भ्रष्टाचार का दलदल
पश्चिम बंगाल में उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी बता रही है कि ममता बनर्जी भ्रष्टाचार मुक्त शासन के कितने ही दावे क्यों न करें, लेकिन उनके वरिष्ठ मंत्री भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के घेरे में हैं।
Written by जनसत्ता: पश्चिम बंगाल में उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी बता रही है कि ममता बनर्जी भ्रष्टाचार मुक्त शासन के कितने ही दावे क्यों न करें, लेकिन उनके वरिष्ठ मंत्री भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच के सिलसिले में शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चटर्जी और शिक्षा राज्य मंत्री परेश चंद्र अधिकारी के यहां छापे मारे थे। ईडी ने चटर्जी से घंटों पूछताछ की। उसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
यह मामला तब और तूल पकड़ गया जब ईडी ने चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के यहां से बीस करोड़ रुपए से ज्यादा रकम बरामद किए। खबर के मुताबिक, चटर्जी के यहां छापे के दौरान मिले दस्तावेजों की जांच करती हुई ईडी टीम अर्पिता के घर पहुंची थी। ईडी का दावा है कि यह शिक्षक भर्ती घोटाले की ही रकम है। देखें तो इतनी बड़ी रकम मिलना इसलिए भी गंभीर मामला है कि महिला पार्थ चटर्जी की करीबी बताई जा रही है।
ऐसे में उस सरकार पर सवाल क्यों नहीं उठेंगे, जिसका मंत्री ही सवालों के घेरे में है? हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने सफाई दी है कि जिस महिला के घर से नगदी मिली है, उसका सरकार या पार्टी से कोई संबंध नहीं है। हालांकि यह सफाई कुछ उसी तरह की है जिस तरह ऐसे आरोपों के बाद पार्टी और सरकार के मुखिया और प्रवक्ता देते रहते हैं।
वैसे यह घोटाला का मामला साल 2016 का है। तब पार्थ चटर्जी शिक्षा मंत्री थे। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने का निर्देश दिया था। अदालत ने इस मामले में धनशोधन की आशंका जताई थी। इसी कड़ी में इस साल अप्रैल और मई में सीबीआइ ने पार्थ चटर्जी से पूछताछ की और धनशोधन की शिकायत दर्ज करवाई। तभी यह मामला प्रवर्तन निदेशालय के पास चला गया।
ऐसा भी नहीं कि भ्रष्टाचार का यह अकेला मामला हो। ममता सरकार के पिछले दो कार्यकालों में भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले सामने आए हैं और सरकार के मंत्रियों को जेल भी भेजा गया है। हालांकि पार्थ चटर्जी के खिलाफ मामला अभी अदालत में चलेगा और जांच एजंसियों को साबित करना होगा कि बीस करोड़ रुपए उसी घूस के हैं जो शिक्षक भर्ती घोटाले में लोगों से ली गई थी।
हालांकि जांच एजेंसियां ऐसी भारी-भरकम नगदी बरामद करती रहती हैं। ऐसे बेहिसाब धन की बरामदगी भ्रष्टाचार मुक्त शासन का वादा और दावा करने वाली सरकारों पर बड़े सवाल खड़े करती हैं। यानी अगर सरकारों में ईमानदारी से काम हो रहा हो रहा है तो आखिर इतनी बेहिसाब दौलत आ कहां से रही है? किसी मंत्री के करीबी या रिश्तेदार के पास से इतनी भारी नगदी मिलना संदेह पैदा क्यों नहीं करेगा? याद किया जा सकता है कि कुछ समय पहले झारखंड की एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी के सीए के यहां से सत्रह करोड़ से ज्यादा की नगदी बरामद हुई थी।
पिछले साल उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान कानपुर के एक कारोबारी के यहां से भी लगभग दो सौ करोड़ रुपए नगद मिले थे। घूसखोरी के ऐसे मामलों की कमी नहीं है। यह तो तब है जब मामले ईडी और सीबीआइ या राज्यों की भ्रष्टाचार निरोधक एजंसियों की पकड़ में आ जाते हैं और उनका खुलासा हो जाता है। वरना कैसे करोड़ों-अरबों के वारे-न्यारे होते होंगे, कौन जानता है! आखिर भ्रष्टाचार के वैश्विक सूचकांक में भारत की स्थिति दयनीय यों ही नहीं बनी हुई है!