनीक नफरत की राष्ट्रीय फैक्ट्री का ईंजन है. यह अच्छा कारोबार और निशाने पर हमले का ताकतवर हथियार भी है. पर तकनीक के बड़े कारोबारी प्राधिकार से ऊपर हैं. उनसे विनम्र निवेदन ही किया जा सकता है या आपत्तिजनक और अवैध सूचना को हटाने के लिए ही कहा जा सकता है.
सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई एप गिटहब पर अपलोड किये गये थे. चूंकि इसका मालिक माइक्रोसॉफ्ट है, सो भारत ने कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की. आखिर इसकी बाजार पूंजी लगभग 2.30 ट्रिलियन डॉलर यानी हमारे कुल घरेलू उत्पादन के लगभग बराबर है. गिटहब अमेरिका में स्थित है, सो यह भारतीय कानूनों के प्रति जवाबदेह नहीं है.
इससे आधिकारिक अमेरिकी चैनलों से जानकारी ही मांगी जा सकती है. हालांकि गिटहब का दावा है कि वह हिंसक धमकियों, नफरती बयानों, निजता के हनन और अश्लील सामग्री की अनुमति नहीं देता है, पर इन्हें रोकने की कोई व्यवस्था उसके पास नहीं है. वह तभी कार्रवाई करता है, जब कोई अनैतिक दुरुपयोग होता है, जैसा भारत में हुआ.
सूचना तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव गिटहब को विनम्र आग्रह कर स्थिति संभालने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके पास 73 मिलियन डेवलपरों के 200 मिलियन से अधिक सोर्स कोड संग्रहित हैं. आरोग्य सेतु का सोर्स कोड भी इसी पर है. गिटहब बहुत विशाल एप मार्केट का छोटा हिस्सा है.
पिछले साल 20 अरब डॉलर मूल्य के 218 अरब एप डाउनलोड हुए हैं. जब नफरत के कारोबारी गिटहब जैसे अपेक्षाकृत कम नामी मंच का इस्तेमाल सामाजिक अशांति फैलाने के लिए कर सकते हैं, तो कल्पना करें कि ट्विटर, फेसबुक, व्हाॅट्सएप और लिंक्डइन ने अब तक कितनी तबाही की होगी और आगे क्या कर सकते हैं. इन कंपनियों के पास संयुक्त रूप से वैश्विक संपत्ति के एक-तिहाई के बराबर धन है.
इन्हें राज्य ने ही बनाया है और अब वह इनके घमंड के सामने मजबूर खड़ा है. उनके लिए नैतिकता से अधिक कमाई अहम है. तकनीकी रूप से निरक्षर राजनीतिक नेतृत्व और भंगुर युवाओं को लुभा कर उन्होंने खेल के नियम तय कर दिये हैं. लगभग एक दशक तक किसी ताकतवर देश ने इनकी कामयाबी का अंदाजा लगाया होगा.
ये ओमिक्रॉन से अधिक संक्रामक हैं. दुनियाभर में दो अरब से अधिक सक्रिय यूजरों के साथ व्हाॅट्सएप सबसे अधिक संक्रामक सोशल नेटवर्किंग टूल है. ब्रायन एक्टन और जैन कौम ने इसे एसएमएस के सस्ते विकल्प के रूप में 2009 में स्थापित किया था. साल 2014 में अब मेटा बन चुके फेसबुक ने इसे 19 अरब डॉलर में खरीद लिया.
उस साल इसका राजस्व बमुश्किल 1.30 मिलियन डॉलर था, पर आज इसकी कमाई आठ अरब डॉलर से अधिक है. आंकड़ों के मुताबिक, हर चौथा व्हाॅट्सएप यूजर भारतीय है. भारत में इसके 480 मिलियन यूजर हैं. यह छवि बिगाड़ने और समाज में तनाव पैदा करने का सबसे प्रभावी और घातक हथियार है. वैश्विक सामाजिक सद्भाव के लिए व्हाॅट्सएप अकेला तकनीक आधारित दानव नहीं है.
अपने 2.70 अरब से अधिक यूजरों के साथ फेसबुक न्यूनतम खर्च से अधिकतम पहुंच मुहैया कराता है. साल 2009 में फेसबुक ने 800 मिलियन डॉलर कमाया था, जबकि पिछले साल इसकी जेब में 85 अरब डॉलर से अधिक गये. इसके मालिक मार्क जकरबर्ग धनिकों के प्रिय हैं तथा राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों द्वारा उनका स्वागत होता है.
भारत में फेसबुक के लगभग 360 मिलियन यूजर हैं, जिनमें से कुछ ने विभाजनकारी सामग्री के जरिये राजनीतिक फसल काटी है. मार्च 21, 2006 को जब ट्विटर के संस्थापक जैक डोर्सी ने पहला ट्वीट किया था, तब उन्हें कल्पना भी न की होगी कि उनकी नीली चिड़िया संचार समुदाय में खूनखराबे का कारण बन जायेगी.
आज 15 साल बाद 400 मिलियन यूजर और लगभग 46 अरब डॉलर की बाजार पूंजी (केवल 200 मिलियन यूजर के आधार पर आकलित) के साथ ट्वीटर तीसरा सबसे बड़ा सोशल नेटवर्किंग मंच है. भारत में 25 मिलियन से अधिक सक्रिय ट्विटर अकाउंट हैं. इसका सबसे अधिक इस्तेमाल राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, अराजकतावादी, सांप्रदायिक, अनुदार और आतंकी करते हैं.
इसी के जरिये सबसे ज्यादा फेक न्यूज और नफरती बयान फैलाये जाते हैं. कंपनी ने तभी डोनाल्ड ट्रंप का खाता बंद किया, जब उसे अहसास हो गया कि वे पद से हट रहे हैं. यूट्यूब अपने 2.3 अरब से अधिक यूजर के साथ हर तरह के लोगों के लिए सबसे सस्ता इंटरनेट टूल है. गूगल ने 2005 में इसे 1.65 अरब डॉलर में खरीदा था और आज हर साल इसकी कमाई करीब 20 अरब डॉलर है.
पारंपरिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का यह सबसे ताकतवर विकल्प है. यूट्यूब के अल्गोरिद्म पर आरोप है कि यह षड्यंत्रकारी और विभाजक वीडियो को आगे बढ़ाता रहता है. एक आलोचक ने इसे 21वीं सदी का सबसे ताकतवर अतिवादी औजार बताया है. तकनीक की बढ़त ने निश्चित ही दुनिया को बेहतर बनाया है, लेकिन यह वह विनाश दूत भी है, जो अंतत: नफरत की तबाही फैलायेगा.
आज भले तकनीक के बादशाह अपनी ऐशगाहों में आराम कर रहे हैं, पर उनके औजारों का बढ़ता दुरुपयोग एक दिन उनके दरवाजे भी पहुंचेगा. अगर आज तकनीकी खामियों को ठीक नहीं किया गया और इसके मालिकों पर लगाम नहीं लगी, तो भयावह तबाही होगी, जिसे अभी तक हमने हॉलीवुड की फिल्मों में देखा है.
प्रभात खबर