वर्चुअली जुड़े रहना भी मायने रखता है; आजकल कई लोग छोटे-छोटे मतभेदों पर अपने स्कूल और कॉलेज के करीबी मित्रों का साथ छोड़ रहे
जैसे अखबारों में शोक संदेश छपते हैं, क्या होगा अगर वे उन लोगों का नाम भी देने लगें जो वॉट्सएप ग्रुप जैसे वर्चुअल ग्रुप छोड़ देते हैं
एन. रघुरामन। जैसे अखबारों में शोक संदेश छपते हैं, क्या होगा अगर वे उन लोगों का नाम भी देने लगें जो वॉट्सएप ग्रुप जैसे वर्चुअल ग्रुप छोड़ देते हैं या अचानक किसी ग्रुप में निष्क्रीय हो जाते हैं? ऐसा हुआ तो अखबार में खबरों के लिए जगह नहीं बचेगी। आजकल कई लोग छोटे-छोटे मतभेदों पर अपने स्कूल और कॉलेज के करीबी मित्रों का वर्चुअल ग्रुप छोड़ दे रहे हैं। वर्चुअल संपर्क का मतबल बिना तार एक-दूसरे से जुड़े रहना है।
हमें दशकों बाद स्कूल-कॉलेज के साथी मिल जाते हैं, जिनके संग हमारी जवानी बीती थी। लेकिन आजकल दुर्भाग्य से ये 'तारों में उलझे दोस्त' वर्चुअल मतभेदों के कारण अलग हो रहे हैं। हाल ही में मैंने हमारे 'मोबाइल-मालिकों' के समाज में ऐसे बदलावों के बारे में कहानी पढ़ी, जिसमें बताया गया कि कैसे हम सभी ग्रुप का हिस्सा बनकर एक-दूसरे के 'अंदर की आग' जलाए रख सकते हैं। कहानी यह थी...
एक व्यक्ति जो दोस्तों और ग्रुप की हर मीटिंग में शामिल होता था, उसने अचानक बिना जानकारी इनमें भाग लेना बंद कर दिया। कुछ हफ्तों बाद, रविवार की एक सर्द रात में ग्रुप एडमिन ने उस व्यक्ति के घर जाने का फैसला लिया। वहां पहुंचकर उसने देखा कि दोस्त अकेला, जलते अलाव के सामने हाथ में ड्रिंक का गिलास लिए खुद को गर्म रखने की कोशिश करते हुए बैठा है। एडमिन को देख उसने जाम नीचे रख उसका स्वागत किया।
वहां बहुत खामोशी थी और दोनों इंतजार कर रहे थे कि कोई बात शुरू करे। हालांकि मेजबान जानता था कि एडमिन क्यों आया है। दोनों लकड़ी के इर्द-गिर्द लहराती आग की लपटों को देख रहे थे। सन्नाटे को तोड़ने के लिए मेजबान ने एडमिन से ड्रिंक के लिए पूछा, 'आप क्या लेंगे?' मेजबान जाम बनाने लगा, एडमिन खामोश ही रहा और आग की लकड़ियां देखता रहा, फिर चिमटे की मदद से उसमें से एक सबसे उज्ज्वल लकड़ी निकालकर अलाव से अलग रख दी।
फिर बैठकर जाम उठा लिया। मेजबान जिज्ञासा से सब देख रहा था। जाम खत्म होने से पहले ही अलग पड़े लकड़ी के टुकड़े की लपट कमजोर पड़ गई, चमक बहुत धीमी हो गई और देखते ही देखते उसकी आग पूरी तरह बुझ गई। कुछ समय पहले जो लकड़ी रोशनी के साथ धधक रही थी, अब बेकार काले टुकड़े-सी पड़ी थी। उस मुलाकात में बहुत कम शब्द कहे गए थे। मेजबान दूसरा जाम बनाने उठा तो एडमिन ने लकड़ी के बेकार टुकड़े को चिमटे से उठाकर फिर आग के बीच रख दिया।
आसपास के टुकड़ों की लपटों और गर्मी से वह टुकड़ा फिर जल उठा। अब एडमिन जाने के लिए उठा, मेजबान से हाथ मिलाया और दरवाजे की ओर बढ़ा। मेजबान ने दरवाजा खोलते हुए कहा, 'यहां आने के लिए और खूबसूरत सबक देने के लिए धन्यवाद। मैं जल्द ग्रुप में लौट आऊंगा।' हमारी जिंदगी में कोई ग्रुप महत्वपूर्ण क्यों है?
जवाब आसान है। क्योंकि जब ग्रुप का कोई सदस्य जाता है तो वह दूसरों से आग और गर्मी ले जाता है। ग्रुप के सदस्यों को याद दिलाना जरूरी है कि वह उस आग का हिस्सा है। हमें यह याद रखना भी अच्छा है कि एक-दूसरे की आग को जलाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। फंडा यह है कि जुड़े रहना ही मायने रखता है। हम यहां मिलने, संदेश भेजने, सीखने, विचारों के आदान-प्रदान करने या खुद से यह कहने के लिए हैं कि हम अकेले नहीं हैं।