घुटता बचपन

बचपन हमारे जीवन का वह समय है जो हमारे जीवन को एक आकार व एक नई दिशा देता है

Update: 2022-08-04 19:00 GMT

बचपन हमारे जीवन का वह समय है जो हमारे जीवन को एक आकार व एक नई दिशा देता है। हमारा बचपन एक मिट्टी के बर्तन की तरह होता है जिसे अपने माता-पिता के संस्कारों से और इस समाज में हो रहे बदलावों से एक विशिष्ट आकार मिलता हैं। यही उम्र होती है जिसमें हम सभी को कुछ सीखने को मिलता है तथा जिसके कारण हम बड़े होकर एक सफल व्यक्ति बनते हैं। मगर आज की इस दौड़-भाग की दुनिया में न केवल वयस्क बल्कि बच्चे भी तनाव में रहते हैं तथा उनका बचपन घुटता नजऱ आता है। बच्चों में आत्महत्या करने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 में प्रति दिन बच्चों ने आत्महत्या की है तथा इस वर्ष कुल 11396 बच्चों ने आत्महत्या की है। यह आंकड़ा प्रति वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। बच्चों में बढ़ते तनाव के कई कारण हैं जिनका विवरण इस प्रकार से है। 1. मां-बाप अपने बच्चों को वांछित उचित समय नहीं दे पाते तथा विशेषत: कामकाजी मां-बाप तो एक घंटे से अधिक समय नहीं दे पाते। यह भी देखा गया है कि जिन बच्चों के मां-बाप किसी उच्च पद पर तैनात होते हैं, उनके बच्चे नौकर-चाकरों के हाथों में ही पलते हैं जिससे वे माता-पिता के संस्कारों से वंचित रह जाते हैं। 2. इसके अतिरिक्त काम-काजी कर्मचारी का समय-समय पर स्थानांतरण होता रहता है तथा ऐसे में बच्चों को एक नए माहौल में ढलना पड़ता है तथा ऐसी परिस्थितियों में उनका दिल और दिमाग निश्चित तौर पर प्रभावित होने लगता है। 3. कामकाजी मां-बाप को कई बार अपने बॉस की वजह से टेंशन होती है तथा इस तनाव के कारण वे आपस में लड़ाई-झगड़ा भी करते हैं तथा इसका प्रभाव उनके बच्चों पर पड़ता है। 4. जब मां-बाप के पास समय नहीं होता तब बच्चे टीवी, मोबाइल व कई प्रकार की सोशिल साईट देखना शुरू कर देते हैं।

बच्चों को शंात करने के लिए टीवी का सहारा लिया जाता है। बच्चों को कई प्रकार से दृश्य दिखाए जाते हैं तथा इन सबका दुष्प्रभाव बच्चों के दिमाग पर पड़ता है। 5. कई मां-बाप अपने बच्चों पर अत्यधिक निगरानी रखना शुरू कर देते हैं तथा बात-बात पर उन्हें कोसना व डांटना आरंभ कर देते हैं। परिणामस्वरूप उनके मन में उन्माद पैदा होना शुरू हो जाता है। 6. मां-बाप अपने बच्चों से पढ़ाई के क्षेत्र या अन्य किसी भी क्षेत्र में अत्यधिक उम्मीदें रखना शुरू कर देते हैं। परीक्षा में अव्वल आने के लिए प्रेरित करते रहते हैं तथा दूसरे बच्चों के उदाहरण देना शुरू कर देते हैं। मां-बाप, जो खुद शराबी-कबाबी व हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं, वे अपने बच्चों से सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। 7. ऐसा देखा गया है कि जिन मां-बाप के ज्यादा बच्चे होते हैं, उन सभी को एक समान प्यार नहीं दे पाते। जब परिवार में नवजात शिशु को ज्यादा प्यार मिलता है तो दूसरे बच्चे में ईष्र्या की भावना उत्पन्न होनी शुरू हो जाती है। 8. शिक्षा नीति के अंतर्गत अब बच्चों को कई प्रकार की परीक्षओं जैसे कि नर्सरी, एलकेजी, केजी इत्यादि में अध्ययन करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त पढ़ाई का इतना बोझ डाल दिया जाता है कि बच्चों को खेलने-कूदने का समय ही नहीं मिल पाता। 9. जब बच्चे विभिन्न कारणों से तनाव में रहना शुरू करते हैं, तब उनमें कई प्रकार के उन्माद उत्पन्न होने शुरू हो जाते हैं। उनकी भूख कम हो जाती है, गुमसुम रहने लग पड़ जाते हैं, जिद्दी बन जाते हैं तथा उनका स्वभाव हिंसक व चिड़चिड़ा होने लग जाता है। कुछ बच्चे तो मादक पदार्थों का सेवन करना शुरू कर देते हैं तथा अपने बचपन को नष्ट कर लेते हैं। मां-बाप को चाहिए कि वे अधिक से अधिक समय बच्चों को दें।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी

By: divyahimachal

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