सतह पर संवेदना

नाइस कोरोना काल में जैसी लोगों की बेबसी तथा प्रशासन की असंवेदनशीलता और काहिली दिखाई दे रही है,

Update: 2021-05-13 02:22 GMT

नाइस कोरोना काल में जैसी लोगों की बेबसी तथा प्रशासन की असंवेदनशीलता और काहिली दिखाई दे रही है, वैसी शायद कभी और कहीं न दिखाई दी होगी। बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में गंगा में तैरती लाशों को देख कर लोग हैरान हैं। बिहार के बक्सर जिले के चौसा प्रखंड के कुछ इलाकों में जब गंगा में बह कर आई लाशें देखी गर्इं, तो वहां का प्रशासन चौकन्ना हुआ। हालांकि उसने तुरंत सफाई दी कि ये लाशें उत्तर प्रदेश से बह कर आई हैं, बिहार की नहीं हैं।

फिर उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी इसी तरह तैरती लाशें देखी गर्इं। हालांकि अभी तक इस तरह लाशों के गंगा में बहा दिए जाने की असल वजह का पता नहीं लगाया जा सका है, मगर यह साफ है कि ये सभी कोरोना की वजह से मारे गए लोग थे। हालांकि बिहार प्रशासन ने दावा किया है कि वह उन लाशों का पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार करेगा और वह उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के प्रशासन से तालमेल बिठा रहा है कि उधर से आ रही लाशों का वहीं संस्कार कर दिया जाए। मगर यह प्रक्रिया कितने दिन चलेगी और कब इस समस्या पर काबू पाने का प्रयास किया जाएगा, फिलहाल कहना कठिन है।
कयास लगाए जा रहे हैं कि ये उन गरीब लोगों के शव हैं, जिनके परिजनों के पास उनका अंतिम संस्कार करने के लिए पैसे नहीं हैं। श्मशानों में लकड़ी की किल्लत बढ़ी है, शवों को जलाना खासा महंगा काम हो गया है। अंतिम संस्कार में पंद्रह से बीस हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। ऐसे में उन गरीब लोगों के सामने अपने प्रिय जनों का अंतिम संस्कार करना एक बड़ी समस्या बन गया है, जिनके पास इस घड़ी में दो वक्त की रोटी के भी पैसे नहीं हैं।
गंगा चूंकि लोक आस्था की नदी है, इसलिए बहुत सारे लोग शवों को उसके हवाले कर दे रहे हैं। एक आशंका यह भी जताई जा रही है कि कहीं ऐसा खुद प्रशासन की तरफ से तो नहीं किया जा रहा। क्योंकि उत्तर प्रदेश में कई जगह प्रशासन खुद शवों को जलाने के बजाय गंगा की कछार में गड्ढे खोद कर उन्हें दफ्न करते देखा जा रहा है। अगर ऐसा है, तो यह ज्यादा चिंता की बात है। मरने के बाद लोगों का अंतिम संस्कार उनकी आस्था और परंपराओं के मुताबिक ही किया जाना चाहिए। अगर परिजन नहीं कर पा रहे, तो प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के अंतिम संस्कार का प्रबंध करे।
उत्तर प्रदेश इस वक्त सबसे अधिक महामारी की चपेट में है। हाल ही वहां संपन्न हुए पंचायत चुनावों के समय इस बात को लेकर खासा हंगामा खड़ा हो गया था कि चुनाव प्रक्रिया की वजह से कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। अब तक वहां चुनाव तैनाती में हुए संक्रमण की वजह से करीब नौ सौ प्राथमिक विद्यालय अध्यापकों के मारे जाने के दावे किए जा चुके हैं। संक्रमण वहां के गावों में पैर पसार चुका है, जहां न तो समुचित इलाज की व्यवस्था है और न प्रशासन का उनकी तरफ ध्यान है।
सबसे चिंता की बात है कि उत्तर प्रदेश प्रशासन शुरू से कोरोना संक्रमण के आंकड़ों और उससे होने वाली मौतों पर परदा डालने का प्रयास करता देखा जा रहा है। गंगा में तैरती लाशों को लेकर इसीलिए उस पर स्वाभाविक रूप से संदेह की अंगुली उठ रही है। प्रशासन को अपनी नाकामियां छिपाने के बजाय समस्या पर काबू पाने के गंभीरता से प्रयास करने चाहिए।

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