सरकार ने दालों की महंगाई रोकने के लिए दालों की स्टाक लिमिट तय कर दी है। इसे थोक विक्रेताओं, रिटेलर्स, मिल मालिकों और आयातकों पर लागू किया गया है। यद्यपि नए कृषि कानूनों में अरहर, उड़द और मूंग मामले में आयात नीति को प्रतिबंधों से मुक्त करने के लिए संशोधन भी शामिल है लेकिन सरकार को दालों की जमाखोरी रोकने के लिए कदम उठाना पड़ा। खुदरा विक्रेताओं के लिए यह स्टॉक सीमा पांच टन की होगी, मिल मालिकों के मामले में स्टॉक की सीमा उत्पादन के अंतिम तीन महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी अधिक है उसके मुताबिक होगी। आयातकों के मामले में दालों की स्टॉक सीमा 15 मई 2021 से पहले रखे या आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं के बराबर की स्टॉक सीमा होगी।
इस वर्ष जनवरी से जून के दौरान दालों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। अरहर, उड़द, मसूर दाल के खुदरा दामों में 10 से 20 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई है। जो दालें जनवरी में 100 रुपए किलो थी वह अब 110-120 रुपए किलो हो गई हैं। मसूर दाल की कीमत 21 फीसदी बढ़कर 85 रुपए किलो हो गई, जो पहले 70 रुपए किलो थी। चना दाल की कीमत भी पहले से कहीं अधिक ज्यादा हो गई है। पंजाबी में एक कहावत है : -
लेकिन आजकल दाल के साथ ही लोगों की निभ नहीं रही। इसलिए बाजार को सही संकेत देने के लिए तत्काल नीतिगत निर्णय की आवश्यकता महसूस की गई। दालों की कीमतों की वास्तविक समय पर निगरानी के लिए केन्द्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने जमाखोरी की अवांछित प्रवृत्ति पर नजर रखने के लिए एक वेब पोर्टल भी विकसित किया है। समाज में अनेक लोग ऐसे भी देखे गए जिन्होंने आपदा को कमाई का जरिया बना लिया। जब दवाओं से लेकर ऑक्सीजन तक की ब्लैक हो सकती है तो दालों का कृत्रिम संकट पैदा कर इनकी कीमतें क्यों नहीं बढ़ाई जा सकती। फसली वर्ष 2020-21 में देश का दलहन उत्पादन (जुलाई से जून तक) 2 करोड़ 50 लाख टन था। सरकार ने खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए भी कई उपाय किए हैं। दालों और खाद्य तेलों के दामों में बढ़ोतरी का कारण इसका आयात भी है। वैश्वीकरण के दौर में यह समझा जाना भी जरूरी है कि गरीब आदमी को आवश्यक भोजन उपलब्ध करना अंततः सरकार की जिम्मेदारी है।
भारतीय दलहन एवं अनाज संघ को सरकार द्वारा दोनों पर स्टाक की सीमा लगाये जाने का फैसला नागवार गुजर रहा है। संघ का कहना है कि किसानों की आय को दोगुना करने के सरकार के प्रयासों का हमने हमेशा स्वागत और समर्थन किया है जिसमें अरहर, उड़द, मांगू के मामले में आयात नीति प्रतिबंंधित मुक्त करने के लिए संशोधन भी शामिल है। एक आयातक 3 से 5 हजार टन एक किस्म की दाल का आयात करता है लेकिन हर किस्म की दाल के लिए केवल सौ टन की सीमा लगाने से सप्लाई नियंत्रित हो जाएगी। व्यापारी वर्ग के अपने तर्क हैं लेकिन सरकार ने ऐसा कई बार देखा है कि राज्य सरकारों द्वारा जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई से गोदामों से बाहर माल निकला और दालों की कीमत कुछ कम हुई। परेशानी तब होती है जब किसान अपनी अरहर, चना, मूंग, उड़द या तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचता है तो उसकी दाल बनने और खुदरा दुकानों पर आने तक उसकी कीमत में दोगुनी से भी अधिक बढ़ोतरी हो जाती है। इस तथ्य को भी ध्यान में रखना होगा कि किसानों को उसकी उपज का सही मूल्य मिले, क्युकी इससे उसकी क्रय शाक्ति बढ़ेगी और भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। किसी भी सरकार को महंगाई का बेलगाम होना स्वीकार्य नहीं हो सकता क्योंकि इससे आम आदमी काफी परेशान होता है। समय और परिस्थितियों को देखते हुए नीतिगति निर्णय लेना सरकारों का दायित्व है। सरकार के कदम परिस्थितियों को देखते हुए उठाये गये हैं। अभी हम सबको सतर्क रहकर अपनी गतिविधियों को सामान्य बनाना है। अर्थव्यवस्था तभी पटरी पर दौड़ेगी अगर हम कोरोना बचाव के सभी उपाय कर तीसरी लहर को आने से रोक पाएंगे।