शक्ति के सदुपयोग का संकल्प लें, उसका दुरुपयोग बिलकुल ना करें
जिसे हवा ओढ़कर सोने का अभ्यास हो जाए, उसका कोई भी मौसम क्या बिगाड़ पाएगा
पं. विजयशंकर मेहता । जिसे हवा ओढ़कर सोने का अभ्यास हो जाए, उसका कोई भी मौसम क्या बिगाड़ पाएगा। यही हवा प्राण भी कहलाती है। यदि अपने आंतरिक शरीर में प्राण का संचरण ठीक ढंग से कर लिया तो बाहर की विपरीत परिस्थितियां भी ज्यादा परेशान नहीं कर पाएंगी। नवरात्र के तीसरे दिन एक संदेश मिलता है कि संसार से भागना भी नहीं है। फिर, संसार में रहते हुए अपने बाहर और भीतर की शक्ति का संतुलन कैसे बनाएं? जैसे ही भीतर शक्ति जागती है, हम बाहर की दुनिया के लिए उसका दुरुपयोग करने लगते हैं और बाहरी शक्तियों को भीतर ले आते हैं।
कितना बाहर ले जाना, कितना भीतर लाना इसका विवेक जागता है नवरात्र में। देवी भागवत पुराण में एक कथा आती है। नर और नारायण जो कि विष्णु के अवतार थे, तपस्या कर रहे थे। इंद्र घबराए तो कामदेव से कहा इनकी तपस्या भंग करो, वरना ये मेरा आसन ले लेंगे। कामदेव अप्सराएं लेकर पहुंच गए।
नारायण ने देखा तो मन में हल्का सा अहंकार जाग गया। जांघ पर हाथ का प्रहार किया और वहीं से एक कन्या उत्पन्न कर कामदेव से कहा- जाओ.., अपने राजा को हमारी ओर से यह भेंट दे दो। इस पर नर ने समझाया हमारी शक्ति का उपयोग इस तरह अहंकार के प्रदर्शन में न करें। बात नारायण को समझ में आ गई और हमें भी समझ लेना चाहिए कि इस बार की नवरात्र में शक्ति के सदुपयोग का संकल्प लेंगे, उसका दुरुपयोग बिलकुल नहीं करेंगे।