अब और भी जरूरत इस बात की है कि स्कूली पाठ्यक्रम में नैतिकता को गंभीरता से शामिल किया जाए, बच्चों को बचपन से असफलताओं से घबराना नहीं, बल्कि उनका मुकाबला करना सिखाया जाए, क्योंकि भावी पीढ़ी में आत्मविश्वास की कमी हो रही है और जिंदगी की छोटी छोटी मुश्किलों से ही घबराकर आत्महत्या करने जैसा कदम भी कुछ युवा उठा चुके हैं। बहुत ही दुखद है कि आज पढ़े-लिखे युवा और छात्र आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं, जबकि इनका दायित्व तो समाज में आत्महत्या जैसी सामाजिक बुराई को रोकने के लिए प्रयास करना होना चाहिए। इनसान को जिंंदगी में हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए क्योंकि सकारात्मक सोच हमेशा इनसान को आगे बढऩे में बहुत मदद करती है, साथ ही सफलता दिलाती है।
-राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा
By: divyahimachal